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2024 के लोकसभा चुनाव समय से पहले होने की अटकलों के 5 बड़े कारण?

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विकास सिंह

, शनिवार, 17 जून 2023 (10:00 IST)
2024  के लोकसभा चुनाव समय से होंगे पहले?
विधानसभा चुनावों के साथ होंगे लोकसभा चुनाव?
मोदी के चेहरे के चुनाव राज्यों की चुनावी नैय्या?
विपक्ष की एकजुटता को रोकने के लिए मोदी सरकार चलेगी मास्टर स्ट्रोक?
सत्ता विरोधी लहर को रोकने के लिए मोदी सरकार चलेगी ट्रंप कार्ड?
राज्यों में भाजपा की हार से भाजपा के ढलान पर जाने का खतरा?

Lok Sabha Elections 2024:प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (narendra modi) के नेतृत्व में केंद्र की भाजपा सरकार समय से पहले लोकसभा चुनाव कराने का फैसला कर विरोधी दलों को चौंका सकती है। कर्नाटक में हार के बाद भाजपा जिस तरह से चुनावी मोड में दिखाई दे रही है उससे समय से पहले लोकसभा चुनाव कराने की अटकलें  तेज होती जा रही है। विपक्षी दलों की एकजुटता की मुहिम के बीच 9 साल पूरे होने पर भाजपा इस वक्त देश में महाजनसंपर्क अभियान चल रही है। जून की प्रचंड गर्मी में केंद्रीय मंत्री और भाजपा के दिग्गज नेता देश के विभिन्न राज्यों में जिलों की खाक छान रहे है। 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा को जिस सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था वहां पर केंद्रीय मंत्रियों ने अपना डेरा डाल दिया।

लोकसभा चुनावों में भले ही अभी लगभग एक साल का समय शेष बचा हो लेकिन भाजपा पूरे चुनावी मोड में नजर आ रही है। दिल्ली में लगातार भाजपा के चुनावी चाणक्य माने जाने वाले अमित शाह संगठन के बड़े नेताओं के साथ बैठक कर रहे है। ऐसे में यह सवाल अब दिल्ली के सियासी गलियारों के साथ राज्यों में पूछा जाने लगा है कि क्या लोकसभा चुनाव समय से पहले होंगे?

यह सवाल उस वक्त और बढ़ा हो गया जब लोकसभा चुनाव के लिए विपक्ष की एकजुटता की मुहिम चला रहे बिहार के मुख्यमंत्री ने लगातार दो दिन समय से पहले लोकसभा चुनाव कराने की संभावना जाहिर कर दी। ऐसे में आइए सिलसिलेवार समझते हैं कि आखिरी क्यों तय समय से पहले लोकसभा चुनाव कराने की चर्चा ने जोर पकड़ लिया है।

भाजपा को हार का खतरा?-कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा की करारी हार के बाद अब पूरे देश की निगाहें साल के अंत में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव पर टिक गई है। साल के अंत में जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने है उनमें उत्तर भारत के तीन बड़े राज्य मध्यप्रदेश, राजस्थान छत्तीसगढ़ के साथ तेलंगाना और मिजोरम में भी चुनाव होने है। इन राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद अगले साल (2024) के अप्रैल-मई महीने में देश में आम चुनाव (लोकसभा चुनाव) होने है।

कर्नाटक चुनाव में जिस तरह से भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है, उसके बाद बड़े राज्यों में मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे का मुकाबला है। इन तीन राज्यों में केवल मध्यप्रदेश में भाजपा सत्ता में है और कर्नाटक में  भाजपा की हार के बाद राज्य में विरोधी दल कांग्रेस लगातार कर्नाटक जैसे विधानसभा चुनाव के नतीजे आने का दावा कर रहे है। वहीं छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस भाजपा पर भारी प़ड़ती दिख रही है।
 
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ऐसे में भाजपा मोदी  के चेहरे पर ही विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए लोकसभा चुनाव पहले  कराने का फैसला कर सकती है और पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के साथ ही लोकसभा चुनाव करा सकती है। अगर देखा जाए तो चुनावी राज्यों में छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश विधानसभाओं का कार्यकाल क्रमशः तीन जनवरी और छह जनवरी, 2024 और राजस्थान और तेलंगाना विधानसभाओं का कार्यकाल क्रमशः 14 जनवरी और 16 जनवरी, 2024 को समाप्त हो रहा है। ऐसे में इन राज्यों के विधानसभा चुनाव के साथ लोकसभा  चुनाव करा सकते है।

विपक्ष की एकजुटता को रोकने का दांव?-2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी के चेहरे को चुनौती देने के लिए इस वक्त कई विपक्षी दल एकजुटता की मुहिम में लगे हुए है। लोकसभा चुनाव में विपक्षी दल एक साझा मोर्चा बनाकर भाजपा को चुनौती देने की तैयारी में है। ऐसे में विपक्षी दलों की एकजुटता मुहिम को रोकने के लिए मोदी सरकार लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव कराने का दांव चल सकती  है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जिन्होंने लोकसभा  चुनाव समय से पहले होने की संभावना जताई है वह कहते हैं कि केंद्र सरकार को अधिकार है कि वह लोकसभा  चुनाव पहले करा सकता है। जिसको बहुमत है वह चाहे तो पहले चुनाव करा  सकता है। कभी भी कोई कर सकता है। मान लीजिए विपक्ष की यूनिट के लिए शुरुआत की गई और हो सकता है उन लोगों को लगे कि आगे यह लोग मिलकर आगे बहुत मूवमेंट करते तो ज्यादा नुकसान कर सकते है। इसकी संभावना अधिक है, इसलि हमने सारी पार्टियों को अलर्ट किया है कि एक साथ रहिएगा।

