हिन्दू पंचांग के अनुसार, चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को बसोड़ा पूजन किया जाता है। जिसमे शीतला माता की पूजा की जाती है। बसोडा को शीतला अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। सामान्यतौर पर यह होली के आठवें दिन मनाया जाता है। परन्तु बहुत से लोग इसे होली के बाद के पहले सोमवार या पहले शुक्रवार को पूजते हैं। शीतला अष्टमी का पर्व उत्तर भारतीय राज्यों जैसे गुजरात, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, हरियाणा और पंजाब में बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
बसोडा की परंपराओं के अनुसार, इस दिन भोजन पकाने के लिए अग्नि नहीं जलाई जाती। इसलिए अधिकतर लोग शीतला अष्टमी के एक दिन पहले भोजन पका लेते हैं और बसोडा वाले दिन बासी भोजन का सेवन करते हैं। माना जाता है शीतला माता चेचक रोग, खसरा आदि बीमारियों से बचाती हैं। मान्यता है, शीतला मां का पूजन करने से चेचक, खसरा, बड़ी माता, छोटी माता जैसी बीमारियां नहीं होती और अगर हो भी जाए तो उससे जल्द छुटकारा मिलता है।
गुजरात में भी इस पर्व भी समान परम्पराएं हैं परन्तु वहां बसोडा कृष्ण जन्माष्टमी से एक दिन पहले मनाया जाता है जिसे शीतला सातम या सप्तमी के नाम से जाना जाता है। शीतला सातम में भी मां शीतला का पूजन किया जाता है और ताजा भोजन नहीं बनाया जाता। केवल बासी भोजन ग्रहण किया जाता है।
बसोडा में मां शीतला की पूजा
बसोडा के दिन शीतला माता की पूजा की जाती है। जिसमे शीतला माता को बासी खाने का भोग लगाया जाता है। भोग लगाने के लिए एक दिन पहले बसोडा तैयार किया जाता है। इस दिन बासी खाना मां को नैवैद्य के रूप में समर्पित किए जाते हैं और फिर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। माना जाता है इस दिन के बाद से बासी खाना खाना बंद कर दिया जाता है। शीतला सप्तमी-अष्टमी के दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता है और पुरे दिन घर के लोग बासी और ठंडा भोजन खाते हैं जिसका भोग मां शीतला को चढ़ाया गया था।
पूजन के लिए महिलाएं प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व जागकर ठंडे पानी से नहाती हैं। और उसके बाद पूजा की सभी सामग्री के साथ रात बनाए गए भोजन को लेकर उस जगह जाकर पूजा करती हैं जहां होलिका जलाई गयी थी। कुछ महिलाएं शीतला माता के मंदिर जाकर भी बसोडा पूजती हैं।
जो लोग सप्तमी को पर्व मनाते हैं वे इसे 27 मार्च को मनाएंगे और जो अष्टमी को मनाते हैं वे इसे 28 मार्च को मनाएंगे।