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मौनी अमावस्या : तिथि, शुभ मुहूर्त, महत्व, मंत्र, नियम, उपाय और कथा

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वर्ष 2022 में 1 फरवरी को माघ मास की मौनी अमावस्या (Mauni Amavasya 2022) मनाई जा रही है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन पवित्र संगम में देवताओं का निवास होता है, इसलिए इस दिन गंगा स्नान और पवित्र तीर्थस्थलों पर स्नान का विशेष महत्व माना गया है। 
 
महत्व- मौनी अमावस्या का दिन बहुत पवित्र होता है। माघ माह में आने वाली अमावस्या को मौनी अथवा माघी अमावस्या के नाम से जाना जाता है। अत: इस दिन उपवास रखकर मौन व्रत धारण करने का बहुत महत्व है। प्राचीन धर्मग्रंथों में भगवान श्रीहरि को पाने का सरल मार्ग माघ मास के पुण्य स्नान को बतलाया गया है, खासकर मौनी अमावस्या के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है।
 
पुराणों के अनुसार माघ महीने में आनेवाली हर तिथि एक पर्व है। मौनी अमावस्या के दिन जो लोग गंगा, कुंभ, नदी या सरोवर तट पर जाकर स्नान नहीं कर सकते, वो घर में गंगा जल डालकर स्नान करें तब भी उन्हें अनंत फल की प्राप्ति होती है।


इस बार मौनी अमावस्या (Mauni Amavasya) की तिथि 31 जनवरी से शुरू होकर 1 फरवरी तक रहेगी और यह अमावस्या 1 फरवरी 2022 (1 February 2022) को पड़ रही है। मान्यतानुसार हिंदू धर्म की सभी अमावस्याओं में माघ मास कृष्‍ण पक्ष की मौनी अमावस्या को बहुत ही पवित्र और शुभ माना जाता है। इस दिन पूरे विधि-विधान से गंगा स्नान तथा दान करने से जीवन की परेशानियों का अंत होकर सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। 
 
Mauni Amavasya 2022 Muhurat 2022- मौनी अमावस्या के मुहूर्त
 
इस बार माघ कृष्ण मौनी अमावस्या तिथि का आरंभ सोमवार, 31 जनवरी 2022 को रात्रि 02.18 मिनट होकर मंगलवार, 01 फरवरी 2022 को प्रातः 11.15 मिनट पर अमावस्या समाप्त होगी। चूंकि अमावस्या तिथि रात्रि को प्रारंभ हो रही है, अत: 01 फरवरी को ही स्नान-दान आदि कार्य किए जा सकेंगे। 
 
मंत्र-Mauni Amavasya Mantra
 
- 'अयोध्या, मथुरा, माया, काशी कांचीर् अवन्तिका, पुरी, द्वारावतीश्चैव: सप्तैता मोक्षदायिका'।।
- 'गंगे च यमुनेश्चैव गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु, कावेरी जलेस्मिनेसंनिधि कुरू'।।
 
मौनी अमावस्या के उपाय-Mauni Amavasya Upay
 
1. मौनी अमावस्या के दिन मौन रहकर आचरण करने तथा उपवास रखकर स्नान-दान करने का विशेष महत्व है।

 
2. माघ मास में पवित्र नदियों में स्नान करने से एक विशेष ऊर्जा प्राप्त होती है। 
 
3. इस दिन सूर्य नारायण को अर्घ्य देने से गरीबी दूर होती है।
 
4. अमावस्या के दिन 108 बार तुलसी परिक्रमा करना चाहिए। 
 
5. इस दिन मंत्र जाप, सिद्धि साधना एवं दान देकर मौन व्रत को धारण करने से पुण्य प्राप्ति और भगवान का आशीर्वाद मिलता है।
 
6. जिन लोगों का चंद्रमा कमजोर है, वह गाय को दही और चावल खिलाएं तो मानसिक शांति प्राप्त होगी।

 
7. जो लोग घर पर स्नान करके अनुष्ठान करना चाहते हैं, उन्हें पानी में थोड़ा-सा गंगा जल मिलाकर तीर्थों का आह्वान करते हुए स्नान करना चाहिए।
 
8. मौनी, माघी अमावस्या के दिन जप-तप, ध्यान-पूजन करने से विशेष धर्मलाभ प्राप्त होता है। 
 
9. माघ मास में अमावस्या पर नदी स्नान एवं पूजन करने से भगवान श्रीहरि की कृपा प्राप्त की जा सकती है। 
 
10. माघ मास में नदी स्नान से स्वर्ग प्राप्ति का मार्ग मिलता है।

 
मौनी अमावस्या के नियम- Mauni Amavasya Niyam 
 
1. मौनी अमावस्या के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान से पहले व्रत का संकल्प लें। 
 
2. फिर ब्रह्म मुहूर्त में गंगा नदी, सरोवर तट या पवित्र कुंड में स्नान करें।
 
3. स्नान के पश्चात साफ और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
 
4. एक तांबे के लोटे में जल भरकर काले तिल मिलाकर सूर्यदेव को अर्घ्य दें। 

 
5. सूर्य अर्घ्य के बाद मंत्रों का जप और अपने सामर्थ्यनुसार दान करें।
 
6. मौनी अमावस्या के दिन गुस्सा करने से बचें, अपशब्दों का प्रयोग न करें, वाद-विवाद तथा नशा न करें।
 
