गुजरात के गांधीनगर से दिल्ली तक का नरेन्द्र मोदी का सफर आसान नहीं रहा है। इसके लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की साथ ही तकनीक का भी सही इस्तेमाल किया। हालांकि 'दंगों के दाग' ने लोकसभा चुनाव में भी उनका पीछा नहीं छोड़ा, लेकिन मोदी ने न तो दंगों की चर्चा की न ही जाति और सांप्रदायिकता की। उन्होंने विकास को अपने प्रचार का सबसे बड़ा 'हथियार' बनाया, लोगों की समस्याओं को समझा और उनकी चर्चा की। ...और विरोधियों के लाख हमलों और आरोपों के बावजूद उन्होंने विजयश्री का वरण किया। आखिर ऐसा क्या 'खास' है चायवाले नरेन्द्र मोदी में, जो वे प्रधानमंत्री पद की कुर्सी तक पहुंच गए। आइए जानते हैं लक्ष्य तक पहुंचने की पूरी कहानी...
1. लक्ष्य पर निगाह : जब भाजपा ने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया, तब किसी को सपने में भी उम्मीद नहीं थी वे भाजपा को इतनी ऊंचाई पर ले जाएंगे। मगर उन्होंने पीएम उम्मीदवारी को अपना लक्ष्य बनाया और महाभारत के अर्जुन की तरह लक्ष्य संधान के लिए निकल पड़े।
यूं तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रचारक रहते हुए देश को करीब से जाना-समझा, लेकिन लोकसभा चुनाव के संग्राम में उन्होंने अपने 'उत्साह का रथ' देश के चारों कोनों में दौड़ाया और लक्ष्य पूरा होने के बाद भी नहीं थमे। अब प्रधानमंत्री बनने के बाद नया लक्ष्य और नई चुनौतियां भी उनका इंतजार कर रही हैं, यदि उनमें वे खरा उतरते हैं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं कि आने वाले समय में उनकी राहें और आसान हो जाएंगी।
क्या कहता है नरेन्द्र मोदी का आत्मविश्वास... पढ़ें अगले पेज पर...
2. आत्मविश्वास : नरेन्द्र मोदी में गजब का आत्मविश्वास है, जो उनकी चाल और चेहरे पर साफ दिखाई देता है। जब भी कोई उन पर आरोप लगाता है या हमला करता है तो वे तनिक भी विचलित नहीं दिखाई देते हैं। हालांकि उन पर अतिआत्मविश्वासी होने के भी आरोप लगते रहे हैं। लेकिन जिस तरह से उन्होंने पूरा चुनाव लड़ा है, उससे इस बात की पूरी तरह पुष्टि होती है।
मोदी ने अपने इसी आत्मविश्वास के बल पर अपने विचारों को सफलतापूर्वक गुजरात के लोगों तक पहुंचाया और वे गुजरात के 6 करोड़ से ज्यादा लोगों में भरोसा, विश्वास और आशा जगाने में सफल रहे। अब वही मोदी 125 करोड़ भारतवासियों की बात करते हैं, वह भी पूरे विश्वास के साथ।
सिर्फ चार घंटे सोते हैं नरेन्द्र मोदी... पढ़ें अगले पेज पर...
