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मेहंदी, श्रृंगार और झूले का सुहाग पर्व है हरियाली तीज

हमें फॉलो करें मेहंदी, श्रृंगार और झूले का सुहाग पर्व है हरियाली तीज
वर्ष 2022 में हरियाली तीज पर्व 31 जुलाई को मनाया जा रहा है। इस दिन जगह-जगह झूले पड़ते हैं। इस त्योहार में महिलाएं हरा लहरिया या चुनरी में गीत गाती हैं, मेंहदी लगाती हैं, श्रृंगार करती हैं, झूला झूलती हैं और नाचती हैं...
 
प्रतिवर्ष श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर हरियाली तीज (Hariyali Teej 2022) मनाई जाती है। इस वर्ष यह त्योहार 31 जुलाई 2022, दिन रविवार को मनाया जा रहा है। इसे श्रावणी तीज, मधुश्रवा तृतीया, छोटी तीज, सिंघारा तीज आदि भी कहते हैं। 
 
प्रकृति की दृष्टि से भी हरियाली तीज का त्योहार महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि वर्षा ऋतु के आते ही खेतों में धान सहित अन्य खरीफ फसलों की बुआई शुरू हो जाती है। इस अवसर पर सभी समुदायों में हर्षोल्लास व्याप्त रहता है। जब धरती पर चारों ओर हरियाली छा जाती है तो महिलाएं भी हरे रंग के वस्त्र और चूड़ियां पहनकर लोकगीत गाते हुए सावन के महीने का स्वागत करती हैं। 
 
देश के विभिन्न प्रांतों में इस दिन महिलाएं और बालिकाएं हाथों में मेहंदी रचा कर झूला झूलते हुए अपना उल्लास प्रकट करती हैं। हरियाली तीज ही एक ऐसा विशेष अवसर है, जब साल में सिर्फ एक बार वृंदावन में श्री बांकेबिहारी जी को स्वर्ण-रजत हिंडोले में बिठाया जाता है। श्री बांके बिहारीजी के दर्शन तथा उनकी एक झलक पाने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ती है। 
 
इस संबंध में प्रचलित कथा के अनुसार इसी दिन राधारानी अपनी ससुराल नंदगांव से बरसाने आती हैं। हरियाली तीज मथुरा और ब्रज का विश्व प्रसिद्ध पर्व है तथा यह हर समुदाय के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना रहता है। यहां सभी मंदिरों में होने वाला झूलन उत्सव भी हरियाली तीज से ही आरंभ हो जाता है, जो कार्तिक पूर्णिमा को संपन्न होता है। 
 
 
हरियाली तीज के दिन झूले पर ठाकुर जी के साथ श्री राधारानी का विग्रह स्थापित किया जाता है तथा बारिश के दिनों में मनोहारी प्राकृतिक दृश्यों के माध्यम से सावन चारों ओर अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है। अत: महिलाएं सज-धजकर प्रकृति के इस सुंदर रूप का स्वागत करती हैं तथा मेहंदी से हाथ रचा कर झूले झूलते हुए'गोरे कंचन गात पर अंगिया रंग अनार। लैंगो सोहे लचकतो, लहरियो लफ्फादार।।'आदि लोकगीत गाती है तथा इस पर्व को बहुत ही हर्षोल्लासपूर्वक मनाती हैं। 
 
तीज के एक दिन पहले यानी द्वितीया तिथि को नवविवाहित महिलाओं के माता-पिता (पीहर पक्ष) अपनी पुत्रियों के घर (ससुराल) सिंजारा भेजते हैं। जबकि कुछ लोग ससुराल से मायके भेजी बहु को सिंजारा भेजते हैं। विवाहित पुत्रियों के लिए भेजे गए उपहारों को सिंजारा कहते हैं, जो कि उस महिला के सुहाग का प्रतीक होता है। इसमें मेहंदी, सिन्दूर, चूड़ी, बिंदी, घेवर, लहरिया साड़ी, मिठाई आदि वस्तुएं सिंजारे के रूप में भेजी जाती हैं। 
 
सिंजारे के इन उपहारों को अपने पीहर से लेकर, विवाहिता स्त्री उन उपहारों से खुद को सजाती है, मेहंदी लगाती है, तरह-तरह के आभूषण पहनती हैं तथा लहरिया साड़ी पहनती है और तीज के पर्व का अपने पति और ससुराल वालों के साथ खूब आनंदपूर्वक मनाती है। इस दिन झूले झूलने का भी अधिक महत्व माना गया है। 
 
हरियाली तीज के दिन प्रत्येक स्त्री रंगबिरंगी लहरिया की साड़ियां पहने ही सब तरफ दिखाई पड़ती हैं। विशेष रूप से तीज के इस त्योहार पर बनाई और खाई जाने वाली खास मिठाई घेवर है और जयपुर का घेवर विश्व प्रसिद्ध है। तीज पर्व का सबसे मीठा उल्लास राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पंजाब में दिखाई देता है, क्योंकि राजस्थान हमेशा से ही तीज-त्योहार, रंगबिरंगे परिधान, उत्सव और लोकगीत तथा रीति-रिवाजों के लिए अधिक प्रसिद्ध है।

हरियाली तीज के दिन प्रत्येक स्त्री रंगबिरंगी लहरिया की साड़ियां पहने ही सब तरफ दिखाई पड़ती हैं। विशेष रूप से तीज के इस त्योहार पर बनाई और खाई जाने वाली खास मिठाई घेवर है और जयपुर का घेवर विश्व प्रसिद्ध है। तीज पर्व का सबसे मीठा उल्लास राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पंजाब में दिखाई देता है, क्योंकि राजस्थान हमेशा से ही तीज-त्योहार, रंगबिरंगे परिधान, उत्सव और लोकगीत तथा रीति-रिवाजों के लिए अधिक प्रसिद्ध है।

राजस्थान के लिए तीज का पर्व एक अलग ही उमंग लेकर आता है, जब महीनों से तपती हुई मरुभूमि में वर्षा ऋतु में रिमझिम करता सावन बरसता है, तो यह समय भी निश्चित ही किसी उत्सव से कम नहीं होता है। कुल मिलाकर हरियाली तीज पर्व झूला, मेहंदी, श्रृंगार और लहरिया का त्योहार है और ही सब चीजें इस पर्व को और भी अधिक खास बनाती है।

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