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बुलडोजर पॉलिटिक्स पर ब्रेक लगाएगा सुप्रीम कोर्ट का फैसला?

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विकास सिंह

, गुरुवार, 14 नवंबर 2024 (13:45 IST)
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में बुलडोजर एक्शन को लेकर गाइडलाइन तय करने के साथ यह साफ कर दिया कि अब अफसर जज बनकर बुलडोजर न्याय नही कर सकेंगे। सुप्रीम कोर्ट के बुलडोजर फैसले का असर देश की सियासत पर भी देखा जा रहा है। उत्तर प्रदेश सहित भाजपा शासित कई राज्यों में पिछले लंबे समय बुलडोजर के राजनीतिक इस्तेमाल पर बहस चल रही थी। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ऐसे समय आया है जब उत्तर प्रदेश में 9 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहे है और उत्तर प्रदेश में बीते कुछ सालों में बुलडोजर न्याय के सहारे वोटर्स का ध्रुवीकरण कर बुलडोजर पॉलिटिक्स कर इसे एक विनिंग फॉर्मूले में बदल दिया गया है।

बुलडोजर पॉलिटिक्स सियासत का 'विनिंग फॉर्मूले'!-उत्तर प्रदेश की सियासत में 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद जब योगी राज शुरु हुआ तब बुलडोजर न्याय की भी एंट्री हुई है। अपराधियों और माफियाओं के खिलाफ शुरु हुआ प्रशासन का बुलडोजर देखते ही देखती सियासी बुलडोजर में बदल गया और यूपी की सियासत में बुलडोजर पॉलिटिक्स की एंट्री होने के साथ वह जीत की गांरटी बन गया है। 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अपराधियों और माफिया के खिलाफ 'बुलडोजर' वाला स्लोगन दिया गया था। इस ‘बुलडोजर’ को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने चुनावी भाषणों मे जमकर भुनाया भी और भाजपा ने प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में अपनी वापसी कर ली।

उत्तर प्रदेश की सियासत में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को उनके समर्थकों ने 'बुलडोजर बाबा' का नया नाम भी दे दिया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की चुनावी रैलियों में बुलडोजर से उनका स्वागत होने के साथ बुलडोजर खड़े हुए भी दिखाई दिए। खुद मुख्यमंत्री अपनी चुनावी रैलियों में कानून व्यवस्था को लेकर बुलडोजर कार्रवाई का हवाला देते हुए नजर आए।

वहीं योगी आदित्यनाथ के दूसरी बार प्रचंड जीत के साथ उत्तर प्रदेश की सत्ता में लौटने पर राज्य में बुलडोजर रैलियां निकाली गई। उत्तरप्रदेश में योगी सरकार की सफ़लता के बुलडोजर फॉर्मूले को भाजपा शासित अन्य राज्यों में 'विनिंग फॉर्मूले' के तौर पर देखा जाने लगा और उत्तर प्रदेश से सटे मध्यप्रदेश में भी इसकी एंट्री हुई है। पिछले साल विधानसभा चुनावों से पहले रामनवमी पर खरगोन में हुई हिंसा के आरोपियों के खिलाफ बुलडोजर कार्रवाई के साथ ही मध्यप्रदेश की सियासत में बुलडोजर पॉलिटिक्स की एंट्री हो गई। अब हाल में प्रदेश के छतरपुर जिले में जब थाने में पथराव के आरोपी के धर्म विशेष से जुड़े होने और उसके घर पर बुलडोजर कार्रवाई की चर्चा पूरे देश में हुई। हाल में उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में हुई हिंसा के आरोपियों पर जब बुलडोजर की कार्रवाई की तैयारी की गई तो यह सुर्खियों में आ गया।
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बुलडोजर पॉलिटिक्स पर लगेगा ब्रेक- बुलडोजर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर भी देखा जा रहा है और जमकर  सियासत हो रही है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि समाजवादी ने हमेशा कहा है कि बुलडोजर असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक है और बुलडोजर डर का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा सरकार का प्रतीक बन चुके बुलडोजर के खिलाफ टिप्पणी की है। मैं सरकार के खिलाफ इस फैसले के लिए सुप्रीम कोर्ट को धन्यवाद देता हूं, जो लोग घर तोड़ना जानते हैं, उनसे आप क्या उम्मीद कर सकते हैं? कम से कम आज उनका बुलडोजर गैराज में खड़ा रहेगा, अब किसी का घर नहीं टूटेगा। सरकार के खिलाफ इससे बड़ी टिप्पणी और क्या हो सकती है?

