छठ पर्व सूर्यदेव की पूजा के लिए प्रसिद्ध है। देशभर में 26 अक्टूबर (गुरुवार) को छठ पर्व मनाया जाएगा। छठ पर्व सूर्यदेव की पूजा के लिए प्रसिद्ध है। माना जाता है कि छठ यानी षष्ठी देवी सूर्यदेव की बहन है। इसीलिए छठ के दिन छठ देवी को प्रसन्न करने के लिए सूर्य देव की पूजा की जाती है।
2014 में जब प्रधानमंत्री मोदी बिहार दौरे पर गए थे तब उन्होंने छठ पर्व के बारे में अपने विचारों को अभिव्यक्त किया था। प्रस्तुत है मोदी के विचारों के प्रमुख बिंदू ....
1. हम सभी उगते सूरज के पुजारी हैं लेकिन बिहारी समाज ऐसा है जो सूरज के हर रूप की पूजा करता है। ढलते सूरज की पूजा करना एक अनोखे संस्कार के बैगर संभव नहीं होता है। उगते सूरज की पूजा तो सब करते हैं लेकिन सूरज के हर रुप की पूजा करना और छठ की पूजा करना अपने आप में अद्भुत है।
2. छठ पूजा व्यक्तिगत श्रद्धा, भक्ति और उमंग का तो पर्व है लेकिन हमारे पूर्वजों ने छठ पूजा के साथ महत्वपूर्ण चीज जोड़ी है, जिसके लिए मुझे बड़ा गर्व होता है- कितना ही पान खाने का शौक हो लेकिन छठ पूजा के दिन कोई कही गंदगी नहीं करता है। इतना सफाई का आग्रह रहता है कि चारों तरफ स्वच्छता का माहौल होता है और यह अपने आप में बहुत बड़े संस्कार हैं।
3. ये देश विविधताओं से भरा हुआ है और हमें उन विविधताओं का आदर-सम्मान करना चाहिए। इस समाज को तोड़ने वाली शक्तियां बहुत है लेकिन जोड़ने वाली बहुत कम है। इसके लिए हमें एकता के सूत्र में मिलकर काम करना होगा।
4. बिहारी और गुजराती के बीच दीवार नहीं होनी चाहिए। आप भी भारत माता के बेटे हैं और हम भी भारत माता के बेटे हैं। क्या मां के दूध में दरार हो सकती है और हम इसी मां के दूध को पीकर बड़े हुए है, जिसमे दरार नहीं हो सकती है। गुजरात में बिहार के लोग बहुत रहते हैं। जो सूर्य के हर रूप की पूजा करते हैं। वो सूर्य पुत्री तापी के पास ज्यादा रहते हैं। इसीलिए आपका और हमारा नाता बड़ा अटूट है।
छठ पर्व का महत्व
हिन्दू धर्म में छठ पर्व का बहुत महत्व है। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से आरंभ होकर सप्तमी तक चलता है। पहले दिन यानि चतुर्थी तिथि को नहाय-खाय के रूप में मनाया जाता है। दूसरे दिन यानि पंचमी को खरना व्रत किया जाता है। इस दिन शाम के समय व्रत करने वाले खीर और गुड़ के अलावा फल का सेवन करते हैं। इसके बाद अगले 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखा जाता है। माना जाता है कि खरना पूजन से छठ देवी प्रसन्न होती है और घर में वास करती हैं। इसके बाद षष्ठी को किसी नदी या जलाशय के में उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही इस महापर्व का समापन होता है।