शास्त्रों में माता षष्ठी देवी को भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री माना गया है। इन्हें ही मां कात्यायनी भी कहा गया है, जिनकी पूजा नवरात्रि में षष्ठी तिथि के दिन होती है। षष्ठी देवी मां को ही पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में स्थानीय भाषा में छठ मैया कहते हैं। छठी माता की पूजा का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी मिलता है। माता कात्यायनी की श्रीराम और श्रीकृष्ण ने पूजा की थी।
कहते हैं कि महर्षि कात्यायन ने भगवती जगदम्बा की कई वर्षों तक कठिन तपस्या की थी जिससे प्रसन्न होकर जगदम्बा ने कात्यायन ऋषि की इच्छानुसार उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लेकर महिषासुर का वध किया था।
1. श्रीराम और माता कात्यायिनी : वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान राम ने ऋष्यमूक पर्वत पर आश्विन प्रतिपदा से नवमी तक आदिशक्ति की उपासना की थी। इसके बाद भगवान किष्किंधा से लंका के लिए रवाना हुए थे।
देवी भागवत पुरण के 36वें सर्ग से लेकर 48वें सर्ग तक यह कथा मिलती है कि रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी कात्यायिनी अपनी योगिनियों के साथ लंकेश्वरी के रूप में लंका की रक्षा के लिए लंका में निवास करने लगी। बाद में एक कथा के अनुसार श्रीराम ने माता की पूजा की और हनुमानजी जब लंका गए तो उनके कहने पर माता ने लंका का त्याग कर दिया। इसके कारण ही रावण का वध संभाव हो पाया।
2. श्रीकृष्ण और कात्यायिनी : स्थानीय जनश्रुति के अनुसार भगवान कृष्ण ने कंस का वध करने से पहले यमुना किनारे माता कात्यायनी को कुलदेवी मानकर बालू से मां की प्रतिमा बनाई थी।
चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥
कात्यायनी, महामाया महायोगीन्यधीश्वरी
नंद गोप सुतं देवी पति में कुरुते नम:
भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा कालिन्दी यमुना तट पर की थी। ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
देवर्षि वेदव्यास ने श्रीमद्भागवत के दशम स्कंध के 22 वें अध्याय के अनुसार- हे कात्यायनि! हे महामाये! हे महायोगिनि! हे अधीश्वरि! हे देवि! नंद गोप के पुत्र हमें पति के रूप में प्राप्त हों। हम आपकी अर्चना एवं वंदना करते हैं। कहते हैं कि राधारानी ने गोपियों के साथ भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए कात्यायनी पीठ की पूजा की थी। माता ने उन्हें वरदान दे दिया, लेकिन भगवान एक और गोपियां अनेक, ऐसा संभव नहीं था। इसके लिए भगवान कृष्ण ने वरदान को साक्षात करने के लिए महारास किया।