Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

Matsya Jayanti 2024: मत्स्य जयंती आज, जानें क्यों लिया था भगवान विष्णु ने मत्स्यावतार

मत्स्य जयंती पर पढ़ें भगवान श्रीहरि के मत्स्य अवतार की रोचक कथा

हमें फॉलो करें Matsya Jayanti 2024: मत्स्य जयंती आज, जानें क्यों लिया था भगवान विष्णु ने मत्स्यावतार

WD Feature Desk

, गुरुवार, 11 अप्रैल 2024 (13:44 IST)
matsyavtar jayanti 11 April
HIGHLIGHTS
 
• भगवान के मत्स्य अवतार की कथा।
• श्रीविष्‍णु ने चैत्र शुक्ल तृतीया पर लिया था मत्स्य अवतार।
• विष्णु जी का पहला अवतार मत्स्य जयंती के रूप में जाना जाता है। 

ALSO READ: मत्स्य जयंती : श्रीहरि विष्णु के मत्स्य अवतार की कथा किस अब्राहमिक धर्मों में बदलती गई
 
matsyawataar story : आज मत्स्य जयंती है। यह दिन प्रतिवर्ष चैत्र मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर मनाया जाता है। जो इस बार 11 अप्रैल 2024 को पड़ रहा है। इसी दिन भगवान श्रीहरि विष्‍णु ने मत्स्यावतार लिया था। इस संबंध में कई मान्यताएं प्रचलित हैं। 
 
भगवान विष्णु के प्रथम अवतार 'मत्स्य अवतार' है। मछली के रूप में अवतार लेकर भगवान विष्णु ने एक ऋषि को सब प्रकार के जीव-जंतु एकत्रित करने के लिए कहा और पृथ्वी जब जल में डूब रही थी, तब मत्स्य अवतार में भगवान ने उस ऋषि की नाव की रक्षा की। इसके पश्चात ब्रह्मा ने पुन: जीवन का निर्माण किया।
 
एक दूसरी मान्यता के अनुसार एक राक्षस ने जब वेदों को चुराकर सागर की अथाह गहराई में छुपा दिया, तब भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण करके वेदों को प्राप्त किया और उन्हें पुन: स्थापित किया।
 
एक बार ब्रह्माजी की असावधानी के कारण एक बहुत बड़े दैत्य ने वेदों को चुरा लिया। उस दैत्य का नाम हयग्रीव था। वेदों को चुरा लिए जाने के कारण ज्ञान लुप्त हो गया। चारों ओर अज्ञानता का अंधकार फैल गया और पाप तथा अधर्म का बोलबाला हो गया। तब भगवान विष्णु ने धर्म की रक्षा के लिए मत्स्य रूप धारण करके हयग्रीव का वध किया और वेदों की रक्षा की।
आइए यहां जानते हैं इसकी कथा- 
 
भगवान ने मत्स्य का रूप किस प्रकार धारण किया था, आइए जानते हैं इस कथा में- कल्पांत के पूर्व एक पुण्यात्मा राजा तप कर रहा था। राजा का नाम सत्यव्रत था। सत्यव्रत पुण्यात्मा तो था ही, बड़े उदार हृदय का भी था। प्रभात का समय था। सूर्योदय हो चुका था। सत्यव्रत कृतमाला नदी में स्नान कर रहा था। उसने स्नान करने के पश्चात जब तर्पण के लिए अंजलि में जल लिया तो अंजलि में जल के साथ एक छोटी-सी मछली भी आ गई।
 
सत्यव्रत ने मछली को नदी के जल में छोड़ दिया। मछली बोली- राजन! जल के बड़े-बड़े जीव छोटे-छोटे जीवों को मारकर खा जाते हैं, अवश्य कोई बड़ा जीव मुझे भी मारकर खा जाएगा। कृपा करके मेरे प्राणों की रक्षा कीजिए। सत्यव्रत के हृदय में दया उत्पन्न हो उठी। उसने मछली को जल से भरे हुए अपने कमंडलु में डाल लिया। 
 
तभी एक आश्चर्यजनक घटना घटी। एक रात में मछली का शरीर इतना बढ़ गया कि कमंडलु उसके रहने के लिए छोटा पड़ने लगा। दूसरे दिन मछली सत्यव्रत से बोली- राजन! मेरे रहने के लिए कोई दूसरा स्थान ढूंढिए, क्योंकि मेरा शरीर बढ़ गया है। मुझे घूमने-फिरने में बड़ा कष्ट होता है। सत्यव्रत ने मछली को कमंडलु से निकालकर पानी से भरे हुए मटके में रख दिया। यहां भी मछली का शरीर रातभर में ही मटके में इतना बढ़ गया कि मटका भी उसके रहने के लिए छोटा पड़ गया।
 
