सुबह की शुरुआत चाय और वेबदुनिया से ही होती है

रेखा भाटिया
-रेखा भाटिया
 
हम मालवी मालवा की खूबसूरत मिट्टी में रचे-बसे, वहां की खूबसूरत वादियों में बड़े हुए। बेहतर जलवायु, हर तरह के खाने का उत्तम स्वाद, शादियों की धूम, त्योहारों का जलवा, भीगते सावन में छोटी-छोटी पहाड़ियों के बीच किसी झरने के किनारे गोबर के कंडों में पकती घी में डुबोई गर्मागर्म दाल-बाटी का मजा, हंसते-मुस्कराते लोग कुछ फुरसत, थोड़ा व्यस्त। 
 
छोटे-छोटे जलसों के बीच कई बड़े जुलूस, ठहरी-भागती जिंदगी में सड़क पर चलते कहीं मंदिरों की घंटियां, कहीं नमाज का सुर, कहीं से कानों में पड़ती गुरबानी की धुन, चिड़ियों की चहचहाहट, कोयल की कूक के बीच भागते-दौड़ते टेम्पो, रिक्शा वाले, बसें, आवाज लगाते दूध वाले, सब्जी वाले और चटर-चटर चप्पल से आवाज निकालकर चलती काम वाली, यह शोर, यह शराबा और उस धुन में बजता जीवन संगीत जो सभी को आत्मसात कर एक धार की बहता सभी को तरंगित और रोमांचित करता। 
 
नगाड़ों की ढमढम से सिकुड़ती-जागती सर्द रातें। यह है मेरा मालवा, मेरा इंदौर, मेरा जन्म स्थान और जहां हमारे परिवार की हर सुबह की शुरुआत होती 'नईदुनिया' से। अखबार वाला बालकनी में अखबार फेंकता। तुरंत आवाज से नींद खुल जाती। गर्म चाय, पानी की कमी में मचता आसपास का शोर और साथ में 'नईदुनिया' अखबार। 
 
जन्म से बचपन और बचपन से युवावस्था। इस संपूर्ण दौर में 'नईदुनिया' हमारे जीवन का अभिन्न अंग था। बचपन से ही जो परिपक्तता, जागरूकता, सामाजिक बदलाव, सामाजिक-उच्चित्य और असामाजिक-अनुचित्य का भेद- इस सबकी जिम्मेदारी 'नईदुनिया' ने हमारे जीवन में निभाई। 
 
शहर में रहकर देश-विदेश से परिचय, ज्ञान, खबर, क्रिकेट में पागलपन को छूता हमारा दीवानापन, चटपटी-अटपटी खबरें, हमारा एकमात्र विश्वसनीय संसाधन मात्र 'नईदुनिया' था। फिर वक्त आया, जब हमने इंदौर से विदा ले कुछ समय अरब देशों में बिताया और वहां से जीवन की दिशा ही बदल गई, जब 'नईदुनिया' का महत्व समझ में आया। विदेश में अपना देश, वहां का स्वाद, वहां का प्यार ढूंढते रहे, तब कम्प्यूटर्स का दौर पूरी तरह से आया नहीं था। जीवन की दिनचर्या में कहीं एक कमी व अधूरापन महसूस होता। देश के समाचारों को कान तरस जाते।
 
तब '1993 मुंबई बमकांड' का समाचार किसी विदेशी अखबार से मिला था और दिल दहल गया था। कल्पनाओं में वहां के लोगों की लोगों की हालत का अंदाजा लगाते या दूरभाष पर रिश्तेदारों से पूछते। पहली बार दिल में अलग-सी 'कसमसाहट' महसूस हुई, एक हलचल-सी मची। फिर कुछ समय बाद भारत लौटना हुआ और जीवनशैली फिर हमारी वही पुरानी मालवा के साथ की प्रेम कहानी। 
 
आज 18 वर्ष बीत गए हैं भारत छोड़े। जब भी आईने के सामने खड़े होकर अपना अक्स देखती हूं और खुद को पहचानने की कोशिश करती हूं, स्वयं से बातें करती हूं, एक ही बात मेरे भीतर गूंजती है कि आज यह लिखना है, इसको कुछ नया रूप देते हैं, कुछ नया प्रयोग करते हैं। भीतर का स्पंदन, गूंजते शब्द, बहता संगीत लेखनी के रूप में भीतर से बाहर बहता है, जहां अकेलेपन का कहीं कोई स्थान नहीं है। मेरी यह पहचान एक लेखक के रूप में स्थापित करता है। 
 
