Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

प्रवासी कविता : बच्चन, मधुशाला और मैं

हमें फॉलो करें प्रवासी कविता : बच्चन, मधुशाला और मैं
-हरनारायण शुक्ला
 
हाला-प्याला की गाथा, वह अद्वितीय लिखने वाला, 
बिना पीए ही लिख डाला, बच्चनजी ने मधुशाला।
 
मदिरापान नहीं करते थे, पर श्रोता होता मतवाला,
वे झूम-झूमके गाते थे, मदमस्त नशीली मधुशाला।
 
इक बार पढ़ें, दस बार पढ़ें, कभी न मन भरने वाला,
पुस्तक में ही खोल दिया, बच्चनजी ने मधुशाला।
 
हिन्दू-मुस्लिम अलग-अलग, पर कौन नहीं पीने वाला,
झगड़ा कभी नहीं होगा, यदि हर नुक्क्ड़ पे मधुशाला। 
 
मैं 'रम नदिया' के तट का वासी, डुबकी लेकर पीने वाला, 
नगर में कितने मदिरालय, मेरी 'रम नदिया' ही मधुशाला।
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

हिन्दी कविता : एक सवाल