3. कठोर परिश्रम : इसमें कोई संदेह नहीं कि नरेन्द्र मोदी कठोर परिश्रमी हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि वे सिर्फ 4 घंटे आराम करते हैं और 20 घंटे काम करते हैं। मोदी सुबह 5 बजे उठते ही सभी समाचारों की क्लिपिंग्स देख लेते हैं। इसके बाद ही उनका दिन शुरू होता है अर्थात अखबार आने से पहले ही वे विभिन्न माध्यमों से खुद को अपडेट कर लेते हैं। चुनाव प्रचार के बाद वे गुजरात के अधिकारियों से भी वे राज्य की चर्चा करना नहीं भूलते।
मोदी ने पूरे देश में धुआंधार प्रचार किया। पार्टी के मुताबिक नरेन्द्र मोदी अब तक देशभर में 3 लाख किलोमीटर से अधिक दूरी तय कर एक तरह का रिकॉर्ड बना चुके हैं और प्रचार के परंपरागत और नए तौर-तरीकों के मिले-जुले स्वरूप के साथ 5,827 कार्यक्रमों में भाग ले चुके हैं। भाजपा ने इसे भारत के चुनावी इतिहास का सबसे बड़ा जनसंपर्क बताया है जिसमें मोदी पिछले साल 15 सितंबर से 25 राज्यों में 437 जनसभाओं को संबोधित कर चुके हैं। पार्टी का दावा है कि नरेन्द्र मोदी ने विभिन्न तरीकों से करीब 10 करोड़ लोगों से संपर्क किया।
इनकी रणनीति का तो कोई जोड़ नहीं... पढ़ें अगले पेज पर...
4. सही रणनीति : यदि रणनीति सही नहीं हो तो कठोर परिश्रम पर भी पानी फिर जाता है अत: रणनीतिक तौर पर भी नरेन्द्र मोदी ने कोई कोताही नहीं बरती। उन्होंने अपने सबसे 'भरोसेमंद' अमित शाह को चुनाव से बहुत पहले ही देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश का प्रभार दे दिया। परिणाम बताता है कि इस काम को शाह ने बखूबी अंजाम दिया। स्मृति ईरानी को अमेठी भेजकर उन्होंने राहुल समेत पूरे गांधी परिवार की उनके ही गढ़ में घेराबंद कर दी। ज्यादातर सभाएं भी उन्होंने उन्हीं स्थानों पर लीं, जहां भाजपा कमजोर दिख रही थी।
समय से पहले काम पूरा करते हैं नरेन्द्र मोदी, कैसे... पढ़ें अगले पेज पर...
5. दूरदर्शिता : प्रधानमंत्री पद के लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ रहे नरेन्द्र मोदी की दूरदर्शिता का ही तो यह कमाल है कि लोकसभा चुनाव की घोषणा होने से पहले ही वे 21 राज्यों में 38 रैलियों को संबोधित कर चुके थे। मोदी ने 26 मार्च को उधमपुर में जनसभा के साथ भारत विजय रैलियों की शुरुआत की। यही बात गुजरात चुनाव के समय भी देखने को मिली थी। जब तक कांग्रेस ने वहां प्रचार की शुरुआत की थी तब तक नरेन्द्र मोदी अपने सद्भावना उपवास के माध्यम से पूरे गुजरात के लोगों से संपर्क कर चुके थे। दूरदर्शी नरेन्द्र मोदी ने पूरे चुनाव के दौरान सांप्रदायिकता को बहुत बड़ा मुद्दा नहीं बनने दिया।
तकनीक के इस्तेमाल में भी सबसे आगे... पढ़ें अगले पेज पर...
6. तकनीक का सही इस्तेमाल : इस पूरे लोकसभा चुनाव में यदि किसी नेता या पार्टी ने तकनीक का सही इस्तेमाल किया है तो वे हैं नरेन्द्र मोदी और उनकी पार्टी भाजपा। सोशल मीडिया के मंच का उन्होंने बहुत ही प्रभावशाली तरीके से उपयोग किया और पूरे देश और दुनिया में अपने समर्थकों की एक बड़ी फौज खड़ी कर ली। तकनीक के सहारे ही भी चुनाव सभा के दौरान लगातार अपडेट रहते थे। सभा से पहले संबंधित इलाके की पूरी जानकारी उनके पास होती थी और उसी के अनुरूप वे लोगों के सामने अपनी बातें रखते थे। यह तकनीक का कमाल नहीं तो और क्या है कि मोदी ने करीब 1350 3-डी रैलियां कीं और 4,000 के लगभग ‘चाय पे चर्चा’ कार्यक्रम किए। इनके माध्यम से वे दूरदराज में बैठे लोगों से सीधे जुड़े और अपनी बात उन तक पहुंचाई।
नकारात्मकता से दूर रहे नरेन्द्र मोदी... पढ़ें अगले पेज पर...