भारत से हजारों किलोमीटर दूर रहकर भी भारत को मेरे भीतर जीवित रखता है, इसका सारा श्रेय 'वेबदुनिया' को जाता है। मैं रेखा भाटिया, मालवा की मिट्टी में जन्मी, पली-बड़ी, पनपी। 
 
हिन्दी जिसकी मातृभाषा है, चाहना है और अंग्रेजी जिसकी मजबूरी (मैं किसी भी भाषा के विरुद्ध नहीं हूं वरन अपनी मातृभाषा में मां का-सा दुलार महसूस करती हूं) है। वह अल्हड़पन, बालपन, यौवन, वो प्यारी खट्टी-मिट्ठी बातें, जो यादें कविताओं में सिमट आती हैं और कुछ गंभीर विषय शिक्षा, देश की वर्तमान परिस्थितियों में राजनीतिक दखल, सामाजिक पतन, आर्थिक उन्नति, जात-पात-भाषा की लड़ाई, आतंकवाद, महिलाओं की स्थिति, नारी-उत्थान, धर्म-समाज, त्योहार, पर्यावरण, किसी यात्रा का अविस्मणीय विवरण आदि इन सभी विषयों पर जब आलेख भी लिखने का मन किया 'वेबदुनिया' ने सदैव स्वर्णिम अवसर प्रदान किए जिससे मुझे और मेरे जैसे कई नए लेखकों को स्थापित होने में भरपूर मदद मिली। 'वेबदुनिया' ने सभी लेखकों का खुले हृदय से स्वागत अपने साहित्य दृढ़ धरातल पर किया।
 
कई बार ऐसा होता है कि कई साहित्यिक पत्रिकाएं जो किसी खास विषय पर विशेषांक निकालती हैं और उसी विषय पर लेखकों से लिखने के लिए निवेदन करती हैं। लेकिन 'वेबदुनिया' चूंकि इंटरनेट पर चलने वाला एकमात्र ही ऐसा अखबार है जिसमें हर विषयवस्तु के लिए स्तंभ हैं, जैसे कहानियों के लिए, फेसबुक से संबंधित, वॉट्सएप के लिए, नई तकनीकी के लिए, विज्ञान के लिए, राजनीति के लिए, इतिहास, बॉलीवुड, खेलों के लिए, हास्य, साहित्य, लाइफस्टाइल, कविताएं, धर्म, समाज, शिक्षा, देश-विदेश के समाचार, ग्रामीण, स्वास्थ्य-योग, व्यापार, करियर, टीवी और अन्य कई विषयों पर जितनी भी आप कल्पना कर सकते हैं उससे भी अधिक। 
 
ऐसे में पाठकगण को पढ़ने के लिए खुले आकाश जितनी पठनीय सामग्री उपलब्ध हो जाती है और लेखकों को समुंदर जितनी गहराई मिल जाती है अपनी लेखन कला को उजागर करने, गढ़ने, सजाने-संवारने के लिए। साथ ही 'वेबदुनिया' तकरीबन अंग्रेजी से लेकर बहुतेरी प्रादेशिक भाषाओं में भी प्रसारित होता है तो समस्त भाषाओं को साथ लेकर एक पूरी सृष्टि का ही निर्माण कर देता है दुनिया के लिए। समाचार, खबरें भी एकदम सही और वक्त पर उपलब्ध करवाता है जिससे आप हमेशा ही दुनिया से जुड़े रहते हैं। इंटरनेट पर होने की वजह से दुनिया के हर कोने से अपनी पसंदीदा भाषा में पठन-पाठन का लाभ ले सकते हैं और लेते हैं। भारत में घटित कोई घटना का समाचार घर पर रात देर-सवेर दूरभाष पर लेने से पहले 'वेबदुनिया' पर सुलभता से ही मिल जाता है।
 
