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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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नववर्ष पर कविता : रह गए हैं अब कुछ पल...

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पुष्पा परजिया

रह गए हैं अब कुछ पल, इस साल के अंत के,
होने वाली है नई सुबह, सपनों के संसार की।
 
दूर गगन तारों की लड़ी, टिक-टिक करती ये घड़ी,
सुना रही धड़कन मानो, अंतिम सांसों के इस साल की।
 
खुश है मानव मन, खुश है हर जीवन, आने वाला नया साल है,
अरमानों के पंख लगे हैं, उड़ना अब है यहीं, ये खुला आसमान है।
 
हो रहे हैं कई जश्न यहां, और खोई-खोई-सी शाम है,
कहीं है मधुर संगीत, तो कहीं मृदंग की ताल है।
 
नाच रहे हैं जोड़ी बांधे, करतल ध्वनि का श्रृंगार है,
अनुपम ये दृश्य सजा है, हर किसी को नए साल का इंतज़ार है।
 
नए साल की खुशियों संग, कर लेना ख़ुद से वादा तुम,
करना है कुछ ऐसा कि जीत ले दूजों के ग़म।
 
अधिक ना हो सकेगा तो कुछ ही सही, ख़ुशियां बाटेंगे हम।
कह रही है हम सबसे जैसे कि, जैसे दिया स्नेह इस साल में।
 
देना स्नेह ऐसा ही सबको तुम, गर कोई रूठे या फिर आ जाए कोई ग़म
सहलाकर अपने मन को बरबस, थोड़ा सा हंस लेना तुम।

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