7. सकारात्मक सोच : नरेन्द्र मोदी पूरे लोकसभा चुनाव के दौरान नकारात्मक प्रचार से दूर रहे। विरोधियों ने भले ही गुजरात दंगों को लेकर उन पर निशाना साधा हो, लेकिन उन्होंने कांग्रेस पर 84 के दंगों को लेकर ज्यादा हमला नहीं किया। टीवी चैनल पर एक इंटरव्यू में भी विदेश नीति से जुड़े एक सवाल पर कुछ भी कहने के बजाय उन्होंने कहा कि चूंकि वे सरकार में नहीं हैं इसलिए इस पर कोई स्पष्ट राय नहीं रख सकते। साथ ही भारत में चुनाव महंगाई, भ्रष्टाचार, रसोई गैस आदि मुद्दों पर लड़े जाते हैं, न कि विदेश नीति पर। गौरतलब है कि पिछले दो चुनावों में लालकृष्ण आडवाणी ने मनमोहन को कमजोर प्रधानमंत्री बताकर बार-बार निशाना साधा था, लेकिन मोदी इस बात से दूर ही रहे। उन्होंने पूरे समय केंद्र सरकार की नाकामियों की ही चर्चा की।
फैसलों पर अडिग रहते हैं, फिर चाहे... पढ़ें अगले पेज पर...
8. मजबूत इरादे : यह मोदी के आत्मविश्वास का ही परिणाम था कि वे लोकसभा चुनाव के दौरान लिए गए फैसलों से डिगे नहीं, पूरी मजबूती के साथ उन पर अड़े रहे। चाहे वह वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के गांधीनगर सीट से चुनाव लड़ने का मामला हो या फिर मुरली मनोहर जोशी की सीट बनारस से बदलकर कानपुर करने का। इन मामलों में उन्होंने कोई समझौता नहीं किया। टिकट बांटने में पूरी सतर्कता बरती गई, साथ ही सभी विरोधों को दरकिनार करते हुए जो उम्मीदवार उनको अच्छा लगा, उसको ही टिकट दिया।
हिन्दूवादी छवि का भी मिला फायदा... पढ़ें अगले पेज पर...
9. हिन्दूवादी छवि : भले ही मोदी ने हिन्दू-मुस्लिम मुद्दे का एक बार भी जिक्र नहीं किया, लेकिन जो उनकी छवि एक कट्टर हिन्दूवादी नेता की है, उससे निश्चित ही पूरे देश में हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण हुआ जिसका उन्हें सीधे-सीधे फायदा मिला। हालांकि अयोध्या में उनकी सभा के दौरान मंच पर श्रीराम और राम मंदिर का चित्र विवाद का कारण जरूर बना।
विकास पुरुष की छवि भी काम आई... पढ़ें अगले पेज पर...
10. गुजरात का ट्रैक रिकॉर्ड : नरेन्द्र मोदी को लोकसभा चुनाव में सर्वाधिक फायदा अगर किसी चीज का मिला तो वह है उनका गुजरात का ट्रैक रिकॉर्ड। चुनाव के दौरान भी उन्होंने गुजरात के विकास मॉडल को सामने रखा और लोगों को भरोसा दिलाया कि जब गुजरात विकास कर सकता है तो और आपका राज्य क्यों नहीं? उन्होंने बनारस में गुजरात की साबरमती नदी का हवाला देते हुए कहा था कि मैं साबरमती से ज्यादा गंगा को उजला बना दूंगा। पवित्र गंगा न सिर्फ बनारस के लोगों की भावनाओं से जुड़ी है, बल्कि करोड़ों देशवासियों की आस्था का भी केंद्र है। आरोप-प्रत्यारोप में उलझे बिना वे मतदाताओं को अपनी बात समझाने में सफल रहे जिसका फायदा उन्हें मतदान बूथ पर मिला।