पारसी धर्म ईरान का मूल धर्म है। इस्लामिक उत्थान के दौर में इन्हें अपना देश छोड़कर भारत में बसना पड़ा। जरथुस्त्र पारसी धर्म के संस्थापक थे। इतिहासकारों का मत है कि जरथुस्त्र 1700-1500 ईपू के बीच हुए थे। पारसी समुदाय द्वारा महात्मा जरथुस्त्र का जन्म दिवस 24 अगस्त को मनाया जाता है। पारसियों का धर्मग्रंथ 'जेंद अवेस्ता' है, जो ऋग्वैदिक संस्कृत की ही एक पुरातन शाखा अवेस्ता भाषा में लिखा गया है। आओ जानते हैं कि पारसी लोग कब और कैसे मनाते हैं अपना नववर्ष।
कब है मनाते हैं पारसी नववर्ष : पारसी नववर्ष वर्ष में 2 बार मनाया जाता है। पहला 21 मार्च को और दूसरा 16 अगस्त को। पहले की शुरुआत शाह जमशेदजी ने की थी, जिसे फासली पंथ मनाजा है और जिसे 'नवरोज' कहा जाता है जबकि दूसरा 16 अगस्त को मनाया जाने वाला नववर्ष शहंशाही है। हालांकि दोनों ही दिन सभी पारसी मिलकर यह नववर्ष मनाते हैं। नवरोज को ईरान में ऐदे-नवरोज कहते हैं। उल्लेखनीय है कि नवरोज के 10 दिन पहले पारसी लोग 'मुक्ताद' नामक पर्व अपने मृतकों की शांति के लिए मनाते हैं।
कैसे मनाते हैं यह नववर्ष :
1. इस दिन पारसी लोग सुबह जल्दी उठकर साफ-सफाई करके घरों को सजाते हैं। विशेषकर घरों के द्वार को सजाया जाता है।
2. इसके बाद घर में लोबान या सुगंथित अगरबत्ती जलाते हैं।
3. फिर गुलाब के पानी से स्नान करके सुंदर वस्त्र पहनने हैं।
4. सजधज कर सभी नास्ता करने के बाद पारसी मंदिर जिसे अग्यारी कहते हैं वहां जाते हैं। इसे अग्नि मंदिर भी कहते हैं।
5. मंदिर जाकर सभी सामूहिक रूप से प्रार्थना और पूजा करते हैं। वहां सभी पर इत्र छिड़का जाता है।
6. फिर मंदिर में सभी एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं।
7. मंदिर से आने के बाद घर पर मेहमाननजावी प्रारंभ होती है।
8. मेहमानों पर गुलाब जल या इत्र छिड़ककर उनका स्वागत करते हैं।
9. अच्छे अच्छे पकवान बनाकर खाते हैं।
10. इस दिन समर्थ लोग गरीबों और जरूरत मंदों की सहायता भी करते हैं।