धर्मग्रंथों के अनुसार माघ मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को भीष्म द्वादशी मनाई जाती है। इसे गोविंद द्वादशी भी कहते हैं।
इस वर्ष यह व्रत शनिवार, 16 फरवरी को मनाया जा रहा है। मत-मतांतर के चलते कई स्थानों पर यह व्रत शुक्रवार, 15 फरवरी को भी मनाया गया। यह व्रत करने वालों को संतान की प्राप्ति होकर समस्त धन-धान्य, सौभाग्य का सुख मिलता है। यह व्रत करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
पुराणों में यह व्रत समस्त कार्य को सिद्ध करने वाला होता है। यह व्रत पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास के साथ करना चाहिए। इसकी पूजा एकादशी के उपवास की भांति ही होती है। यह व्रत बीमारियों को दूर करता है।
आइए जानें कैसे करें पूजन...
* भीष्म द्वादशी के दिन नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान के पश्चात भगवान लक्ष्मीनारायण की पूजा करनी चाहिए।
* इस पूजा में मौली, रोली, कुंमकुंम, केले के पत्ते, फल, पंचामृत, तिल, सुपारी, पान एवं दूर्वा आदि रखना चाहिए।
* पूजा के लिए (दूध, शहद, केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा) मिलाकर पंचामृत से भगवान को भोग लगाएं।
* भीष्म द्वादशी कथा का वाचन करना चाहिए।
* तत्पश्चात लक्ष्मी देवी एवं अन्य देवों की स्तुति-आरती की जाती है।
* पूजन के बाद चरणामृत एवं प्रसाद सभी को बांटें।
* ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद दक्षिणा देनी चाहिए। तत्पश्चात खुद भोजन करें।
* इस दिन अपने पूर्वजों का तर्पण करने का भी विधान है।
यह व्रत सर्वसुखों के साथ-साथ बीमारियों को दूर करने में भी कारगर है। अत: माघ द्वादशी के दिन पूरे मनोभाव से पूजा-पाठ आदि करते हुए दिन व्यतीत करना चाहिए।