ओणम फेस्टिवल क्यों और कैसे मनाया जाता है?

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इस बार ओणम शनिवार, 21 अगस्त 2021 को है। इस पर्व को दक्षिण भारत में खासतौर केरल में बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। मान्यता है, ओणम यानी थिरुओणम के दिन ही राजा महाबली अपनी समस्त प्रजा से मिलने के लिए आते हैं जिसकी खुशी में यह त्योहार मनाया जाता है। 
 
भार‍त विविध धर्मों, जातियों तथा संस्कृतियों का देश है। जहां हर तरह के त्योहार को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। सर्वधर्म समभाव के प्रतीक केरल प्रांत का मलयाली पर्व 'ओणम' राजा बलि की आराधना का दिन, समाज में सामाजिक समरसता की भावना, प्रेम तथा भाईचारे का संदेश पूरे देश में पहुंचा कर देश की एकता एवं अखंडता को मजबूत करने की प्रेरणा देता है।


वैसे तो केरल में इसकी धूम होती है, लेकिन दुनिया भर में बसे मलयाली अपने-अपने तरीके से इसे मनाते हैं। इस संबंध में प्राचीन मान्यता है कि राजा बलि ओणम के दिन अपनी प्रजा से मिलने आते हैं। उन्हें यह सौभाग्य भगवान विष्णु से मिला था। उसके चलते समाज के लोग विष्णु जी की आराधना और पूजा करने के साथ ही अपने राजा का स्वागत भी करते हैं।
 
ओणम पर्व का सबसे खास आकर्षण होता है साद्य। ओणम के दौरान खाए जाने वाले खाने को साद्य कहते हैं। कह सकते हैं कि साद्य के बिना ओणम अधूरा है। साद्य में विशेष और लजीज पकवानों से राजा बलि को प्रसन्न किया जाता है।

इस पर्व की मान्यता के अनुसार राजा बलि केरल के राजा थे, उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी व संपन्न थी, किसी भी तरह की कोई समस्या नहीं थी, वे महादानी भी थे। उन्होंने अपने बल से तीनों लोकों को अपने कब्जे में ले लिया था। इसी दौरान भगवान विष्णु वामन अवतार लेकर आए और तीन पग में उनका पूरा राज्य लेकर उनका उद्धार कर दिया। माना जाता है कि वे साल में एक बार अपनी प्रजा को देखने के लिए आते हैं। तब से केरल में हर साल राजा बलि के स्वागत में ओणम का पर्व मनाया जाता है।
 
ओणम पर्व क्यों और कैसे है खास, जानिए...
 
* केरल में मनाया जाने वाला ओणम का 10 दिनी त्योहार हस्त नक्षत्र से शुरू होकर श्रवण नक्षत्र तक जारी रहता है।
 
* लोग घर के आंगन में महाबलि की मिट्टी की बनी त्रिकोणात्मक मूर्ति पर अलग-अलग फूलों से चित्र बनाते हैं, जितनी भी कलाकृतियां इन दिनों बनाई जाती हैं उसे महाबलि के चले के बाद ही हटाई जाती हैं।
 
* नई फसल के आने की खुशी में ओणम पर्व मनाया जाता है।

 
* ओणम पर्व पर राजा बलि के स्वागत के लिए घरों की आकर्षक साज-सज्जा के साथ फूलों की रंगोली और तरह-तरह के पकवान बनाकर उनको भोग अर्पित करते है।
 
* हर घर के सामने रंगोली सजाने और दीप जलाने की भी परंपरा हैं।
 
* इन दिन महिलाएं फूलों की रंगोली बनाती है, जिसे ओणमपुक्कलम कहते हैं।
 
* हर घर में विशेष पकवान बनाए जाते हैं। खास तौर पर चावल, गुड़ और नारियल के दूध को मिलाकर खीर बनाई जाती है।
 
 
* इसके साथ ही कई तरह की सब्जियां, सांभर आदि भी बनाया जाता है।
 
* इस अवसर पर मलयाली समाज के लोगों ने एक-दूसरे को गले मिलकर शुभकामनाएं देते हैं। साथ ही परिवार के लोग और रिश्तेदार इस परंपरा को साथ मिलकर मनाते हैं।
 
* इन दिनों फूलों की रंगोली को दीये की रोशनी के साथ सजाया जाता है और खीर (आऊप्रथमन) पकाई जाती है।
 
* ओणम के दिन नारियल के दूध व गुड़ से पायसम, केले का हलवा, नारियल चटनी, चावल के आटे को भाप में पका कर और कई तरह की सब्जियां मिलाकर अवियल, आदि बनाकर 64 प्रकार के पकवान बनाने की परंपरा है।

 
* केरल के पारंपरिक भोज को ओनसद्या कहा जाता है, जिसे केले के पत्ते पर परोसना शुभ माना गया है।
 
केरल में 10 दिन तक चलने वाला ओणम उत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।
 
- आरके.

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