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ओलिम्पिक खेलों में डोपिंग का डंक

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आधुनिक ओलिम्पिक की शुरुआत के कुछ वर्षों बाद से ही डोपिंग का डंक महसूस करने वाले ओलिम्पिक खेलों के लिए कई कोशिशों के बावजूद आज भी यह बहुत बड़ी समस्या बनी हुई है।

ओलिम्पिक खेलों की शुरुआत 1896 में हुई और 1904 के सेंट लुई ओलिम्पिक में डोपिंग का पहला मामला सामने आया। इसके ठीक 100 साल बाद यानी 2004 में एथेंस में डोपिंग के पिछले सारे रिकॉर्ड टूटे, क्योंकि इस ओलिम्पिक में सबसे अधिक 27 खिलाड़ियों को प्रतिबंधित दवा सेवन का दोषी पाया गया।

खेलों में शक्तिवर्धक दवा सेवन के बढ़ते चलन के कारण विभिन्न खेल संघों ने 1960 के दशक के शुरुआती वर्षों में डोपिंग पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया जिसे अंतरराष्ट्रीय ओलिम्पिक समिति (आईओसी) ने 1967 में अपनाया और पहली बार 1968 के मैक्सिको सिटी ओलिम्पिक में इसे लागू किया। तब से लेकर पिछले दस ओलिम्पिक खेलों में कुल 84 खिलाड़ी डोपिंग के दोषी पाए गए।

वैसे ओलिम्पिक में शक्तिवर्धक दवा लेने की शुरुआत काफी पहले हो गई थी। ओलिम्पिक 1904 में अमेरिकी मैराथन धावक थामस हिक्स को उनके कोच ने दौड़ के दौरान स्ट्रेचनाइन और ब्रांडी दी थी। हिक्स ने दो घंटे 22 मिनट 18.4 सेकंड में नए ओलिम्पिक रिकॉर्ड के साथ मैराथन जीती थी, लेकिन तब डोपिंग के लिए कोई नियम नहीं थे इसलिए उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई।

रोम ओलिम्पिक 1960 में डेनमार्क के इनेमाक जेनसन साइकिल दौड़ के दौरान नीचे गिर गए और उनकी मौत हो गई। कोरोनोर जाँच से पता चला कि वे तब एम्फेटेमाइन्स के प्रभाव में थे। यह ओलिम्पिक में डोपिंग के कारण हुई एकमात्र मौत है।

डोपिंग के खिलाफ कड़े कदम उठाने के बावजूद जब खिलाड़ियों में शक्तिवर्धक या प्रतिबंधित दवाओं के सेवन का प्रचलन बढ़ता ही रहा तो आईओसी ने 1999 में विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी (वाडा) की स्थापना की जो खिलाड़ियों का परीक्षण करने के अलावा डोपिंग से जुड़े अन्य मसलों से भी वास्ता रखती है।

ओलिम्पिक में प्रतिबंधित दवा लेने के कारण प्रतिबंध झेलने वाले पहले खिलाड़ी स्वीडन के हान्स गुनार लिजनेवाल थे। माडर्न पैंटाथलान के इस खिलाड़ी को 1968 ओलिम्पिक में अल्कोहल सेवन का दोषी पाया गया जिसके कारण उन्हें अपना काँस्य पदक गंवाना पड़ा।

डोपिंग के कारण ओलिम्पिक पदक गंवाने का भी यह पहला मामला था। तब से लेकर 14 स्वर्ण पदक चार रजत और इतने ही कांस्य पदक विजेताओं को परीक्षण पाज‍िटिव पाए जाने के कारण अपने पदक गंवाने पड़े। इनमें सबसे मशहूर कनाडा के फर्राटा धावक बेन जॉनसन भी हैं।

जॉनसन ने 1988 के सोल ओलिम्पिक में अमेरिका के कार्ल लुईस को पीछे छोड़कर 100 मीटर दौड़ जीतने के साथ तहलका मचा दिया था। जॉनसन की यह खुशी 24 घंटे भी नहीं रही, क्योंकि परीक्षण में उन्हें प्रतिबंधित स्टैनाजोलोल के सेवन का दोषी पाया गया और उनसे पदक छीनकर लुईस को विजेता घोषित कर दिया गया।

भारत की दो भारोत्तोलकों प्रतिमा कुमारी और सनामाचा चानू को भी एथेंस ओलिम्पिक में क्रमश: एनबोलिक स्टेरायड और फुटोसेनाइड के सेवन का दोषी पाया गया, जिसके कारण इन दोनों के अलावा भारतीय भारोत्तोलन संघ पर भी प्रतिबंध लगा था।

ओलिम्पिक में डोपिंग के कारण जिन खिलाड़ियों ने अपने स्वर्ण पदक गँवाए उनमें रिक डि मोंट पहले खिलाड़ी हैं। इस अमेरिकी तैराक को 1972 म्यूनिख ओलिम्पिक में इफेड्रिन के सेवन का दोषी पाया गया था। मांट्रियल 1976 में पोलैंड के धावक जिबिगनेव काजामातेक और बुल्गारियाई वलेन्टाइन खिरिस्तोव ने अपने स्वर्ण पदक गंवाए।

सोल ओलिम्पिक में जॉनसन के अलावा दो भारोत्तोलकों बुल्गारियाई मिको ग्रेबलेव और एंजेल गुएनचेव को सोने का तमगा गंवाना पड़ा था। सिडनी ओलिम्पिक 2000 में भी बुल्गारियाई भारोत्तोलक इजाबेला ड्रेगनेवा और जर्मन भारोत्तोलक अलेक्सांद्र ली पोल्ड के अलावा रोमानियाई जिमनास्ट आंद्रिया राडुकान भी बैरंग स्वदेश लौटीं।

एथेंस ओलिम्पिक में पांच स्वर्ण पदक विजेताओं हंगरी के आंद्रियान अनुस और राबर्ट फाजेकास, रूसी इरिना कोरजानेन्को, यूनान के सियान ओ कोनोर और जर्मनी के लुडग ब्रीबाम से स्वर्ण पदक छीन लिए गए थे।

सिडनी ओलिम्पिक में राडुकान ने जुकाम के लिए एक ओलिम्पिक चिकित्सक के कहने पर सुडोफेड्राइन ली थी। उन्हें तब पता नहीं था कि इसमें प्रतिबंधित तत्व हैं और चिकित्सक की गलती के कारण उन्हें अपना स्वर्ण पदक गँवाना पड़ा था। (भाषा)

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