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मार्गशीर्ष माह की अमावस्या का महत्व, इस दिन क्या करें और क्या नहीं करना चाहिए?

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WD Feature Desk

, शुक्रवार, 22 नवंबर 2024 (14:21 IST)
Margashirsha Amavasya 2024: मार्गशीर्ष माह का पुराणों में बहुत महत्व बताया गया है। इसमें भी एकादशी, पूर्णिमा और अमावस्या का खास महत्व है। मार्गशीर्ष माह की अमावस्या को अगहन अमावस्या भी कहते हैं। इस दिन पितरों की शांति के लिए तर्पण, स्नान, दान-धर्म आदि कार्य किए जाने का महत्व है। मार्गशीर्ष अमावस्या पर देवी लक्ष्मी का पूजन करना भी बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन सत्यनारायण भगवान की पूजा करने से सभी तरह के संकट मिट जाते हैं।ALSO READ: मार्गशीर्ष के गुरुवार को महाविष्णु की उपासना का महत्व और जानिए सरल पूजा विधि
 
मार्गशीर्ष अमावस्या का महत्व:- 
1. इस दिन पितरों की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान, स्नान एवं दान करने का महत्व है।
2. इस दिन किए जाने वाले पितरों का तर्पण करने से पितरों को शांति मिलती हैं। 
3. इस दिन व्रत रखने से सभी तरह के संकटों का अंत होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। 
4. यदि आप व्रत नहीं रख रहे हैं तो पेड़ या पौधे में जल अर्पित करें।
5. इस दिन भगवान सत्यनारायण की कथा का पाठ और पूजा करने से पितरों को शांति मिलती है।
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Satyanarayan Bhagwan
मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन क्या करें:-
1. इस दिन पितरों की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान, स्नान एवं दान करें। 
2. इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा करना बहुत ही शुभ माना गया है।
3. इस दिन व्रत रखकर किसी पवित्र तालाब, कुंड या नदी में स्नान करने का महत्व भी है।
4. इस दिन सूर्य को अर्घ्य भी देने का महत्व है।
5. इस दिन स्नान के बाद बहती हुई नदी में जल में तिल प्रवाहित करें और गायत्री मंत्र का पाठ करें।
6. इस दिन सत्यनारायण भगवान की कथा रखना या करना और साथ ही उनका पूजन करना बहुत ही शुभ होता है। 
7. मार्गशीर्ष अमावस्या का व्रत रखने से सभी तरह के संकटों का अंत होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
 
मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन क्या न करें:-
1. इस दिन दिन में शयन न करें।
2. इस दिन किसी भी प्रकार का नशा न करें।
3. इस दिन किसी भी प्रकार का तामसिक भोजन न करें।
4. इस दिन वाणी पर नियंत्रण रखें और किसी को भी अपशब्द न कहें।
 
मार्गशीर्ष अमावस्या व्रत और पूजा विधि
1. इस दिन सुबह जल्दी उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करें और सूर्य देव को अर्घ्य दें। नदी नहीं है तो पानी में गंगाजल मिलकर स्नान करें। 
2. स्नान के बाद नदी है तो बहते हुए जल में तिल प्रवाहित करें। नदी नहीं है तो तरभाणे में जल भरकर ये कार्य करें।
3. नदी को तो विधिवत पर्तण करें।
4. इसके बाद गायत्री मंत्र 12 बार उच्चारण करें।
5. इसके बाद भगवान विष्णु और भगवान शिव का पूजन करें।
6. पूजा-पाठ के बाद भोजन और वस्त्र आदि का यथाशक्ति किसी गरीब ब्राह्मण को दान करें।

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