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प्रदोष व्रत में क्या खाएं, क्या न खाएं

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हमें फॉलो करें What to eat in Pradosh
, गुरुवार, 1 जून 2023 (11:26 IST)
Pradosh vrat 2023 : हर माह के शुक्ल और कृष्ण के दो प्रदोष होते हैं। जिस वार को प्रदोष पड़ता है उसे उस वार से जानते हैं। जैसे आज गुरु प्रदोष है और ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 1 जून 2023 गुरुवार को यह प्रदोष रखा जा रहा है। आओ जानते हैं कि प्रदोष में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं।
 
गुरु प्रदोष व्रत रखने का लाभ :
  1. गुरुवार को आने वाले प्रदोष को गुरुवारा प्रदोष कहते हैं।
  2. इससे आपका बृहस्पति ग्रह शुभ प्रभाव तो देता ही है।
  3. इसे करने से पितरों का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।
  4. अक्सर यह प्रदोष शत्रु एवं खतरों के विनाश के लिए किया जाता है। 
  5. यह हर तर की सफलता के लिए भी रखा जाता है।
What to eat in Pradosh
प्रदोष में क्या खाएं और क्या नहीं?
  • प्रदोष के व्रत में आप पूर्ण उपवास या फलाहार भी कर सकते हैं।
  • प्रदोष काल में उपवास में सिर्फ हरे मूंग का सेवन करना चाहिए, क्योंकि हरा मूंग पृथ्‍वी तत्व है और मंदाग्नि को शांत रखता है।
  • प्रदोष व्रत में लाल मिर्च, अन्न, चावल और सादा नमक नहीं खाना चाहिए।
 
कैसे करें प्रदोष:
  1. व्रत वाले दिन सूर्योदय से पहले उठें। 
  2. नित्यकर्म से निपटने के बाद सफेद रंग के कपड़े पहने। 
  3. पूजाघर को साफ और शुद्ध करें।
  4. गाय के गोबर से लीप कर मंडप तैयार करें।
  5. इस मंडप के नीचे 5 अलग अलग रंगों का प्रयोग कर के रंगोली बनाएं। 
  6. फिर उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और शिव जी की पूजा करें। 
  7. पूरे दिन किसी भी प्रकार का अन्य ग्रहण न करें।
  8. प्रदोष की कथा का श्रवण करें, आरती उतारें।
  9. दूसरे दिन प्रदोष का पारण करें।
What to eat in Pradosh
प्रदोष व्रत कथा : पद्म पुराण की एक कथा के अनुसार चंद्रदेव जबअपनी 27 पत्नियों में से सिर्फ एक रोहिणी से ही सबसे ज्यादा प्यार करते थे और बाकी 26 को उपेक्षित रखते थे जिसके चलते उन्हें श्राप दे दिया था जिसके चलते उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था। ऐसे में अन्य देवताओं की सलाह पर उन्होंने शिवजी की आराधना की और जहां आराधना की वहीं पर एक शिवलिंग स्थापित किया। शिवजी ने प्रसन्न होकर उन्हें न केवल दर्शन दिए बल्कि उनका कुष्ठ रोग भी ठीक कर दिया। चन्द्रदेव का एक नाम सोम भी है। उन्होंने भगवान शिव को ही अपना नाथ-स्वामी मानकर यहां तपस्या की थी इसीलिए इस स्थान का नाम 'सोमनाथ' हो गया।

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