शारदीय नवरात्रि 2024: तिथियां, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
Sharadiya Navratri: शारदीय नवरात्रि 2024 के 9 दिन की नौ तिथियों की दिनांक
Sharadiya Navratri 2024: शारदीय नवरात्रि 2024 की सभी तिथियों का विवरण, घटस्थापना, नवमी और दशहरे का शुभ मुहूर्त। लाला रामस्वरूप जी.डी एंड संस पंचांग के अनुसार। इस लेख के माध्यम से आप शारदीय नवरात्रि 2024 के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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शारदीय नवरात्रि 2024: तिथियों का विवरण
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घटस्थापना
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नवमी और दशहरा
नवरात्रि तिथि को लेकर खास बातें:
• पंचमी तिथि दो दिन: इस वर्ष पंचमी तिथि दो दिन आ रही है।
• घटस्थापना: नवरात्रि की शुरुआत घटस्थापना से होती है।
• नवमी और दशहरा: नवमी और दशहरा का त्योहार एक ही दिन मनाया जाएगा।
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जवारे विसर्जन: नवमी के दिन जवारे का विसर्जन किया जाता है।
लाला रामस्वरूप जी.डी एंड संस पंचांग के अनुसार यह तिथि सूची तैयार की गई है।
शारदीय नवरात्रि 2024 का विवरण
तिथि |
दिनांक |
वार |
अवसर |
प्रतिपदा |
3 अक्टूबर |
गुरुवार |
घटस्थापना |
द्वितीया |
4 अक्टूबर |
शुक्रवार |
गरबा |
तृतीया |
5 अक्टूबर |
शनिवार |
गरबा |
चतुर्थी |
6 अक्टूबर |
रविवार |
गरबा |
पंचमी |
7 अक्टूबर |
सोमवार |
गरबा |
पंचमी |
8 अक्टूबर |
मंगलवार |
गरबा |
षष्ठी |
9 अक्टूबर |
बुधवार |
गरबा |
सप्तमी |
10 अक्टूबर |
गुरुवार |
गरबा |
अष्टमी/नवमी |
11 अक्टूबर |
शुक्रवार |
जवारे विसर्जन |
नवमी/दशहरा |
12 अक्टूबर |
शनिवार |
विजयादशमी |
• नवरात्रि के नौ दिनों में माँ दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है।
• नवरात्रि के दौरान व्रत रखना, भजन-कीर्तन करना और मंदिरों में जाना शुभ माना जाता है।
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दशहरे के दिन रावण का दहन किया जाता है।
नोट : उपरोक्त जानकारी केवल सामान्य जानकारी के लिए है। किसी भी धार्मिक कार्य के लिए किसी पंडित या विद्वान से सलाह लेना उचित होगा। तिथियों में थोड़ा बहुत अंतर हो सकता है, इसलिए स्थानीय पंचांग का संदर्भ लें।
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शारदीय नवरात्रि पूजा विधि:-
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प्रतिपदा को ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें।
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घर के ही किसी पवित्र स्थान पर स्वच्छ मिट्टी से वेदी बनाएं। वेदी में जौ और गेहूं दोनों को मिलाकर बोएं।
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वेदी पर या समीप के ही पवित्र स्थान पर पृथ्वी का पूजन कर वहां सोने, चांदी, तांबे या मिट्टी का कलश स्थापित करें।
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इसके बाद कलश में आम के हरे पत्ते, दूर्वा, पंचामृत डालकर उसके मुंह पर सूत्र बांधें। कलश स्थापना के बाद गणेश पूजन करें।
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इसके बाद वेदी के किनारे पर देवी की किसी धातु, पाषाण, मिट्टी व चित्रमय मूर्ति को विधि-विधान से विराजमान करें।
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तत्पश्चात मूर्ति का आसन, पाद्य, अर्द्ध, आचमय, स्नान, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, आचमन, पुष्पांजलि, नमस्कार, प्रार्थना आदि से पूजन करें।
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इसके पश्चात दुर्गा सप्तशती का पाठ दुर्गा स्तुति करें। पाठ स्तुति करने के बाद दुर्गाजी की आरती करके प्रसाद वितरित करें।
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इसके बाद कन्या भोजन कराएं फिर स्वयं फलाहार ग्रहण करें।
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प्रतिपदा के दिन घर में ही ज्वारे बोने का भी विधान है। नवमी के दिन इन्हीं ज्वारों को, जिसमें बोए हैं, सिर पर रखकर किसी नदी या तालाब में विसर्जन करना चाहिए।
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अष्टमी तथा नवमी महातिथि मानी जाती हैं। इन दोनों दिनों पारायण के बाद हवन करें फिर यथाशक्ति कन्याओं को भोजन कराना चाहिए।