वाल्मीकि रामायण में उल्लेख मिलता है कि जब राम-रावण युद्ध में मेघनाथ के भयंकर अस्त्र प्रयोग से लक्ष्मण जी मरणासन्न हो गए थे, तब हनुमानजी ने जामवंत के कहने पर वैद्यराज सुषेण को बुलाया और फिर सुषेण ने कहा कि आप द्रोणगिरि पर्वत पर जाकर संजीवनी बूटी लेकर आएं। हनुमान बेशुमार वनस्पतियों में से इन्हें पहचान नहीं पाए, तो पूरा पर्वत ही उठा लाए। इस प्रकार लक्ष्मण को मृत्यु के मुख से खींचकर जीवनदान दिया गया। यहां जानते हैं कि क्या आज भी मिलती है संजीवनी बूटी?
संजीवनी नाम से 4 वनस्पतियां हैं : 1.मृत संजीवनी (मरे हुए को जिलाने वाली), 2.विशाल्यकरणी (तीर निकालने वाली), 3.संधानकरणी (त्वचा को स्वस्थ करने वाली) तथा 4. सवर्ण्यकरणी (त्वचा का रंग बहाल करने वाली)।
मृत संजीवनी बूटी पर शोध :
-
यह बूटी सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके बारे में कहा जाता है कि यह व्यक्ति को मृत्युशैया से पुनः स्वस्थ कर सकती है। सवाल यह है कि यह चमत्कारिक पौधा कौन-सा है?
-
इस बारे में कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, बेंगलुरु और वानिकी महाविद्यालय, सिरसी के डॉ. केएन गणेशैया, डॉ. आर. वासुदेव तथा डॉ. आर. उमाशंकर ने बेहद व्यवस्थित ढंग से वर्षों पहले इस पर शोधकर 2 पौधों को चिह्नित किया था।
-
उन्होंने सबसे पहले तो भारतभर में विभिन्न भाषाओं और बोलियों में उपलब्ध रामायण के सारे संस्करणों को देखा कि क्या इन सबमें ऐसे पौधे का जिक्र मिलता है जिसका नाम संजीवनी या इससे मिलता-जुलता हो।
-
उन्होंने भारतीय जैव अनुसंधान डेटाबेस लायब्रेरी में 80 भाषाओं व बोलियों में अधिकांश भारतीय पौधों के बोलचाल के नामों की खोज की। उन्होंने 'संजीवनी' या उसके पर्यायवाचियों और मिलते-जुलते शब्दों की खोज की। नतीजा? खोज में 17 प्रजातियों के नाम सामने आए। जब विभिन्न भाषाओं में इन शब्दों के उपयोग की तुलना की गई, तो मात्र 6 प्रजातियां शेष रह गईं।
6 प्रजातियां संजीवनी बूटी से मिलती जुलती :-
-
इन 6 में से भी 3 प्रजातियां ऐसी थीं, जो 'संजीवनी' या उससे मिलते-जुलते शब्द से सर्वाधिक बार और सबसे ज्यादा एकरूपता से मेल खाती थी।
-
ये थी- क्रेसा क्रेटिका, सिलेजिनेला ब्रायोप्टेरिस और डेस्मोट्रायकम फिम्ब्रिएटम।
-
इनके सामान्य नाम क्रमशः रुदन्ती, संजीवनी बूटी और जीवका हैं। इन्हीं में से एक का चुनाव करना था।
-
अगला सवाल यह था कि इनमें से कौन-सी पर्वतीय इलाके में पाई जाती है, जहां हनुमान ने इसे तलाशा होगा।
-
क्रेसा क्रेटिका नहीं हो सकती, क्योंकि यह दखन के पठार या नीची भूमि में पाई जाती है। अब शेष बची 2 वनस्पतियां।
-
अब शोधकर्ताओं ने सोचा कि वे कौन-से मापदंड रहे होंगे जिनका उपयोग रामायण काल के चिकित्सक औषधीय तत्व के रूप में करते होंगे।
-
प्राचीन भारतीय पारंपरिक चिकित्सक इस सिद्धांत पर अमल करते थे कि जिस पौधे की बनावट प्रभावित अंग या शरीर के समान हो, वह उससे संबंधित रोग का उपचार कर सकता है।
सिलेजिनेला ब्रायोप्टेरिस : सिलेजिनेला ब्रायोप्टेरिस कई महीनों तक एकदम सूखी या 'मृत' पड़ी रहती है और एक बारिश आते ही 'पुनर्जीवित' हो उठती है। डॉ. एनके शाह, डॉ. शर्मिष्ठा बनर्जी और सैयद हुसैन ने इस पर कुछ प्रयोग किए हैं और पाया है कि इसमें कुछ ऐसे अणु पाए जाते हैं, जो ऑक्सीकारक क्षति व पराबैंगनी क्षति से चूहों और कीटों की कोशिकाओं की रक्षा करते हैं तथा उनकी मरम्मत में मदद करते हैं। तो क्या सिलेजिनेला ब्रायोप्टेरिस ही रामायण काल की संजीवनी बूटी है?