7. मौनी अमावस्या के दिन ईश्वर की भक्ति में लीन रहते हुए अपना आचरण शुद्ध रखें।
 
8. यदि संभव हो दिनभर मौन व्रत धारण करके व्रत रखें। 
 
मौनी अमावस्या की कथा-Mauni Amavasya katha
 
मौनी अमावस्या की पौराणिक कथा- पुराणों के अनुसार कांचीपुरी में एक ब्राह्मण रहता था। उसका नाम देवस्वामी तथा उसकी पत्नी का नाम धनवती था। उनके सात पुत्र तथा एक पुत्री थी। पुत्री का नाम गुणवती था। ब्राह्मण ने सातों पुत्रों को विवाह करके बेटी के लिए वर खोजने अपने सबसे बड़े पुत्र को भेजा। उसी दौरान किसी पंडित ने पुत्री की जन्मकुंडली देखी और बताया, सप्तपदी (सात वचन) होते-होते यह कन्या विधवा हो जाएगी। तब उस ब्राह्मण ने पंडित से पूछा- पुत्री के इस वैधव्य दोष का निवारण कैसे होगा? 
 
पंडित ने कहा- सोमा का पूजन करने से वैधव्य दोष दूर होगा। फिर सोमा का परिचय देते हुए उसने बताया, वह एक धोबिन है। उसका निवास स्थान सिंहल द्वीप है। उसे जैसे-तैसे प्रसन्न करो और गुणवती के विवाह से पूर्व उसे यहां बुला लो। तब देवस्वामी का सबसे छोटा लड़का बहन को अपने साथ लेकर सिहंल द्वीप जाने के लिए सागर तट पर चला गया। सागर पार करने की चिंता में दोनों एक वृक्ष की छाया में बैठ गए। उस पेड़ पर एक घोंसले में गिद्ध का परिवार रहता था। उस समय घोंसले में सिर्फ गिद्ध के बच्चे थे। गिद्ध के बच्चे भाई-बहन के क्रिया-कलापों को देख रहे थे। सायंकाल के समय उन बच्चों (गिद्ध के बच्चों) की मां आई तो उन्होंने भोजन नहीं किया। 
 
वह अपनी मां से बोले- नीचे दो प्राणी सुबह से भूखे-प्यासे बैठे हैं। जब तक वे कुछ नहीं खा लेते, तब तक हम भी कुछ नहीं खाएंगे। तब दया और ममता के वशीभूत गिद्ध माता उनके पास आई और बोली - मैंने आपकी इच्छाओं को जान लिया है। इस वन में जो भी फल-फूल कंद-मूल मिलेगा, मैं ले आती हूं। आप भोजन कर लीजिए। मैं प्रात:काल आपको सागर पार करा कर सिंहल द्वीप की सीमा के पास पहुंचा दूंगी और वे दोनों भाई-बहन माता की सहायता से सोमा के यहां जा पहुंचे। वे नित्य प्रात: उठकर सोमा का घर झाड़ कर लीप देते थे।

 
एक दिन सोमा ने अपनी बहुओं से पूछा, हमारे घर कौन बुहारता है, कौन लीपता-पोतता है? सबने कहा, हमारे सिवाय और कौन बाहर से इस काम को करने आएगा? किंतु सोमा को उनकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ। एक दिन उसने रहस्य जानना चाहा। वह सारी रात जागी और सबकुछ प्रत्यक्ष देखकर जान गई। सोमा का उन बहन-भाई से वार्तालाप हुआ। भाई ने सोमा को बहन संबंधी सारी बात बता दी। 
 
सोमा ने उनकी श्रम-साधना तथा सेवा से प्रसन्न होकर उचित समय पर उनके घर पहुंचने का वचन देकर कन्या के वैधव्य दोष निवारण का आश्वासन दे दिया। मगर भाई ने उससे अपने साथ चलने का आग्रह किया। आग्रह करने पर सोमा उनके साथ चल दी। चलते समय सोमा ने बहुओं से कहा - मेरी अनुपस्थिति में यदि किसी का देहांत हो जाए तो उसके शरीर को नष्ट मत करना। मेरा इंतजार करना और फिर सोमा बहन-भाई के साथ कांचीपुरी पहुंच गई। 
 
दूसरे दिन गुणवती के विवाह का कार्यक्रम तय हो गया। सप्तपदी होते ही उसका पति मर गया। सोमा ने तुरंत अपने संचित पुण्यों का फल गुणवती को प्रदान कर दिया। तुरंत ही उसका पति जीवित हो उठा। सोमा उन्हें आशीर्वाद देकर अपने घर चली गई। उधर गुणवती को पुण्य-फल देने से सोमा के पुत्र, जामाता तथा पति की मृत्यु हो गई। सोमा ने पुण्य फल संचित करने के लिए मार्ग में अश्वत्थ (पीपल) वृक्ष की छाया में विष्णुजी का पूजन करके 108 परिक्रमाएं की। इसके पूर्ण होने पर उसके परिवार के मृतक जन जीवित हो उठे। 

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