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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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‍प्रवासी साहित्य : करते हैं रुखसत...

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पुष्पा परजिया

करते हैं रुखसत जमाने से 
जनाजे को कंधा दे देना 
 
आए थे खामोशी के संग 
जाते भी हैं खामोशी के संग 
 
यादें लिए और दिए जाते हैं बहुत-सी 
यादों में बसा लेना 
 
कभी कर लीं बातें मन की 
कभी बहला लिया दिल अपना 
 
कभी उदासियों ने पकड़ा दामन अपना
दोस्तों ने हंसा दिया कुछ कहकर 
 
अब थक गए हैं कदम इन राहों पर चल-चलकर
दिख रही हैं मंजिलें अंत की जब नजर आए दिन में सितारे 
 
धुंध-सी छा गईं आंखों में घूमते से नजर आए नजारे 
माफ करना दोस्तों यदि दिल दुखा हो किसी का मेरी तबीयत (वजह) से 
 
दूर न होना जरूर आना देने कंधा मेरी मैयत में 
अलविदा नहीं कहते दोस्तों कहलवाती है अलविदा ये हसरतें 
 
हुआ कभी फिर से मिलना तो गले से लगा लेना हमें।
 

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