डेस्मोट्रायकम फिम्ब्रिएटम : सच्चे वैज्ञानिकों की भांति गणेशैया व उनके साथी जल्दबाजी में किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचना चाहते। उनका कहना है कि दूसरे पौधे डेस्मोट्रायकम फिम्ब्रिएटम का दावा भी कमतर नहीं है। अब इन दो प्रजातियों के बीच फैसला करने के लिए और शोध की जरूरत है। इसके संपन्न होते ही रामायणकालीन संजीवनी बूटी शायद हमारे सामने होगी।
रोडिओला : भारतीय वैज्ञानिकों ने हिमालय के ऊपरी इलाके में एक अनोखे पौधे की खोज की है। वैज्ञानिकों का दावा है कि यह पौधा एक ऐसी औषधि के रूप में काम करता है, जो हमारे इम्यून सिस्टम को रेग्युलेट करता है। हमारे शरीर को पर्वतीय परिस्थितियों के अनुरूप ढलने में मदद करता है और हमें रेडियो एक्टिविटी से भी बचाता है।
यह खोज सोचने पर मजबूर करती है कि क्या रामायण की कहानी में लक्ष्मण की जान बचाने वाली जिस संजीवनी बूटी का जिक्र किया गया है, वह हमें मिल गई है? रोडिओला नाम की यह बूटी ठंडे और ऊंचे वातावरण में मिलती है। लद्दाख में स्थानीय लोग इसे सोलो के नाम से जानते हैं। अब तक रोडिओला के उपयोगों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। स्थानीय लोग इसके पत्तों का उपयोग सब्जी के रूप में करते आए हैं। लेह स्थित डिफेंस इंस्टिट्यूट ऑफ हाई एल्टिट्यूड इस पौधे के चिकित्सकीय उपयोगों की खोज कर रहा है। यह सियाचिन जैसी कठिन परिस्थितियों में तैनात सैनिकों के लिए बहुत उपयोगी हो सकता है।
इफेड्रा : माना जाता है कि सोमपान की प्रथा केवल ईरान और भारत के वह इलाके जिन्हें अब पाकिस्तान और अफगानिस्तान कहा जाता है यहीं के लोगों में ही प्रचलित थी। कुछ वर्ष पहले ईरान में इफेड्रा नामक पौधे की पहचान कुछ लोग सोम से करते थे। इफेड्रा की छोटी-छोटी टहनियां बर्तनों में दक्षिण-पूर्वी तुर्कमेनिस्तान में तोगोलोक-21 नामक मंदिर परिसर में पाई गई हैं। इन बर्तनों का व्यवहार सोमपान के अनुष्ठान में होता था। यद्यपि इस निर्णायक साक्ष्य के लिए खोज जारी है। हलांकि लोग इसका इस्तेमाल यौन वर्धक दवाई के रूप में करते हैं। कुछ विद्वान इसे ही 'संजीवनी बूटी' कहते हैं।
क्या मशरूम का रस : एक यूरोपीय शोधकर्ता के अनुसार प्राचीन भारतीय साहित्य में देवताओं का पसंदीदा पेय 'सोमरस' क्या मशरूम का रस था और क्या यही संजीवनी बूटी है। गार्डन वास्सन ने वेदों पर शोध के बाद लिखा है कि सोमरस में सोम और कुछ नहीं, बल्कि खास मशरूम था। सोम डिवाइन मशरूम ऑफ इमार्टेलिटी नामक पुस्तक में उन्होंने लिखा है सोम एक मशरूम था, जिसे लगभग 4000 वर्ष पहले यानी 2000 ईसा पूर्व उन लोगों द्वारा धार्मिक कर्मकांडों में प्रयोग में लाया जाता था, जो खुद को आर्य कहते थे।
वास्सन का निष्कर्ष है कि इस मशरूम में पाया जाने वाला हेलिसोजेनिक तत्व मस्तिष्क के ग्वेद में उल्लिखित परमोल्लास का कारक था। महाराष्ट्र के अमरावती विश्वविद्यालय में जैव प्रौद्योगिकी विषय की शोधकर्ता अल्का करवा ने कहा कि मशरूम का सेवन स्वास्थ्य के लिए बड़ा गुणकारी है। इसमें अद्भुत चिकित्सकीय गुण मौजूद हैं। यह एड्स, कैंसर, रक्तचाप और ह्रदयरोग जैसी गंभीर बीमारियों में काफी लाभदायी है, क्योंकि यह रोगी की प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ता है। इसी कारण से इसे अंग्रेजी में 'एम्यूनो बूस्टर' भी कहा जाता है।
करवा जैसे कुछ मशरूम विशेषज्ञों का कहना है कि भारत और चीन जैसे कुछ देशों में इसका सेवन अच्छे स्वास्थ्य, अच्छे सौभाग्य और अमरत्व का प्रतीक माना जाता रहा है। उन्होंने कहा कि लोगों का यह विश्वास इस बात पर आधारित है कि मशरूम का सेवन शरीर की प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाने वाला तथा लंबी उम्र प्रदान करने वाला माना जाता रहा है। मशरूम में पोटाशियम, सोडियम, मैगनेशियम, कैल्शियम और कुछ लौह तत्व जैसे खनिज पदार्थ पर्याप्त मात्रा में हैं। इसमें विटामिन ए, डी, के, ई और बी काम्प्लैक्स के सारे विटामिन पाए जाते हैं। मशरूम में फैटी एसिड की कमी होती है। इसके अलावा इसमें कार्बोहाइड्रेट की मात्रा लगभग पत्ता गोभी के मात्रा के बराबर होती है। इसके अतिरिक्त इसमें फाइबर पदार्थ होते हैं। यह कम कैलोरी वाला भोज्य पदार्थ है, जिसमें कोई कॉलेस्ट्रॉल नहीं होता। जो अनसेचुरेटेड फैट की मात्रा अलसी में पाई जाती है, वह मशरूम में भी उपलब्ध है।