आज कालभैरव जयंती मनाई जा रही है। भगवान भैरव की महिमा अनेक शास्त्रों में मिलती है। भैरव जहां शिव के गण के रूप में जाने जाते हैं, वहीं वे दुर्गा के अनुचारी माने गए हैं। उनकी सवारी कुत्ता है। अत: इस दिन कुत्ते की सेवा करने तथा भैरव जी की पूजा, मंत्र जाप करने से जीवन के कष्ट दूर होते हैं। आइए जानते हैं भैरव जी के पूजन के बारे में-
कालभैरव जयंती/ भैरवाष्टमी के मुहूर्त : Kalabhairav Jayanti Muhurat
कालभैरव जयंती, बुधवार, 16 नवंबर 2022
मार्गशीर्ष अष्टमी तिथि का प्रारंभ- 16 नवंबर 2022 को 05.49 ए एम से शुरू
अष्टमी तिथि का समापन- 17 नवंबर, 2022 को 07:57 ए एम पर।
अष्टमी के दिन पूजन के 2 शुभ चौघड़िया मुहूर्त-
लाभ- उन्नति- सुबह 06.44 से 08.05 बजे तक।
अमृत- सर्वोत्तम- सुबह 08.05 से 09.25 बजे तक।
सरल पूजा विधि- Saral Puja Vidhi
- कालभैरव जयंती के दिन ब्रह्म मुहूर्त में नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें।
- लकड़ी के पटिये पर सबसे पहले शिव और पार्वती जी का चित्र स्थापित करके फिर काल भैरव के चित्र को स्थापित करें।
- आचमन करके भगवान को गुलाब का हार पहनाएं अथवा पुष्प चढ़ाएं।
- फिर चौमुखी दीया जलाकर गुग्गल की धूप जला दें।
- हल्दी, कुमकुम से सभी को तिलक लगाए तथा हथेली में गंगाजल लेकर व्रत का संकल्प लें।
- शिव-पार्वती तथा भैरव जी पूजन करके आरती उतारें।
- अब अपने पितरों को याद करके उनका श्राद्ध करें।
- व्रत के पूर्ण होने के बाद काले कुत्ते को मीठी रोटी या कच्चा दूध पिलाएं।
- पुन: अर्द्धरात्रि में धूप, काले तिल, दीपक, उड़द और सरसों के तेल से काल भैरव की पूजा करें।
- इस दिन व्रत रखें तथा रात में भजन-कीर्तन करके भैरव जी की महिमा गाएं।
- इस दिन शिव चालीसा, भैरव चालीसा तथा उनके मंत्रों का जाप करें।
कालभैरव के 5 मंत्र- Mantra
- 'ॐ कालभैरवाय नम:।'
- अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्,
भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि!!
- 'ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम:।'
- 'ॐ भयहरणं च भैरव:।'
- 'ॐ भ्रां कालभैरवाय फट्।'
उपाय-Kalabhairav ke upay
- कालभैरव जयंती के दिन चमेली के पुष्प से भैरव गी उपासना करें, क्योंकि कालभैरव का यह प्रिय फूल है। अत: उनकी उपासना में इसका विशेष महत्व है।
- सवा सौ ग्राम काले तिल, सवा सौ ग्राम काले उड़द, सवा 11 रुपए, सवा मीटर काले कपड़े में पोटली बनाकर भैरव नाथ के मंदिर में बुधवार के दिन चढ़ाएं।
- भैरव जी को रात्रि के देवता माना जाता हैं, अत: मध्यरात्रि में 12 से 3 बजे के बीच का खास समय में इनकी आराधना के लिए विशेष है। अत: इस समय पूजन करें लाभ उठाएं।
- भैरव जयंती तथा भैरव अष्टमी के दिन काले कुत्ते को मिष्ठान खिलाकर दूध पिलाएं।
- कालभैरव जी को हलुआ, पूरी, इमरती, जलेबी, मदिरा आदि उनके प्रिय भोग हैं अत: भैरव जयंती के दिन भैरव मंदिर जाकर उन्हें ये प्रिय वस्तुएं अर्पित करें।
पुराणों के अनुसार भैरव कलियुग के जागृत देवता हैं। बाबा भैरव को माता वैष्णो देवी का वरदान प्राप्त है। शिव पुराण में भैरव को महादेव का पूर्ण रूप बताया गया है। अत: जीवन के हर संकट से मुक्ति पाना है तो जातक को भैरव चालीसा का यह चमत्कारिक पाठ अवश्य पढ़ना चाहिए। आइए यहां पढ़ें संपूर्ण पाठ...
