सावन में रिमझिम फुहारों की शीतलता से लोगों का मन पुलकित हो उठता है। ग्रीष्म ऋतु के प्रचंड रूप से त्रस्त होकर लोग वर्षा के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे होते हैं। तब चारों ओर हरियाली छा जाती है और इसी सुहावने मौसम के स्वागत में मनाया जाता है- कजरी तीज का त्योहार।
त्योहार के विविध रंग : बुंदेलखंड में इस अवसर पर घर के पूजा स्थल पर भगवान के लिए छोटा झूला स्थापित करके उसे आम या अशोक के पल्लव और रंग-बिरंगे फूलों से सजाया जाता है। फिर स्त्रियां भगवान श्रीकृष्ण के विग्रह को झूले पर रखकर श्रद्धा से झुलाते हुए मधुर स्वर में लोकगीत गाती हैं। इस अवसर पर श्रावण मास की सुंदरता से जुडे खास तरह के लोकगीत गाए जाते हैं, जिन्हें कजरी कहा जाता है।
बिहार के मिथिलांचल में भी सुहागन स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु के लिए तीज का व्रत रखती हैं। वहां की बेटियां विवाह के बाद का त्योहार अपने मायके में बड़े धूमधाम से मनाती हैं। राजस्थान में भी यह पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
वहां इस अवसर पर विभिन्न प्रकार के पकवान और घेवर नामक खास मिष्ठान बनाकर बेटियों की ससुराल में भेजा जाता है, जिसे सिंघारा कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन देवी पार्वती विराहाग्नि में तपकर शिवजी से मिली थीं। इसलिए तीज के अवसर पर वहां माता पार्वती की भी पूजा की जाती है और शहरों में बडी धूमधाम से उनकी सवारी निकाली जाती है।
प्रकृति से जुडा पर्व : प्रकृति की दृष्टि से भी इस त्योहार को महत्वपूर्ण माना जाता है। वर्षा ऋतु के आते ही खेतों में धान सहित अन्य खरीफ फसलों की बुआई शुरू हो जाती है। सभी समुदायों में इस अवसर पर हर्षोल्लास व्याप्त रहता है। जब धरती पर चारों ओर हरियाली छा जाती है तो स्त्रियां भी हरे रंग के वस्त्र और चूड़ियां पहनकर लोकगीत गाते हुए सावन के महीने का स्वागत करती हैं। देश के विभिन्न प्रांतों में इस दिन स्त्रियां और बालिकाएं हाथों में मेहंदी रचा कर झूला झूलते हुए अपना उल्लास प्रकट करती हैं। तीज ही एक ऐसा विशेष अवसर है, जब साल में सिर्फ एक बार वृंदावन में श्री बांकेबिहारी जी को स्वर्ण-रजत हिंडोले में बिठाया जाता है। उनकी एक झलक पाने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है।
प्रचलित कथा के अनुसार : इसी दिन राधारानी अपनी ससुराल नंदगांव से बरसाने आती हैं। मथुरा और ब्रज का विश्वप्रसिद्ध हरियाली तीज पर्व प्रत्येक समुदाय के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है। वहां के सभी मंदिरों में होने वाला झूलन उत्सव भी हरियाली तीज से ही आरंभ हो जाता है, जो कार्तिक पूर्णिमा को संपन्न होता है।
झूले पर ठाकुरजी के साथ श्रीराधारानी का विग्रह भी स्थापित किया जाता है। मनोहारी प्राकृतिक दृश्यों के माध्यम से सावन मास चारों ओर अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है। इसीलिए स्त्रियां भी सज-धजकर प्रकृति के इस सुंदर रूप का स्वागत करती हैं। कुल मिलाकर मेहंदी, लहरिया, झूले और हरियाले श्रृंगार का पुनीत पर्व है तीज...।