अधिकमास में कौन से पाठ, मंत्र और चालीसा देते हैं लाभ

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Adhikmaas 2023 : हिंदू धर्म में अधिकमास का खास महत्व है। इसे पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं। इस महीने भगवान श्रीहरि विष्णु-लक्ष्मी जी, भगवान श्री कृष्ण, शिव परिवार की आदि के पूजन का विशेष महत्व है। साथ ही दिन दिन कुछ खास स्तुति, मंत्र, आरती, चालीसा आदि का पाठ करने से विष्णु जी प्रसन्न होकर अपने भक्तों पर विशेष कृपा बरसाते हैं। 
 
इतना ही नहीं जीवन में इसके कई फायदे एवं लाभ होते हैं। अधिकमास में इनका जाप तथा पाठ करने से जहां घर में सुख-समृद्धि, धन-वैभव आता हैं, वहीं संकटों से मुक्ति मिलती है तथा जीवन सुखमय होता है। 
 
आइए यहां पढ़ें अधिकमास के पाठ से संबंधित विशेष सामग्री-
 
श्री नारायण स्तोत्र Shree Narayan Stotram 
 
नारायण नारायण जय गोविंद हरे ॥
नारायण नारायण जय गोपाल हरे ॥ 
 
करुणापारावारा वरुणालयगम्भीरा ॥ 
घननीरदसंकाशा कृतकलिकल्मषनाशा ॥ 
 
यमुनातीरविहारा धृतकौस्तुभमणिहारा ॥
पीताम्बरपरिधाना सुरकल्याणनिधाना ॥ 
 
मंजुलगुंजाभूषा मायामानुषवेषा ॥ 
राधाऽधरमधुरसिका रजनीकरकुलतिलका ॥ 
 
मुरलीगानविनोदा वेदस्तुतभूपादा ॥ 
बर्हिनिवर्हापीडा नटनाटकफणिक्रीडा ॥ 
 
वारिजभूषाभरणा राजिवरुक्मिणिरमणा ॥ 
जलरुहदलनिभनेत्रा जगदारम्भकसूत्रा ॥ 
 
पातकरजनीसंहर करुणालय मामुद्धर ॥ 
अधबकक्षयकंसारे केशव कृष्ण मुरारे ॥ 
 
हाटकनिभपीताम्बर अभयं कुरु मे मावर ॥ 
दशरथराजकुमारा दानवमदस्रंहारा ॥
 
गोवर्धनगिरिरमणा गोपीमानसहरणा ॥
शरयूतीरविहारासज्जनऋषिमन्दारा ॥ 
 
विश्वामित्रमखत्रा विविधपरासुचरित्रा ॥ 
ध्वजवज्रांकुशपादा धरणीसुतस्रहमोदा ॥ 
 
जनकसुताप्रतिपाला जय जय संसृतिलीला ॥ 
दशरथवाग्घृतिभारा दण्डकवनसंचारा ॥ 
 
मुष्टिकचाणूरसंहारा मुनिमानसविहारा ॥ 
वालिविनिग्रहशौर्या वरसुग्रीवहितार्या ॥ 
 
मां मुरलीकर धीवर पालय पालय श्रीधर ॥ 
जलनिधिबन्धनधीरा रावणकण्ठविदारा ॥ 
 
ताटीमददलनाढ्या नटगुणविविधधनाढ्या ॥ 
गौतमपत्नीपूजन करुणाघनावलोकन ॥ 
 
स्रम्भ्रमसीताहारा साकेतपुरविहारा ॥ 
अचलोद्घृतिञ्चत्कर भक्तानुग्रहतत्पर ॥ 
 
नैगमगानविनोदा रक्षःसुतप्रह्लादा ॥ 
भारतियतिवरशंकर नामामृतमखिलान्तर ॥ 
 
। इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितं नारायणस्तोत्रं सम्पूर्णम्‌ ।

विष्णु स्तुति- Vishnu Stuti
 
शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्ण शुभांगम्।
लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्व लौकेक नाथम्।।
 
यं ब्रह्मा वरुणैन्द्रु रुद्रमरुत: स्तुन्वानि दिव्यै स्तवैवेदे:।
सांग पदक्रमोपनिषदै गार्यन्ति यं सामगा:।
ध्यानावस्थित तद्गतेन मनसा पश्यति यं योगिनो
यस्यातं न विदु: सुरासुरगणा दैवाय तस्मै नम:।।

विष्णु मंत्र- Mantra 
 
1. ॐ अं वासुदेवाय नम:
2. ॐ विष्णवे नम:।
3. ॐ हूं विष्णवे नम:।
4. श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेवाय।।
5. ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:। 
6. ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।
7. ॐ नमो नारायण। श्री मन नारायण नारायण हरि हरि। 
8. ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि। ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।
9. ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:
10. दन्ताभये चक्र दरो दधानं, कराग्रगस्वर्णघटं त्रिनेत्रम्। धृताब्जया लिंगितमब्धिपुत्रया, लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे।।
11. ॐ नारायणाय नम:।
12. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:।

विष्णु जी की आरती-Vishnu jee ki aarti 
 
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
 
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय...॥
 
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय...॥
 
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय...॥
 
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय...॥
 
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय...॥
 
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय...॥
 
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय...॥
 
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय...॥
 
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय...॥

विष्णु चालीसा-Vishnu Chalisa
 
दोहा
 
विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय।
कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय।
 
चौपाई
 
नमो विष्णु भगवान खरारी।
कष्ट नशावन अखिल बिहारी॥
 
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी।
त्रिभुवन फैल रही उजियारी॥
 
सुन्दर रूप मनोहर सूरत।
सरल स्वभाव मोहनी मूरत॥
 
तन पर पीतांबर अति सोहत।
बैजन्ती माला मन मोहत॥
 
शंख चक्र कर गदा बिराजे।
देखत दैत्य असुर दल भाजे॥
 
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे।
काम क्रोध मद लोभ न छाजे॥
 
संतभक्त सज्जन मनरंजन।
दनुज असुर दुष्टन दल गंजन॥
 
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन।
दोष मिटाय करत जन सज्जन॥
 
पाप काट भव सिंधु उतारण।
कष्ट नाशकर भक्त उबारण॥
 
करत अनेक रूप प्रभु धारण।
केवल आप भक्ति के कारण॥
 
धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा।
तब तुम रूप राम का धारा॥
 
भार उतार असुर दल मारा।
रावण आदिक को संहारा॥
 
आप वराह रूप बनाया।
हरण्याक्ष को मार गिराया॥
 
धर मत्स्य तन सिंधु बनाया।
चौदह रतनन को निकलाया॥
 
अमिलख असुरन द्वंद मचाया।
रूप मोहनी आप दिखाया॥
 
देवन को अमृत पान कराया।
असुरन को छवि से बहलाया॥
 
कूर्म रूप धर सिंधु मझाया।
मंद्राचल गिरि तुरत उठाया॥
 
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया।
भस्मासुर को रूप दिखाया॥
 
वेदन को जब असुर डुबाया।
कर प्रबंध उन्हें ढूंढवाया॥
 
मोहित बनकर खलहि नचाया।
उसही कर से भस्म कराया॥
 
असुर जलंधर अति बलदाई।
शंकर से उन कीन्ह लडाई॥
 
हार पार शिव सकल बनाई।
कीन सती से छल खल जाई॥
 
सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी।
बतलाई सब विपत कहानी॥
 
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी।
वृन्दा की सब सुरति भुलानी॥
 
देखत तीन दनुज शैतानी।
वृन्दा आय तुम्हें लपटानी॥
 
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी।
हना असुर उर शिव शैतानी॥
 
तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे।
हिरणाकुश आदिक खल मारे॥
 
गणिका और अजामिल तारे।
बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे॥
 
हरहु सकल संताप हमारे।
कृपा करहु हरि सिरजन हारे॥
 
देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे।
दीन बन्धु भक्तन हितकारे॥
 
चहत आपका सेवक दर्शन।
करहु दया अपनी मधुसूदन॥
 
जानूं नहीं योग्य जप पूजन।
होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन॥
 
शीलदया सन्तोष सुलक्षण।
विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण॥
 
करहुं आपका किस विधि पूजन।
कुमति विलोक होत दुख भीषण॥
 
करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण।
कौन भांति मैं करहु समर्पण॥
 
सुर मुनि करत सदा सेवकाई।
हर्षित रहत परम गति पाई॥
 
दीन दुखिन पर सदा सहाई।
निज जन जान लेव अपनाई॥
 
पाप दोष संताप नशाओ।
भव-बंधन से मुक्त कराओ॥
 
सुख संपत्ति दे सुख उपजाओ।
निज चरनन का दास बनाओ॥
 
निगम सदा ये विनय सुनावै।
पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै॥

श्री कृष्णस्तोत्र : Shree Krishna Stotram
 
ब्रह्मोवाच :
 
श्री कृष्ण भगवान
 
रक्ष रक्ष हरे मां च निमग्नं कामसागरे।
दुष्कीर्तिजलपूर्णे च दुष्पारे बहुसंकटे॥1॥
भक्तिविस्मृतिबीजे च विपत्सोपानदुस्तरे।
अतीव निर्मलज्ञानचक्षुः-प्रच्छन्नकारणे॥2॥
 
जन्मोर्मि-संगसहिते योषिन्नक्राघसंकुले।
रतिस्रोतःसमायुक्ते गम्भीरे घोर एव च॥3॥
प्रथमासृतरूपे च परिणामविषालये।
यमालयप्रवेशाय मुक्तिद्वारातिविस्तृतौ॥4॥
 
बुद्ध्‌या तरण्या विज्ञानैरुद्धरास्मानतः स्वयम्‌।
स्वयं च त्व कर्णधारः प्रसीद मधुसूदन॥5॥
मद्विधाः कतिचिन्नाथ नियोज्या भवकर्मणि।
सन्ति विश्वेश विधयो हे विश्वेश्वर माधव॥6॥
 
न कर्मक्षेत्रमेवेद ब्रह्मलोकोऽयमीप्सितः।
तथाऽपि न स्पृहा कामे त्वद्भक्तिव्यवधायके॥7॥
हे नाथ करुणासिन्धो दीनबन्धो कृपां कुरु।
त्वं महेश महाज्ञाता दुःस्वप्नं मां न दर्शय॥8॥
 
इत्युक्त्वा जगतां धाता विरराम सनातनः।
ध्यायं ध्यायं मत्पदाब्जं शश्वत्‌ सस्मार मामिति॥9॥
ब्रह्मणा च कृतं स्तोत्रं भक्तियुक्तश्च यः पठेत्‌।
स चैवाकर्मविषये न निमग्नो भवेद् ध्रुवम्‌॥10॥
मम मायां विनिर्जित्य स ज्ञानं लभते ध्रुवम्‌।
इह लोके भक्तियुक्तो मद्भक्तप्रवरो भवेत्‌॥11॥
 
॥ इति श्रीब्रह्मदेवकृतं कृष्णस्तोत्रं सम्पूर्णम्‌ ॥

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