ओलिम्पिक खेलों के अंतर्गत जब भी मुक्केबाजी की बात की जाती है तो क्यूबा के टियोफिलो स्टीवेंसन का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है।
वे लगातार तीन ओलिम्पिक स्वर्ण जीतने वाले चुनिंदा तीन मुक्केबाजों के विशिष्ट समूह में शामिल हैं। इस समूह के दो अन्य मुक्केबाज हंगरी के लाज्लो पैप (1948-56) तथा क्यूबा के फेलोक्स सेवोन (1992-2000) है।
स्टीवेंसन को ज्यादा सम्मान इसलिए दिया जाता है क्योंकि उन्होंने 1976 में मुक्केबाज मोहम्मद अली के साथ लड़ने का 5 मिलियन डॉलर का प्रस्ताव यह कहकर ठुकरा दिया था कि वे बिकने के बजाय ओलिम्पिक में क्यूबा का प्रतिनिधित्व करना ज्यादा बेहतर समझते हैं।
29 मार्च 1952 को जन्मे स्टीवेंसन कितने प्रभावशाली थे, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तीन ओलिम्पिक स्वर्ण पदक (हैवीवेट वर्ग) के अभियान के दौरान उन्हें सिर्फ दो बार अंकों के आधार पर जीत दर्ज करनी पड़ी अन्य सभी प्रतिद्वंद्वी तो उनके सामने पूरे तीन दौर तक भी टिक नहीं पाए। 6 फुट 4 इंचे लंबे होने के बावजूद वे बेहद फुर्तीले थे और अपनी लंबी पहुंच का फायदा उन्हें काफी मिलता रहा।
स्टीवेन्सन को 1972 के ओलिम्पिक खेलों के फाइनल में रिंग में उतरना ही नहीं पड़ा क्योंकि उनके प्रतिद्वंद्वी रोमानिया के इयोन एलेक्सी ने चोटिल होने के कारण उन्हें वॉकओवर दे दिया। अगले ओलिम्पिक में स्टीवेंसन ने अपने सभी प्रतिद्वंद्वियों को नॉकआउट करते हुए स्वर्ण पर कब्जा बरकरार रखा। खिताबी मुकाबले में उन्होंने रोमानिया के मिर्सिया सिमोन को शिकस्त दी।
1980 के मास्को ओलिम्पिक में उनका प्रदर्शन आशानुरूप नहीं रहा और दो मुकाबले उन्हें अंकों के आधार पर जीतने पड़े, लेकिन इसके बाद भी वे लगातार तीसरा स्वर्ण जीतने में कामयाब रहे। उन्होंने फाइनल में सोवियत संघ के पी. जैव को 4-1 से हराया।
स्टीवेंसन 1984 के लॉस एंजिल्स ओलिम्पिक में चौथा स्वर्ण जीत सकते थे, लेकिन क्यूबा द्वारा किए गए बहिष्कार के कारण वे इससे वंचित रह गए। अपने चमकीले करियर के दौरान उन्होंने 302 मुकाबले जीते और सिर्फ 22 में उन्हें हार झेलनी पड़ी।
पेशेवर मुक्केबाजी में जो मुकाम मोहम्मद अली को हासिल है, वही अमेच्योर मुक्केबाजी में स्टीवेंसन को हासिल है। खेल से संन्यास लेने के बाद स्टीवेंसन ने क्यूबाई मुक्केबाजी टीम के प्रशिक्षण का दायित्व भी संभाला।