Achala Saptami 2020 : अचला सप्तमी क्यों मनाते हैं, जानिए पौराणिक कारण

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माघ माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को सूर्य सप्तमी, अचला सप्तमी, रथ आरोग्य सप्तमी इत्यादि नामों से जानी जाती है। 
 
अचला सप्तमी की पौराणिक कथा 
 
शास्त्रों में सूर्य को आरोग्यदायक कहा गया है। इनकी उपासना से रोग मुक्ति आसान हो जाती है। माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी से संबंधित कथा का उल्लेख ग्रंथों में मिलता है।
 
 कथा के अनुसार श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब को अपने शारीरिक बल और सौष्ठव पर बहुत अधिक अभिमान हो गया था। अपने इसी अभिमान के मद में उन्होंने दुर्वासा ऋषि का अपमान कर दिया। शाम्ब की धृष्ठता को देखकर दुर्वासा ने शाम्ब को कुष्ठ होने का श्राप दे दिया। 
 
तब भगवान श्रीकृष्ण ने शाम्ब को सूर्य भगवान की उपासना करने के लिए कहा। शाम्ब ने आज्ञा मानकर सूर्य भगवान की आराधना की, जिसके फलस्वरूप उन्हें कष्ट से मुक्ति मिली। जो श्रद्धालु विधि-विधान से पूजन करते हैं उन्हें आरोग्य, संतान और धन की प्राप्ति होती है। 
 
अचला सप्तमी सूर्य उपासना पर्व 
 
इस सप्तमी को जो भी सूर्य देव की उपासना तथा व्रत करते हैं उनके सभी रोग ठीक हो जाते हैं। वर्तमान समय में भी सूर्य चिकित्सा का उपयोग आयुर्वेदिक और प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में किया जाता है। 
 
शारिरिक कमजोरी, हड्डियों की कमजोरी या जोड़ों में दर्द जैसी परेशानियों में भगवान सूर्य की आराधना करने से रोग से मुक्ति मिलने की संभावना बनती है। सूर्य की ओर मुख करके सूर्य स्तुति करने से शारीरिक चर्मरोग आदि नष्ट हो जाते हैं। संतान प्राप्ति के लिए भी इस व्रत का महत्व माना गया है। इस व्रत को श्रद्धा तथा विश्वास से रखने पर पिता-पुत्र में प्रेम बना रहता है। 
 
इस दिन किसी जलाशय, नदी, नहर में सूर्योदय से पूर्व स्नान करना चाहिए। स्नान करने के बाद उगते हुए सूर्य की आराधना करनी चाहिए।  भगवान सूर्य को जलाशय, नदी अथवा नहर के समीप खड़े होकर भगवान सूर्य को अर्ध्य देना चाहिए। दीप दान विशेष महत्व रखता है इसके अतिरिक्त कपूर, धूप, लाल पुष्प इत्यादि से भगवान सूर्य का पूजन करना चाहिए। इस दिन अपनी सामर्थ्य के अनुसार गरीबों तथा ब्राह्मणों को दान देना चाहिए। 
 
इस दिन प्रात:काल सूर्योदय से पहले उठकर बहते हुए जल में स्नान करना चाहिए। स्नान करते समय अपने सिर पर बदर वृक्ष और अर्क पौधे की सात-सात पत्तियां रखना चाहिए। स्नान करने के पश्चात सात प्रकार के फलों, चावल, तिल, दूर्वा, चंदन आदि को जल में मिलाकर उगते हुए भगवान सूर्य को जल देना चाहिए। ॐ घृणिं सूर्याय नम: अथवा ॐ सूर्याय नम: सूर्य मंत्र का जाप करना चाहिए। इसके अतिरिक्त आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। 

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