Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

प्रवासी कविता : तस्वीरें चिढ़ा रही हैं

हमें फॉलो करें प्रवासी कविता : तस्वीरें चिढ़ा रही हैं
webdunia

रेखा भाटिया

Hindi Poem

आज मेरी तस्वीरें चिढ़ा रही हैं मुझे
जब मैं उनसे नजरें मिला रही हूं
कुछ पुरानी तस्वीरें कॉलेज के दिनों की
प्रयोगशाला में सफेद कोट पहने
 
बीस, तीस, चालीस, पचास
पार हो गए कितने वसंत
इक्कीसवें वसंत के पार होते
सपने बदल गए सुर्ख होकर
 
समझ क्यों नहीं पाई थी तब
एक बेबसी आज महसूस हो रही
मां-पिता ने चेताया वक्त यही है
यौवन की दूरदर्शिता अंधी हो गई
प्रेम में पड़कर ठोकर मार दी
मेहनत, महानता, लगन, संघर्ष
बेतुकी बातें हैं, डिग्री काफी है
परिवार की खुशी सर्वोपरी है

 
आज व्याकुलता विष घोलती है
भीतर ताने मार तड़पाती है कितना
देश, संसार विपदा में पड़ा भुगत रहा
विषाणु को भगाने काश! कोट पहने रहती
वक्त कभी कहां ठहरता है इंतजार करता
इच्छा बाहशाह है, वक्त मौके देता है सबको !

(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Skin Care Tips : पानी में ये 5 चीजें मिलाकर नहाएं, दिनभर बनी रहेगी ताजगी