12 फरवरी को है रथ सप्तमी, जानिए यहां महत्व और कथा

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माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को अचला सप्तमी का व्रत किया जाता है। इस व्रत का महत्व व विधि स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताई थी। इस रथ सप्तमी भी कहा जाता है। इस बार सप्तमी 12 फरवरी को मनाई जा रही है। इस दिन की जाती है सूर्यदेव की पूजा। 
 
 
अचला सप्तमी व्रत का महत्व
- अचला सप्तमी को पुराणों में रथ, सूर्य, भानु, अर्क, महती तथा पुत्र सप्तमी भी कहा गया है। इस दिन व्रत करने से संपूर्ण माघ मास के स्नान का फल मिलता है। 
 
- अचला सप्तमी के महत्व का वर्णन स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को कहा था। धर्मग्रंथों के अनुसार इस दिन यदि विधि-विधान से व्रत व स्नान किया जाए तो संपूर्ण माघ मास के स्नान का पुण्य मिलता है। 
 
- व्रत के रूप में इस दिन नमक रहित एक समय एक अन्न का भोजन अथवा फलाहार करने का विधान है। अचला सप्तमी व्रत करने वाले को वर्षभर रविवार व्रत करने का पुण्य प्राप्त हो जाता है। 
 
- जो अचला सप्तमी के महत्व को श्रद्धा भक्ति से कहता अथवा सुनता है तथा उपदेश देता है वह भी उत्तम लोकों को प्राप्त करता है।
 
अचला सप्तमी व्रत की कथा 
 
- मगध देश में इंदुमती नाम की एक वेश्या रहती थी। एक दिन उसने सोचा कि यह संसार तो नश्वर है फिर किस प्रकार यहां रहते हुए मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है? 
 
- यह सोचकर वह वेश्या महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में चली गई और उनसे कहा- मैंने अपने जीवन में कभी कोई दान, तप, जाप, उपवास आदि नहीं किए हैं। आप मुझे कोई ऐसा व्रत बतलाएं जिससे मेरा उद्धार हो सके। 
 
​- तब वशिष्ठजी ने उसे अचला सप्तमी स्नान व व्रत की विधि बतलाई। वेश्या ने विधि-विधान पूर्वक अचला सप्तमी का व्रत व स्नान किया।
 
- इस व्रत के प्रभाव से वह वेश्या बहुत दिनों तक सांसारिक सुखों का उपभोग करती हुई देहत्याग के पश्चात देवराज इंद्र की सभी अप्सराओं में प्रधान नायिका बनी।

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