चैत्र माह की नवरात्रि यानी वसंत नवरात्रि का पहला दिन चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा का दिन होता है। इसी दिन से हिन्दू नववर्ष प्रारंभ होता है। इसीलिए इस नवरात्रि का खासा महत्व है। यह दिन बहुत विशेष होता है क्योंकि इसी दिन से नववर्ष के साथ ही नवरात्रि का पर्व भी प्रारंभ होता है। आओ जानते हैं चैत्र नवरात्रि का पहला दिन कैसा होना चाहिए, जानिए घट स्थापना से लेकर देवी पूजा तक के सारे नियम।
कैसे करें घट स्थापना और पूजा, सरल विधि : ( Ghatasthapana kalash sthapana ghat puja vidhi ) :
घट स्थापना मुहूर्त : चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 01 अप्रैल, शुक्रवार को सुबह 11 बजकर 53 मिनट से शुरू होगी और 02 अप्रैल, शनिवार को सुबह 11 बजकर 58 मिनट पर समाप्त होगी. नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है। इसके बाद 9 दिनों तक कलश का नियमित पूजन होता है। इस बार कलश स्थापना का शुभ समय 02 अप्रैल को सुबह 06 बजकर 10 मिनट से 08 बजकर 29 मिनट तक रहेगा।
घट और कलश स्थापना : पहले दिन 2 अप्रैल 2022 को प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना और घट स्थापना के बाद माता माँ शैलपुत्री पूजा होती है। माता की पूजा की शुरुआत घट स्थापना से होती है जिसमें जवारे बोए जाते हैं। इसके साथ ही जल भरा एक कलश स्थापित किया जाता है जिसमें चावल, आम या पान के पत्ते के साथ ही नारियल रखा जाता है।
- घट अर्थात मिट्टी का घड़ा। इसे नवरात्रि के प्रथम दिन शुभ मुहूर्त में ईशान कोण में स्थापित किया जाता है। घट में पहले थोड़ी सी मिट्टी डालें और फिर जौ डालें। फिर एक परत मिट्टी की बिछा दें। एक बार फिर जौ डालें। फिर से मिट्टी की परत बिछाएं। अब इस पर जल का छिड़काव करें। इस तरह उपर तक पात्र को मिट्टी से भर दें। अब इस पात्र को स्थापित करके पूजन करें। जहां घट स्थापित करना है वहां एक पाट रखें और उस पर साफ लाल कपड़ा बिछाकर फिर उस पर घट स्थापित करें। घट पर रोली या चंदन से स्वास्तिक बनाएं। घट के गले में मौली बांधे।
- अब एक तांबे के कलश में जल भरें और उसके ऊपरी भाग पर नाड़ा बांधकर उसे उस मिट्टी के पात्र अर्थात घट के उपर रखें। अब कलश के ऊपर पत्ते रखें, पत्तों के बीच में नाड़ा बंधा हुआ नारियल लाल कपड़े में लपेटकर रखें।
- अब घट और कलश की पूजा करें। फल, मिठाई, प्रसाद आदि घट के आसपास रखें। इसके बाद गणेश वंदना करें और फिर देवी का आह्वान करें। अब देवी- देवताओं का आह्वान करते हुए प्रार्थना करें कि 'हे समस्त देवी-देवता, आप सभी 9 दिन के लिए कृपया कलश में विराजमान हों।'
- आह्वान करने के बाद ये मानते हुए कि सभी देवतागण कलश में विराजमान हैं, कलश की पूजा करें। कलश को टीका करें, अक्षत चढ़ाएं, फूलमाला अर्पित करें, इत्र अर्पित करें, नैवेद्य यानी फल-मिठाई आदि अर्पित करें।
पहले दिन की पूजा के नियम :
1. पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा होती है। पूजन में शुद्धता व सात्विकता का विशेष महत्व है, इस दिन प्रात:काल स्नान-ध्यान से निवृत हो देवियों का स्मरण करते हुए भक्त व्रत एवं उपवास का पालन करते हुए भगवान का भजन व पूजन करते हैं।
2. नित्य कर्म से निवृत्त होने के बाद कुल देवी की मूर्ति या चित्र को लाल या पीला कपड़ा बिछाकर लकड़ी के पाट पर रखें। मूर्ति को स्नान कराएं और यदि चित्र है तो उसे अच्छे से साफ करें।
3. पूजन में कुल देवी के सामने धूप, दीप अवश्य जलाना चाहिए। जलाए गए दीपक को स्वयं कभी नहीं बुझाना चाहिए।
4. फिर देवी के मस्तक पर हलदी कुंकू, चंदन और चावल लगाएं। फिर उन्हें हार और फूल चढ़ाएं। फिर उनकी आरती उतारें। पूजन में अनामिका अंगुली (छोटी उंगली के पास वाली यानी रिंग फिंगर) से गंध (चंदन, कुमकुम, अबीर, गुलाल, हल्दी, मेहंदी) लगाना चाहिए।
5. पूजा करने के बाद प्रसाद या नैवेद्य (भोग) चढ़ाएं। ध्यान रखें कि नमक, मिर्च और तेल का प्रयोग नैवेद्य में नहीं किया जाता है।
6. अंत में माता की आरती करें। आरती करके नैवेद्य चढ़ाकर पूजा का समापन किया जाता है।
7. नौ दिनों के दौरान आप चाहें तो दुर्गासप्तशति का पाठ करें या चंडी पाठ करें।