दरअसल विपक्ष की एकजुटता मुहिम में शामिल कई क्षेत्रीय राज्यों के विधानसभा चुनाव में आमने-सामने होंगे। उदाहरण के तौर पर मध्यप्रदेश में समाजवादी पार्टी अकेले दम पर विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में है, जहां उसका सीधा मुकाबला भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस से है। इस तरह विपक्ष को एकजुट करने की मुहिम में लते तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के लिए राज्य में भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस भी एक चुनौती है। ऐसे में  अगर लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते है तो क्षेत्रीय दलों के हित आपस में टकराएंगे और राष्ट्रीय स्तर पर किसी भी गठबंधन की बनने की संभावना कम हो जाएगी।
 
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सत्ता विरोधी लहर को रोकने का ट्रंप कार्ड?-कर्नाटक में भाजपा की हार का सबसे बड़ा कारण राज्य की भाजपा सरकार के खिलाफ तगड़ी सत्ता विरोधी लहर का होना था। चुनाव में कांग्रेस ने जिस तरह से भाजपा सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया वह चुनाव में भारी पड़ गया और कांग्रेस को बड़ी जीत हासिल हुई। कर्नाटक की तर्ज पर मध्यप्रदेश में भी सत्ता विरोधी लहर का सामना भाजपा को करना पड़ रहा है। ऐसे में भाजपा विधानसभा चुनाव में मोदी के चेहरे के साथ सत्ता विरोधी लहर को कम करने का कार्ड चल सकती है।

इसके साथ ही छत्तीसगढ़ जैसे चुनावी राज्य जहां पर भाजपा के पास कोई मजबूत चेहरा नहीं हैव वहां पर भाजपा मोदी के चेहरे के साथ चुनावी नैय्या पार लगाने की कोशिश में है।

वन नेशन-वन इलेक्शन का फॉर्मूला?- देश में एक साथ विधानसभा और लोकसभा चुनाव करने के साथ भाजापा वन नेशन-वन इलेक्शन के फॉर्मूले पर आगे बढ़ सकती है। इस साल के अंत में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होने के साथ अगले साल लोकसभा  चुनाव के साथ चार राज्यों के विधानसभा चुनाव है। ऐसे में राज्यों के विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव कराके भाजपा वन नेशन-वन इलेक्शन के फॉर्मूले पर आगे बढ़ सकती है।

राजनीतिक विश्लेषक का नजरिया?-वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने इंडिया शाइनिंग की खुशफहमी में होकर समय से पहले चुनाव कराने का फैसला किया था। वहीं अगर आज लोकसभा चुनाव पहले कराने की चर्चा चल रही है तो इसका कारण राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार है। पहले हिमाचल फिर कर्नाटक में जिस तरह से भाजपा की हार हुई और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में हालत खराब होने का इशारा मिल रहा है, उससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भाजपा एक ढलान पर दिखाई दे रही है।

रामदत्त त्रिपाठी आगे कहते हैं कि भाजपा ने जिस तरह से भीषण गर्मी में चुनावी तैयारी शुरु कर दी है औऱ गर्मी में चुनावी सभा कर रही है। उससे भी चुनाव समय से पहले कराने की संभावना बढ़ रही है। वहीं चुनाव समय से पहले कराके भाजपा विपक्षी दलों की एकजुटता को तोड़ने की कोशिश कर सकती है।

वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि अगर भाजपा समय से पहले लोकसभा चुनाव कराने का फैसला करती है तो यह उनके नजरिए से सही फैसला नहीं होगा, चुनाव समय पर ही करना चचाहिए। वह कहते है कि 10 साल का कार्यकाल एक लंबा समय होता है। चुनाव में जिस तरह से अनिश्चितता होती है और लोगों में सरकार बदलने की भावना आ सकती है। इसका बड़ा कारण मध्यम वर्ग और फ्लोटिंग वोटर में अब एक अनिश्चिता देखी जा  रही है।

कब-कब समय से पहले चुनाव?-अगर लोकसभा चुनाव समय से पहले कराए जाएंगे तो ऐसा नहीं है कि यह पहली  बार होगा। देश में अब तक तीन बार समय से पहले चुनाव कराए गए हैं। पहली बार 1971 में, दूसरी बार 1984 में और तीसरी बार 2004 में समय से पहले चुनाव कराए गए है।

कैसे समय से पहले भंग होती  है लोकसभा?-लोकसभा या विधानसभा के चुनाव समय से पहले कराने अधिकार मौजूदा बहुमत वाली सरकारों को होता है। केंद्र में सत्तारूढ़ दल संविधान के अनुच्छेद 85(2)(b) के तहत लोकसभा भंग करने की सिफारिश राष्ट्रपति से कर सकती है। राष्ट्रपति के पास लोकसभा भंग करने का अधिकार है। इसी तरह से आर्टिकल 174(2)(b) में गवर्नर के पास विधानसभा भंग करने का अधिकार है। सदन भंग की सूचना चुनाव आयोग को दी जाती है। इसके बाद आयोग चुनाव का नोटिफिकेशन जारी करता है।

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