Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

सिंगापुर की डायरी : भारतीय विरास‍त केंद्र

हमें फॉलो करें सिंगापुर की डायरी : भारतीय विरास‍त केंद्र
- सन्ध्या सिंह

भारतीय बहुसांस्कृतिक और बहु्प्रजातीय समाज की विशेषताओं को समेटे एक नवीन सौन्दर्य से दुनिया को अभिभूत करता रहा है। इस देश की सबसे बड़ी ताकत इसी एकता व अखंडता में है।

तरक्की के तमाम मुकाम हासिल करने में न तो इस देश ने अपने नागरिकों से कोई भेदभाव किया है, न इस देश की भिन्न प्रजातियों के नागरिकों ने स्वयं को इस देश में अलग या अकेला महसूस किया है। इस देश में समय-समय पर भिन्न प्रजातियों के अतीत से वर्तमान तक के सफर को किसी न किसी रूप में प्रदर्शित करने का प्रयास किया है। 
 
इसी कड़ी में इस वर्ष 'इंडियन हेरिटेज सेंटर' अर्थात 'भारतीय विरासत केंद्र' का उद्घाटन हुआ। इस केंद्र में सिंगापुर से आए प्रवासियों की कथा का जीवंत अनुभव महसूस होता है। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विशेषताओं से समुदाय व पर्यटकों को रू-ब-रू करवाने की मंजिल के रूप में भारतीय विरासत केंद्र को देखा गया है। शायद इसी लक्ष्य को ध्यान में रखकर इसका निर्माण हुआ है। भारतीयों का इस देश में निर्माण में जो हाथ रहा है, उनकी जिस स्‍थिति को आज जानने की आवश्यकता है, वही प्रयास यह विरासत केंद्र कर रहा है। 8 मई 2015 को आधिकारिक तौर पर इसका उद्घाटन किया गया ताकि इस संग्रहालय में जिन प्रदर्शनियों की व्यवस्था की गई है उन्हें दिखाया जा सकते और आम जनता तक पहुंचाया जा सके।
 
नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी के बलिदान, त्याग या कार्यों को कहीं भुला न दे, इसी का प्रयास फल है यह केंद्र। यह केंद्र चार मंजिलों में बंटा हुआ है जिसमें कुछ प्रदर्शन व शो स्थायी रूप से हैं, जो वर्षभर चलते रहेंगे और कुछ ऐसे हैं, जो समय-समय पर लगते रहेंगे। यहां उपस्‍थित विषयाधारित स्थायी प्रदर्शनियां और खास कार्यक्रमों द्वारा सिंगापुर के जीवंत इतिहास को भिन्न समुदायों को दिखाया जाएगा।

तीसरे और चौथे तले की प्रदर्शनियां स्थायी हैं और वे वर्षभर दर्शकों की जिज्ञासा को शांत करती रहेंगी। यह पूरी प्रदर्शनी पांच विषयों पर आधारित हैं जिसे पहली शताब्दी से इक्कीसवीं शताब्दी तक व्यवस्‍थित किया गया है। इन‍ विषयों को कलाकृतियों व कई अंत:क्रियात्मक प्रदर्शनियों द्वारा दिखाया गया है। प्रवासी भारतीय समुदाय और उस समुदाय की भूमिका की कथा इनके द्वारा सहज ही अंतरमन तक उतर आती हैं। 
 
साभार - गर्भनाल 

 
webdunia
पहला विषय पहली शताब्दी से उन्नीसवीं शताब्दी तक का प्रारंभिक संपर्क है, जो दक्षिण व दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच अंत:क्रिया के रूप में दिखाई पड़ता है। पूर्व औपनिवेशिक और औपनिवेशिक समय में दक्षिण व दक्षिण एशिया के बीच संपर्क को इस प्रदर्शनी में दर्शाया गया है।

दक्षिण एशियाई व्यापार, धर्म और दूसरे शासनिक माध्यमों के द्वारा यह भाग काफी रोचक बन पड़ा है। साथ ही यह भारतीय प्रवासियों के लिए जमीन या कहें पृष्ठभूमि तैयार करने में मदद करता है। 
 
दूसरा विषय जड़ और मार्ग, उत्पत्ति और प्रवास उन्नीसवीं शताब्दी से इक्कीसवीं शताब्दी तक के समय को उपस्थित करता है। यहां प्रवासन की भिन्न तरंगों की लहर अपनी धारा को अलग रूप दे जाती है। प्रवासन की जटिलता ही उसे अधिक जीवंत और गतिशील समुदाय देती है जिसका आभास जड़ों से संबंधित गलियारे में उपस्थित वस्त्र विन्यास, भाषा, धार्मिक संपर्क, पर्व-त्योहार आदि के द्वारा सहज ही हो जाता है। वहीं मार्ग की भीषणता को जो उन्होंने अपने गांव से शहर या या शहर से सिंगापुर तक की यात्रा में महसूस किया हो उसे 'एस राजुला' जहाज की तस्वीरें कई पुराने प्रवासियों की आंखों में चमक या नमी भर देती हैं। एक बड़े नक्शे के द्वारा कुछ गतिविधियां अतीत के पन्नों को जीवंत बना देती हैं।
 
तीसरा विषय भारतीय अगुआ समुदाय पर केंद्रित है। स्ट्रेट सेटलमेंट के दौरान भारतीयों का खासा बड़ा समूह पिनैंग, मलाका और सिंगापुर की ओर आया। चूंकि यह प्रवासन अपने आप में काफी भिन्न था अत: इस गल‍ियारे द्वारा आरंभिक प्रवासन और भारतीयों द्वारा की जाने वाली गतिविधियों की झलक दिखाई देती है। इसके साथ ही भारतीय समुदाय द्वारा स्‍थापित संस्थाओं की जानकारी भी मिल जाती है।
 
चौथा विषय भारतीयों की सिंगापुर और मलाया में सामाजिक और राजनीतिक जागृति को अपनी धुरी पर रखता है। भारत में गुंजायमान स्वराज की भावना के स्वर मुखरित महसूस होते हैं। नेताजी सुभाषचंद्र बोस और उनकी सेना से संबंधित सूचनाएं इस भाग में प्रदर्शित हैं, जो इतिहास की कई सच्चाइयों से आवरण हटाती हैं।
 
पांचवी प्रदर्शनी सिंगापुर के निर्माण और उसमें भारतीयों के योगदान को दिखाती है। युद्ध के बाद आधुनिक सिंगापुर के निर्माण में जो भूमिका समुदाय द्वारा निभाई गई, उसे वीडियो, तस्वीरों, साक्षात्कार आदि के माध्यम से ‍देखा और समझा जा सकता है।
 
अगर भावी कल्पनाएं आवश्यक हैं तो अतीत की सराहना भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। भविष्य का निर्माण अतीत की नींव पर कहीं न कहीं निर्भर करता है। शायद इसी सोच को सिंगापुर सरकार कायम रखना चाहती है और इस तरह के सुंदर प्रयास करती रहती है।

साभार- गर्भनाल 
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi