वॉशिंगटन। क्या आप सोच सकते हैं कि कोई अमेरिकी सिख अपने देशवासियों को बताए कि सिख धर्म में पगड़ी और कृपाण का क्या महत्व है और क्यों वे इन धार्मिक प्रतीकों को दूर करना स्वीकार नहीं करते हैं।
अमेरिकी नागरिक जेम्स एस. एरिक्सन का जन्म 1950 में रोड आइलैंड के प्रॉविडेंस में हुआ था। उनका परिवार आर्थिक रूप से सम्पन्न नहीं था। बाद में, उनका परिवार उत्तर प्राविडेंस के सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से भिन्न क्षेत्र से निकलकर 1953 में श्वेतों के मध्यम वर्गीय क्षेत्र पूर्वी प्रोविडेंस में बस गए।
यूनाइटेड चर्च ऑफ क्राइस्ट की शिक्षाओं से प्रभावित वातावरण जब बढ़े हुए तब देश में 'सिविल
राइटस' आंदोलन का जमाना था। सत्रह वर्ष की उम्र में उन्होंने इंटररेसियल सेसिटिविटी काउंसिल का गठन किया था। तब वे हाई स्कूल के सीनियर इयर में पढ़ रहे थे। उनका स्कूल फ्लोरिडा के पूर्वी तट पर था। लेकिन बड़े होकर उन्होंने मई 1972 में सिख गुरुओं की शिक्षा से प्रभावित होकर सिख धर्म स्वीकार कर लिया।
उन्होंने सिखों के साथ होने वाले किसी भी प्रकार के भेदभाव का विरोध किया और अमेरिका के श्वेत प्रशासन को बताया कि सिखों के साथ अलग नजरिया न रखा जाए। उन्होंने पुलिस प्रशासन को बताया कि एक सिख के लिए पगड़ी और कृपाण का क्या अर्थ होता है।
उन्होंने अमृत कौर खालसा से विवाह किया और दोनों ने 25 वर्ष का सफल दांपत्य जीवन पूरा कर लिया है। वे दो बेटियों के पिता हैं और उनके चार नाती, पोते हैं। उन्होंने 21 साल की उम्र में ही सिख धर्म स्वीकार कर लिया था और 1976 में उन्होंने अपना नाम सत हनुमान सिंह रखा। आज वे 67 साल के हो गए हैं। उन्होंने भारत के प्रमुख सिख तीर्थस्थलों का भी दर्शन किया है।
अमेरिकी वायुसेना के पूर्व एयरमैन एरिक्सन ने लोगों को जानकारी दी कि उन्होंने कैसे धर्म से संबंधित छोटी-छोटी बातों को अपनाया। बाल रखने से लेकर साधारण जीवन जीने तक की सारी चीजें ही नहीं सीखीं वरन अपने नाती-पोते को भी सिख धर्म में दीक्षित कराया।
9/11 के आतंकी हमलों के बाद गलतफहमी में सिखों को निशाना बनाया गया तब उन्होंने लोगों को जागृत किया कि सिख कौन हैं और उनका भारत व दुनिया के अन्य देशों में क्या इतिहास रहा है? उन्होंने वॉशिंगटन में सिख धर्म के प्रचार, प्रसार के लिए काम किया। उन्होंने अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के लोगों को बताया कि सिख पगड़ी क्यों पहनते हैं और कृपाण क्यों रखते हैं और क्या कारण हैं कि किसी भी सिख से पगड़ी उतारने, कृपाण जमा कराने को न कहें।
उन्होंने कहा, 'मैं सिख बनकर खुश हूं। मैं ठीक से पंजाबी तो नहीं बोल पाता, लेकिन किसी सिख से कम नहीं हूं। एक सिख वही है जो गुरु की शिक्षाओं को समझ सके। गुरु गोविंद सिंह ने हमें निडर रहने की शिक्षा दी है। यह मेरी नहीं, बल्कि गुरु की पगड़ी है और इस तरह उन्होंने गुरुओं की शिक्षाओं को आत्मसात किया है।