देवी भागवत के अनुसार शक्तिपीठों की स्थापना के लिए शिव स्वयं भू-लोक में आए थे। दानवों से शक्तिपिंडों की रक्षा के लिए अपने विभिन्न रूद्र अवतारों को जिम्मा दिया।
* यही कारण है कि सभी 52 शक्तिपीठों में आदिशक्ति का मूर्ति स्वरूप नहीं है, इन पीठों में पींडियों की आराधना की जाती है। साथ ही सभी पीठों में शिव रूद्र भैरव के रूपों की भी पूजा होती है। इन पीठों में कुछ तंत्र साधना के मुख्य केंद्र हैं।
* वियोग में सती का शव लेकर शिव तांडव करने लगे। तब सती ने स्वयं दर्शन देकर शिव से कहा था कि पृथ्वी में जहां- जहां उनके शरीर के अंग गिरेंगे वहां महाशक्तिपीठों का उदय होगा।
* तांडव के दौरान शिव जब-जब पैर पटकते तब-तब विष्णु ने आगे आकर सुदर्शन चक्र से सती के शव के कई टुकड़े कर दिए। यही अंग शक्तिपीठ के रूप में अस्तित्व में आए।
* श्रीलंका में लंका, तिब्बत में मानस और नेपाल में गण्डकी शक्तिपीठ हैं। गण्डकी पीठ को मुक्तिदायिनी माना गया है।
* पाकिस्तान के बलूचिस्तान में हिंगलाज शक्तिपीठ 52 पीठों में सबसे दुर्गम पीठ है। जहां पहुंचना आज भी मुश्किल है।
* बांग्लादेश में सुगंधा, करतोयाघाट, चट्टल और यशोरेश्वरी शक्तिपीठ हैं। इनमें करतोयाघाट प्रमुख पीठ मानी गई है।
* देवी भागवत में जहां 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का जिक्र है। तंत्र चूड़ामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं।