भानु सप्तमी कब है, क्या महत्व है और जानिए पौराणिक कथा

WD Feature Desk
मंगलवार, 3 दिसंबर 2024 (10:45 IST)
Bhanu Saptami Vrat: हिंदू पंचांग के अनुसार हर महीने में दो बार सप्तमी तिथि पड़ती है और यदि रविवार को सप्तमी तिथि आ जाती है तो उसे भानु सप्तमी कहा जाता है। इस दिन व्रत रखकर सूर्य देव का पूजन करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस बार 08 दिसंबर 2024 को भानु सप्तमी व्रत किया जा रहा है।

Highlights
  • भानु सप्तमी क्यों मनाई जाती है?
  • भानु सप्तमी महत्व क्या है?
  • भानु सप्तमी पर किसका पूजन किया जाता है?
आइए जानते हैं इस व्रत के बारे में...
 
भानु सप्तमी का महत्व जानें : भानु सप्तमी के दिन की पौराणिक मान्यता के अनुसार इस व्रत में भगवान सूर्य की आराधना करने वाले को हर कार्य में विजय मिलती है तथा उनके समस्त रोगों का नाश होकर व्रतधारी को आरोग्य प्राप्त होता है। नवग्रहों में सूर्यदेव को प्रधान स्थान होने के कारण भगवान रवि या भास्कर की विशेष कृपा मिलती है, इतना ही नहीं इस व्रत से सूर्य ग्रह कोई भी दुष्प्रभाव उक्त मनुष्य के जीवन पर नहीं पड़ता है। 
 
शास्त्रों में सूर्य को आरोग्यदायक माना और कहा गया है। अत: इनकी उपासना से रोग मुक्ति आसान हो जाती है। इस व्रत की धार्मिक मान्यता के मुताबिक यह व्रत संतान प्राप्ति तथा पिता-पुत्र में प्रेम बढ़ाने हेतु भी इस व्रत का अधिक महत्व माना गया है।

इस व्रत को पूर्ण श्रद्धा तथा विश्वास से रखने इसका पूरा लाभ प्राप्त होता है। आज बदलते समय के तथा वर्तमान में आज सूर्य चिकित्सा का उपयोग आयुर्वेदिक और प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में अधिक किया जाने लगा है, अत: सूर्य की तरफ मुख करके सूर्य स्तुति करने से शारीरिक बीमारी तथा चर्म रोग, हड्डियों की कमजोरी तथा जोड़ों में दर्द आदि समाप्त जाते हैं। इस दिन किसी भी जलाशय वा नदी में सूर्योदय होने से पूर्व स्नान करके उगते सूर्य की आराधना करनी का भी विशेष महत्व माना गया है। भानु सप्तमी के दिन 'ॐ घृणि सूर्याय आदित्याय नमः' मंत्र तथा आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ तथा मंत्र जाप करने विशेष लाभकारी होता है।
 
भानु सप्तमी की पौराणिक कथा क्या है : इस सप्तमी से संबंधित कथा का उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में देखने को मिलता है। जिसके अनुसार शाम्ब, जो कि भगवान श्री कृष्ण के पुत्र थे, उन्हें अपने शारीरिक बल और सुंदरता पर बहुत अधिक अभिमान हो गया था। अपने इसी अभिमान के चलते उन्होंने ऋषि दुर्वासा का अपमान कर दिया। और शाम्ब की यह धृष्ठता को देखकर मुनि दुर्वासा ने क्रोध में आकर शाम्ब को कुष्ठ रोग होने का श्राप दे दिया। 
 
तब भगवान श्री कृष्ण ने अपने पुत्र शाम्ब को भगवान सूर्य देव की उपासना करने के लिए कहा था और शाम्ब ने पिता की आज्ञा मानकर सूर्य भगवान की आराधना की थी, जिसके फलस्वरूप उन्हें कुष्ठ रोग मुक्ति मिली थी।

अत: इस व्रत का बहुत अधिक महत्व होने के कारण जो भी व्यक्ति भानु सप्तमी का व्रत रखकर विधिपूर्वक सूर्य देव का पूजन तथा अर्चना करते हैं उन्हें सेहत, संतान की प्राप्ति तथा सुख और धनदायक जीवन प्राप्त होता है। अत: हर व्यक्ति को भानु सप्तमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में जागकर स्नानादि से निवृत्त होकर सूर्यदेव को जल का अर्घ्य जरूर अर्पित करना चाहिए।
 
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