दूसरे दिन मछली पुन: सत्यव्रत से बोली- राजन! मेरे रहने के लिए कहीं और प्रबंध कीजिए, क्योंकि मटका भी मेरे रहने के लिए छोटा पड़ रहा है। तब सत्यव्रत ने मछली को निकालकर एक सरोवर में डाल किया, किंतु सरोवर भी मछली के लिए छोटा पड़ गया। इसके बाद सत्यव्रत ने मछली को नदी और फिर उसके बाद समुद्र में डाल दिया।
 
आश्चर्य! समुद्र में भी मछली का शरीर इतना अधिक बढ़ गया कि मछली के रहने के लिए वह छोटा पड़ गया। अत: मछली पुन: सत्यव्रत से बोली- राजन! यह समुद्र भी मेरे रहने के लिए उपयुक्त नहीं है। मेरे रहने की व्यवस्था कहीं और कीजिए। अब सत्यव्रत विस्मित हो उठा। उसने आज तक ऐसी मछली कभी नहीं देखी थी। वह विस्मयभरे स्वर में बोला- मेरी बुद्धि को विस्मय के सागर में डुबो देने वाले आप कौन हैं?
 
मत्स्यरूपधारी श्रीहरि ने उत्तर दिया- राजन! हयग्रीव नामक दैत्य ने वेदों को चुरा लिया है। जगत में चारों ओर अज्ञान और अधर्म का अंधकार फैला हुआ है। मैंने हयग्रीव को मारने के लिए ही मत्स्य का रूप धारण किया है। आज से 7वें दिन पृथ्वी प्रलय के चक्र में फिर जाएगी। समुद्र उमड़ उठेगा। भयानक वृष्टि होगी। सारी पृथ्वी पानी में डूब जाएगी। जल के अतिरिक्त कहीं कुछ भी दृष्टिगोचर नहीं होगा।

आपके पास एक नाव पहुंचेगी। आप सभी अनाजों और औषधियों के बीजों को लेकर सप्त ऋषियों के साथ नाव पर बैठ जाइएगा। मैं उसी समय आपको पुन: दिखाई पडूंगा और आपको आत्मतत्त्व का ज्ञान प्रदान करूंगा।
 
सत्यव्रत उसी दिन से श्रीहरि का स्मरण करते हुए प्रलय की प्रतीक्षा करने लगे। 7वें दिन प्रलय का दृश्य उपस्थित हो उठा। समुद्र भी उमड़कर अपनी सीमाओं से बाहर बहने लगा। भयानक वृष्टि होने लगी। थोड़ी ही देर में सारी पृथ्वी पर जल ही जल हो गया। संपूर्ण पृथ्वी जल में समा गई। तभी उसी समय एक नाव दिखाई पड़ी। सत्यव्रत सप्त ऋषियों के साथ उस नाव पर बैठ गए। उन्होंने नाव के ऊपर संपूर्ण अनाजों और औषधियों के बीज भी भर लिए।
 
नाव प्रलय के सागर में तैरने लगी। प्रलय के उस सागर में उस नाव के अतिरिक्त कहीं भी कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था। सहसा मत्स्यरूपी भगवान प्रलय के सागर में दिखाई पड़े। सत्यव्रत और सप्त ऋषिगण मत्स्यरूपी भगवान की प्रार्थना करने लगे। भगवान से आत्मज्ञान पाकर सत्यव्रत का जीवन धन्य हो उठा। वे जीते-जी ही जीवनमुक्त हो गए।

प्रलय का प्रकोप शांत होने पर मत्स्यरूपी भगवान ने हयग्रीव को मारकर उससे वेद छीन लिए। भगवान ने ब्रह्मा जी को पुन: वेद दे दिए। इस प्रकार भगवान ने मत्स्य रूप धारण करके वेदों का उद्धार तो किया ही, साथ ही संसार के प्राणियों का भी अमिट कल्याण किया। अत: मत्स्य जयंती के दिन इस कथा को पढ़ने अथवा सुनने का बहुत महत्व है। 
 
अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न सोर्स से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। सेहत या ज्योतिष संबंधी किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। इस कंटेंट को जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है जिसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

मत्स्य जयंती : श्रीहरि विष्णु के मत्स्य अवतार की कथा किस अब्राहमिक धर्मों में बदलती गई