सबसे अधिक मुझे जो भाता है वो ये कि इसमें प्रत्येक आयु वर्ग के लिए पठनीय सामग्री उपलब्ध है। अक्सर हमें युवा पीढ़ी से शिकायत होती है कि वे अपनी भाषा व संस्कृति को भूलकर विदेशी भाषा और संस्कृति के पीछे भागते हैं और युवाओं को अक्सर ही शिकायत रहती है कि पुराने ढर्रे पर भाषायी अखबारों में उनके पढ़ने के लिए कुछ रुचिकर भी नहीं रहता है, जो कि उन्हें आकर्षित कर सके। 
 
लेकिन 'वेबदुनिया' ही एक ऐसा माध्यम है जिसमें हर उम्र व वर्ग के पाठक के लिए सभी विषयों पर जानकारी और पठन सामग्री उपलब्ध है विशेषकर बच्चों के लिए निबंध, मजेदार और नैतिक मूल्यों पर खरी उतरतीं कहानियां, चुटकुले और कविताएं। 
 
'वेबदुनिया' गांवों को शहर से और शहर वालों को गांवों से जोड़ता है। त्योहारों की मस्ती को आम जनता और आम जनता को खास वर्ग के विद्वानों से जोड़ता है। समाज निर्माण में भी अपनी भूमिका पूरी ईमानदारी से निभाता है। सही और गलत का ज्ञान दे जनता का मार्गदर्शन भी करता है। विज्ञान, आयुर्वेद व स्वास्थ्य से जुड़ी हर महत्वपूर्ण जानकारी अपने पाठकों को उपलब्ध करवाता है जिससे कि लोग जीवन में इस महत्वपूर्ण जानकारी का लाभ उठा बेहतर जीवन जी सकें। 
 
अमेरिका के अखबारों में ढेर सारे स्थानीय समाचार होते हैं, पर यहां के स्थानीय लोगों को विदेशी समाचार और जानकारी यहां के अखबारों में कम ही उपलब्ध होती है, खासकर तब जब आज का युग आतंकवाद के बुरे दौर से जूझ रहा है। उलट इसके 'वेबदुनिया' में देश-विदेश के हर समाचार के साथ ही अन्य कई रोचक जानकारियां भी रहती हैं। 
 
जब भी यहां घर पर ऐसे किसी भी सामान्य ज्ञान से जुड़े किसी विषय पर चर्चा होती है, मुझे उसकी जानकारी पहले से ही होती है, क्योंकि मेरी हर सुबह की शुरुआत चाय के कप और 'वेबदुनिया' से ही होती है। अधिकतर भारतीयों की तरह सुबह की चाय और 'वेबदुनिया' हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग है।
 
मुझे अत्यंत खुशी होती है कि हमारे क्षेत्र मालवा इंदौर का 'वेबदुनिया' बहुत सार्थक कार्य कर रहा है। 'वेबदुनिया' को मैं उसकी 18वीं सालगिरह पर बहुत-बहुत बधाई देती हूं और शुभकामनाएं देती हूं। साथ ही इसी तरह के सार्थक कार्यों की कर्मशीलता बनाए रखने के लिए 'वेबदुनिया' का आभार प्रकट करती हूं। भविष्य में भी 'वेबदुनिया' इसी तरह साहित्य और पत्रकारिता की दुनिया में अपने सद्कर्म आधुनिकी तकनीकी से पूर्ण करता रहे, खूब तरक्की करे, ऐसी मेरी कामना है।
 
अंत में मैं इसे मेरी दूरदर्शिता कहूं या धृष्टता कि मेरा ऐसा मानना है कि आज भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है, नई पीढ़ी को 'वेबदुनिया' के जरिए अपने भूत व इतिहास की जानकारी उपलब्ध हो रही है, वर्तमान की सारी जानकारी आसानी से उपलब्ध है और भविष्य की आने वाली तकनीकी, आर्थिक मंदी-वृद्धि, राजनीतिक योग-विभाजन, शिक्षण अवसर सभी की जानकारी भी आसानी से उपलब्ध है। 
 
'वेबदुनिया' इस सारी जानकारी को बहुत ही अच्छे और सरल तरीके से उपलब्ध करा रहा है, युवा भारतीयों को इसका पूरा लाभ मिलेगा और संभव है भारतीय अवसर का पूरा लाभ उठाकर भारत को एक बार फिर से उसके स्वर्णिम युग में ले जाएं!
 
जय हिन्द!
 
वेबदुनिया जन्मदिन शुभ हो। 
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