वहीं सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट फैसला वास्तव में बीजेपी सरकार को आईना दिखाने जैसा है, खासकर उत्तर प्रदेश में। देशभर में बीजेपी सरकारों की ओर से की जा रही अत्यधिक मनमानी कार्रवाई, चाहे वह उत्तर प्रदेश हो या मध्य प्रदेश, गैरकानूनी है, नहीं होनी चाहिए। आपको दोषियों को सजा देनी चाहिए लेकिन मनमाने ढंग से घरों को तोड़ना और सबसे ज्यादा समाज को बांटना अनुचित है. बुलडोजर न्याय नाम की कोई चीज नहीं है. संविधान है, कानून का राज है और इस देश में वही चलेगा।

उत्तर प्रदेश की सियासत को कई दशकों से करीब से देने वाले वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही को भी सीधा संदेश है और सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले से एक तरह से सचेत किया है। वह कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से बुलडोजर न्याय पर ब्रेक लगा दिया जैसा पिछले दिनों ने बहराइच में देखा गया जहां आरोपियों के घर तोड़ने के लिए रातों रात सड़क चौड़ीकरण का हवाल दिया गया। वह कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब योगी सरकार के बुलडोजर पर ब्रेक तो लगना चाहिए।
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बुलडोजर न्याय पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला- इससे पहले बुधवरा को  'बुलडोजर न्याय' पर सख्त रुख अपनाते हुए पीठ ने कहा कि प्राधिकारी न्यायाधीश का काम नहीं कर सकते, किसी आरोपी को दोषी करार नहीं दे सकते और उसके घर को ध्वस्त नहीं कर सकते। न्यायमूर्ति गवई और न्यायमूर्ति विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि यदि प्राधिकारी मनमाने तरीके से किसी नागरिक के घर को सिर्फ इस आधार पर ध्वस्त करते हैं कि वह एक अपराध में आरोपी है, तो वह कानून के शासन के सिद्धांतों के विपरीत काम करता है। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि यदि कार्यपालक अधिकारी किसी नागरिक का घर मनमाने तरीके से सिर्फ इस से सिर्फ इस आधार पर गिराते है कि उस पर किसी अपराध का आरोप है तो यह कानून के  विपरीत है

क्या हैं सुप्रीम कोर्ट के निर्देश : 
  • अनुच्छेद 142 सर्वोच्च न्यायालय को उसके समक्ष लंबित किसी भी मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक कोई भी ‘डिक्री’ या आदेश पारित करने का अधिकार देता है।
  • ढहाने का आदेश पारित होने के बाद भी प्रभावित पक्षों को कुछ समय दिया जाना चाहिए ताकि वे उचित मंच पर आदेश को चुनौती दे सकें।
  • न्यायालय ने कहा कि ऐसे मामलों में भी जहां लोग ध्वस्तीकरण आदेश का विरोध नहीं करना चाहते हैं उन्हें घर खाली करने और अन्य व्यवस्थाएं करने के लिए पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए।
  • इसमें कहा गया, ‘‘यह अच्छा नहीं लगता कि महिलाओं, बच्चों और बीमार व्यक्तियों को रातों-रात सड़कों पर ला दिया जाए। यदि अधिकारी कुछ वक्त के लिए रुक जाएं तो आसमान नहीं टूट पड़ेगा।
  • पीठ ने निर्देश दिया कि मालिक को पंजीकृत डाक से नोटिस भेजा जाए और इसके अतिरिक्त नोटिस को संपत्ति के बाहरी हिस्से पर भी चिपकाया जाएगा। पीठ ने कहा, ‘‘नोटिस प्राप्त होने के बाद से 15 दिन की समयसीमा प्रारंभ होगी, जिसका जिक्र ऊपर किया गया है।
  • पीठ ने स्पष्ट किया कि उसके निर्देश उन मामलों में लागू नहीं होंगे जहां सड़क, गली, फुटपाथ, रेलवे लाइन या किसी नदी या जल निकाय जैसे किसी सार्वजनिक स्थान पर कोई अनधिकृत संरचना है और उन मामलों में भी लागू नहीं होंगे जहां न्यायालय ने ध्वस्तीकरण का आदेश दिया है।
  • पीठ ने निर्देश दिया कि विध्वंस की कार्यवाही की वीडियोग्राफी कराई जाए। इसने कहा कि संविधान और आपराधिक कानून के आलोक में अभियुक्तों और दोषियों को कुछ अधिकार और सुरक्षा उपाय प्राप्त हैं।

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