बात आज की नहीं न जाने कितने दशक पुरानी है,
दुश्मन चीन की फितरत में तो भरी हुई बेईमानी है।
कहते थे बरसों पहले तुम हैं हिन्दी-चीनी भाई-भाई,
फिर सीमा पर चुपके-चुपके किसने थी आग लगाई।
फेंगशुई का बहाना करके क्यों अंधविश्वास फैलाया,
नकली और घटिया चीजों का भारत में जाल बिछाया।
लड़ियां, घड़ियां और पटाखे, टीवी व एसी दे गए,
सस्ती चीजें पकड़ाकर के हमसे वो करोड़ों ले गए।
न समझ सके तब हम इन पाखंडियों की चाल को,
जब तक सरहद पर वीरों ने न देखा चीनी जाल को।
बेनकाब दुश्मन है उसका असली चेहरा देख लो,
पहचानों और अभी रोक दो शत्रु है बहरा देख लो।
हमें बेचकर चीजें अपनी पैसा जो हमसे पाएगा,
हथियार खरीदेगा उससे व हमको आंख दिखाएगा।
सस्ता नहीं लहू हमारे किसी भी सैनिक भाई का,
विषधर जैसे दुश्मन ने कब साथ दिया सच्चाई का।
आदत से मजबूर है जो वो गंदा खेल ही खेलेगा,
एक अगर हो जाएंगे हम कब तक हमको झेलेगा।
आजादी का पावन पर्व पन्द्रह अगस्त जब आएगा,
दुश्मन की छाती पर मूंग दलता तिरंगा फहराएगा।