श्री भैरव चालीसा-Shri Bhairav Chalisa
दोहा
श्री गणपति गुरु गौरी पद प्रेम सहित धरि माथ।
चालीसा वंदन करो श्री शिव भैरवनाथ॥
श्री भैरव संकट हरण मंगल करण कृपाल।
श्याम वरण विकराल वपु लोचन लाल विशाल॥
जय जय श्री काली के लाला। जयति जयति काशी- कुतवाला॥
जयति बटुक- भैरव भय हारी। जयति काल- भैरव बलकारी॥
जयति नाथ- भैरव विख्याता। जयति सर्व- भैरव सुखदाता॥
भैरव रूप कियो शिव धारण। भव के भार उतारण कारण॥
भैरव रव सुनि हवै भय दूरी। सब विधि होय कामना पूरी॥
शेष महेश आदि गुण गायो। काशी- कोतवाल कहलायो॥
जटा जूट शिर चंद्र विराजत। बाला मुकुट बिजायठ साजत॥
कटि करधनी घुंघरू बाजत। दर्शन करत सकल भय भाजत॥
जीवन दान दास को दीन्ह्यो। कीन्ह्यो कृपा नाथ तब चीन्ह्यो॥
वसि रसना बनि सारद- काली। दीन्ह्यो वर राख्यो मम लाली॥
धन्य धन्य भैरव भय भंजन। जय मनरंजन खल दल भंजन॥
कर त्रिशूल डमरू शुचि कोड़ा। कृपा कटाक्ष सुयश नहिं थोडा॥
जो भैरव निर्भय गुण गावत। अष्टसिद्धि नव निधि फल पावत॥
रूप विशाल कठिन दुख मोचन। क्रोध कराल लाल दुहुं लोचन॥
अगणित भूत प्रेत संग डोलत। बम बम बम शिव बम बम बोलत॥
रुद्रकाय काली के लाला। महा कालहू के हो काला॥
बटुक नाथ हो काल गंभीरा। श्वेत रक्त अरु श्याम शरीरा॥
करत नीनहूं रूप प्रकाशा। भरत सुभक्तन कहं शुभ आशा॥
रत्न जड़ित कंचन सिंहासन। व्याघ्र चर्म शुचि नर्म सुआनन॥
तुमहि जाइ काशिहिं जन ध्यावहिं। विश्वनाथ कहं दर्शन पावहिं॥
जय प्रभु संहारक सुनन्द जय। जय उन्नत हर उमा नन्द जय॥
भीम त्रिलोचन स्वान साथ जय। वैजनाथ श्री जगतनाथ जय॥
महा भीम भीषण शरीर जय। रुद्र त्रयम्बक धीर वीर जय॥
अश्वनाथ जय प्रेतनाथ जय। स्वानारुढ़ सयचंद्र नाथ जय॥
निमिष दिगंबर चक्रनाथ जय। गहत अनाथन नाथ हाथ जय॥
त्रेशलेश भूतेश चंद्र जय। क्रोध वत्स अमरेश नन्द जय॥
श्री वामन नकुलेश चण्ड जय। कृत्याऊ कीरति प्रचण्ड जय॥
रुद्र बटुक क्रोधेश कालधर। चक्र तुण्ड दश पाणिव्याल धर॥
करि मद पान शम्भु गुणगावत। चौंसठ योगिन संग नचावत॥
करत कृपा जन पर बहु ढंगा। काशी कोतवाल अड़बंगा॥
देयं काल भैरव जब सोटा। नसै पाप मोटा से मोटा॥
जनकर निर्मल होय शरीरा। मिटै सकल संकट भव पीरा॥
श्री भैरव भूतों के राजा। बाधा हरत करत शुभ काजा॥
ऐलादी के दुख निवारयो। सदा कृपाकरि काज सम्हारयो॥
सुन्दर दास सहित अनुरागा। श्री दुर्वासा निकट प्रयागा॥
श्री भैरव जी की जय लेख्यो। सकल कामना पूरण देख्यो॥
दोहा
जय जय जय भैरव बटुक स्वामी संकट टार।
कृपा दास पर कीजिए शंकर के अवतार॥