किसी एनआरआई के लिए भारत जान से प्यारा है या भारत में जान प्यारी है?

स्वरांगी साने
हम सभी जानते हैं कि देश के विकास में भारतवंशियों के योगदान को रेखांकित करने के लिए हर साल जनवरी में प्रवासी भारतीय दिवस मनाया जाता है, इस बार यह 17वां सम्मेलन है जो इंदौर में होना है।

दुनियाभर में बसे भारतीयों को वतन बुलाया जाता है और वतन की याद में उनके मन में हिलोर उठने लगती हैं कि ‘भारत हमको जान से प्यारा है’…वे भारत आते हैं और इस सरज़मीं पर यहीं के पुराने बाशिंदे की तरह कुछ दिन बिताते हैं, वे वैसे ही कपड़े पहनते हैं, वैसी ही भाषा बोलते हैं, वैसा ही भोजन करते हैं, वैसा ही पानी पीते हैं…निःसंदेह क्योंकि उनके मन में यही होता है कि ‘भारत हमको’…लेकिन इसके बरक्स हमें यह भी सोचना होगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि भारत में उन्हें अपनी जान भी बहुत प्यारी होती है। पर आंकड़े गवाह हैं कि अब उन्हें इस डर को अपने मन से हटा देना चाहिए।
 
भारत में कभी भी कुछ भी हो सकता है, इसका अंदेशा उनके मन में हरदम कुलबुलाता रहता है। उन्हें डर लगता है कि यदि स्थानीय रहवासियों ख़ासकर दुकानदारों-रिक्शाचालकों, सड़क चलते राहगीरों को पता चल गया कि वे भारत के नहीं हैं, तो वे ‘ठगे’ जा सकते हैं। हम यह सुनकर ‘ठगे-से’ रह जाते हैं कि क्या हमारे देश में ऐसा हो सकता है, लेकिन होता है, इसे नकार भी नहीं सकते। 
 
आप खुद भी इसी देश के एक शहर से दूसरे किसी शहर में जाते हैं तो खुद को उस शहर का इस कदर बताते हैं कि किसी स्थानीय को आपकी बोली, आपकी भाषा से कहीं भी अंदेशा न हो कि आप किसी दूसरे शहर से हैं।

पुणे से अपने शहर इंदौर लौटने पर मैं किसी अजनबी को ‘भैया’ भी कहती हूं तो ‘भिया’ भी…मन में यह एक भाव तो रहता ही है कि कभी हम भी इस शहर के थे अब ‘नॉन रेज़ीडेंशियल इंदौरी (एनआरआई)’ हुए तो क्या लेकिन इससे भी नकार नहीं सकती कि मन में यह भाव भी होता है कि कहीं रिक्शावाला अजनबी जान ज़्यादा पैसे न मांग ले, कोई दुकानदार दस रुपए की चीज़ के बीस रुपए न लगा दे। फिर यदि उन्हें पता चल जाए कि ये ‘एनआरआई’ केवल अनिवासी इंदौरी ही नहीं, ‘नॉन रेज़ीडेंशियल इंडियन’ भी है तो दस की चीज़ सौ रुपए तक में बेच सकता है, ठग सकता है, लूट सकता है, अगवा कर सकता है और भी जाने क्या-क्या!
 
अप्रवासी भारतीय के साथ यह बात अच्छी होती है कि वे कितने ही सालों तक बाहर रहे पर उनके चेहरे और उनके रंगरूप में भारतीयता की अमिट छाप होती है, इससे महज़ देखकर कोई सहसा अंदाज़ा नहीं लगा पाता कि वे भारत के नहीं हैं। उनका वीज़ा, उनकी नागरिकता किसी भी देश की हो लेकिन भारत आने पर इसलिए वे कुछ उसी तरह के कपड़े पहनते हैं, जो यहां के लोग पहनते हैं ताकि दिखने में तो कोई कसर न रह जाए। 
 
वे यहां दुपहिया चला लेते हैं लेकिन इस भीड़ में चार पहिया वाहन नहीं चला सकते, बाईं ओर चलने के बजाय उन देशों में दाईं ओर चलने का नियम और खासकर नियम होता है, यहां कायदा-कानून ताक पर रखने वालों के आगे वे हॉर्न बजाना भूल जाते हैं क्योंकि उन्हें उसकी आदत नहीं होती। यहां भीड़ है, शोर है, ‘हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी’…पर ये उनके लोग हैं, उनका अपना देश है..इसलिए डर छोड़ें और बिंदास कहे कि ‘भारत हमको…’
 
और ये आंकड़े- वैसे राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट बताती है कि विदेशियों पर हुए अपराधों के मामलों में भी गिरावट आई है। साल 2021 में विदेशियों के साथ हुए अपराधों के 150 केस दर्ज किए गए थे। 

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)
 
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