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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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रहमान, सफलता का पर्याय

रहमान के संगीत का जादू

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गायत्री शर्मा

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संगीत एक ऐसी विधा है, जो मानव की जिंदगी के साथ गहराई से जुड़ी है। हमारी साँसों के आरोह-अवरोह में संगीत है। इस प्रकृ‍ति की हलचल में संगीत है और जब इस संगीत की अभिव्यक्ति होती है तब मानव का अहंकार मिट जाता है व उसे एक असीम सुख की प्राप्ति होती है। हमारे आसपास कई ऐसे लोग हैं, जिनकी जिंदगी ही संगीत है। सुर और ताल के एक ऐसे ही जादूगर हैं एआर रहमान, जिनकी ख्याति आज दुनियाभर में है।

अपने जादुई संगीत से सबको मंत्रमुग्ध करने वाले रहमान की जिंदगी संघर्षों से भरी है परंतु कहते हैं कि हूनर को किसी पहचान की जरूरत नहीं होती है। वो खुद-ब-खुद अपनी पहचान बना लेता है। ऐसा ही कुछ रहमान के साथ भी हुआ। 6 जनवरी 1966 को चेन्नई में जन्मे रहमान (एएस दिलीप कुमार) महज 4 साल की उम्र से ही पियानो बजाने लगे थे। रहमान की जिंदगी में एक अप्रत्याशित घटना तब हुई जब मात्र नौ साल की उम्र में रहमान ने अपने पिता आर. के. शेखर (‍मलयालम फिल्मों के म्यूजिक कंपोजर) को खो दिया परंतु दुनिया में अपनी पहचान बनाने की ललक ने रहमान को इस दुख से उबरकर कुछ कर दिखाने का जुनून जगाया।

11 साल की उम्र तक आते-आते रहमान एक अच्छे पियानो वादक बन चुके थे। रहमान ने कम उम्र में ही प्रख्यात तबला वादक जाकिर हुसैन के साथ भी अपने कई शो किए। आज रहमान को भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के जॉन विलियम्स के नाम से भी जाना जाता है।

हिंदी व ‍तमिल सिनेमा में रहमान ने कई हिट फिल्मों के लिए म्यूजिक दिया। इन फिल्मों में रोजा, बाम्बे, दिल से, साथिया, लगान, स्वदेश, गुरु, रंग दे बसंती, जोधा अकबर आदि प्रमुख है। सिनेमा जगत में 'रहमान और मणिरत्नम' की जोड़ी चर्चित जोड़ियों में शुमार की जाती रही है। इसके पीछे कारण रहमान का धमाकेदार म्यूजिक और मणिरत्नम की हिट फिल्म होती थी। रहमान ने मणिरत्नम की अनगिनत फिल्मों में म्यूजिक दिया है।

फिल्मी गीतों में संगीत देने से पूर्व रहमान विज्ञापन और जिंगल्स के लिए म्यूजिक कंपोज करते थे। उसी दौरान रहमान ने ट्रिनिटी कॉलेज ऑफ म्यूजिक, लंदन से वेस्टर्न क्लासिकल म्यूजिक में डिग्री ली। उसके बाद रहमान ने चेन्नई में अपना एक हाईटेक स्टूडियो खोला, जिसकी गिनती आज एशिया के चुनिंदा स्टूडियो में की जाती है। इसके अलावा रहमान ने कई म्यूजिक एल्बम में भ‍ी अपने सुरों व संगीत का जादू बिखेरा।

15 अगस्त 1997 को भारत की स्वतंत्रतता के 50 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में रहमान की 'वन्दे मातरम' एल्बम रिलीज हुआ, जिसमें रहमान ने माँ भारती का गुणगान किया गया है। भारत के गौरव और वैभव को प्रदर्शित करते हुए इस एल्बम ने रहमान को ख्याति के एक उच्च पायदान पर पहुँचा दिया। यह एल्बम एक साथ 28 देशों में रिलीज हुआ। उस वक्त अकेले भारत में ही इसकी लगभग 12 लाख कॉपियाँ बिक चुकी थीं।

फिल्मी संगीत में रहमान को ‍प्रसिद्धि मिली 1991 में बनी मणिरत्नम की तमिल फिल्म 'रोजा' के संगीत से। इस फिल्म के लिए रहमान को इंडियन नेशनल अवार्ड और बेस्ट म्यूजिक कंपोजर अवार्ड से नवाजा गया। तभी से रहमान के संगीत का श्रोताओं पर एक जादू सा छा गया और रहमान का नाम संगीतकारों की फेहरिस्त में सबसे ऊपर लिया जाने लगा।

रोजा, बॉम्बे, दिल से, ताल, जुबैदा, लगान आदि फिल्मों के जबरदस्त हिट संगीत के लिए रहमान को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। रहमानों के पुरस्कारों की फेहरिस्त में वर्ष 2002 में बेस्ट म्यू‍जिक देने के लिए 'द हिल्टन अवार्ड' है। इसके अलावा रहमान वर्ष 2009 का सर्वश्रेष्ठ 'गोल्डन ग्लोब अवार्ड' (हाल ही में प्रदर्शित फिल्म स्लमडॉग मिलेनियर के लिए) से नवाजे जाने वाले पहले भारतीय भी हैं। ऑस्कर में आठ अवार्ड जीत कर दुनिया भर में अपनी धाक मनवा चुके रहमान भारत का सही मायनों में गौरव है।

रहमान और हिट संगीत दोनों ही आज एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं। अपनी सुरीली आवाज व वाद्य यंत्रों पर अँगुलियों के जादू से रहमान ने भारतीय संगीत जगत को जो ऊँचाई प्रदान की है। उस ऊँचाई को छू पाना शायद किसी भी संगीतकार के लिए इतना अधिक आसान नहीं है। रहमान सफलता के और अधिक पायदानों को छुएँ तथा देश का नाम विश्वमंच पर रोशन करते रहें। यही आशा है।

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