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अयोध्या राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के लिए मृगशिरा नक्षत्र ही क्यों चुना गया?

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संदीप श्रीवास्तव

Ayodhya Ram Mandir Pran Pratistha Ceremony: करोड़ों लोगों के आराध्य श्रीरामलला भव्य प्राण-प्रतिष्ठा के साथ जनवरी माह में अयोध्या स्थित मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करेंगे। इसकी तिथि भी निर्धारित हो चुकी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 22 जनवरी 2024 रामलला को गर्भगृह में प्रतिष्ठित करेंगे। इस भव्य आयोजन के लिए ट्रस्ट ने अभिजीत योग और मृगशिरा नक्षत्र को चुना है। आपको बता दें कि भूमि पूजन के समय को लेकर काफी विवाद हुआ था, लेकिन इस बार इन सब बातों का विशेष रूप से ध्यान रखा गया है। 
 
मकर संक्रांति के बाद 22 जनवरी, 2024 को अपराह्न 12:30 बजे रामलला की प्राण-प्रतिष्‍ठा व गर्भगृह में प्रवेश की तिथि निर्धारित की गई है। राम मंदिर ट्रस्ट के ट्रस्टी कामेश्वर चौपाल के अनुसार मकर संक्रांति के बाद 16 जनवरी से 24 जनवरी 2024 की सभी तिथियां शुभ मानी गई हैं।
 
अभिजीत योग में हुआ था श्रीराम का जन्म : राम मंदिर के कोषाध्यक्ष धार्मिक अनुष्ठानों आदि कार्यक्रमों के लिए बनी हाई पॉवर कमेटी के अध्यक्ष स्वामी गोविन्द देव गिरि ने बताया कि प्रभु श्रीराम का जन्म अभिजीत योग में हुआ था। इसलिए अन्य तिथियों में यह योग अल्प समय के लिए लग रहा है, जबकि 22 जनवरी 2024 को यह योग दीर्ध समय तक के लिए है। इसके बाद ही तय किया गया कि श्रीराम लला की प्राण-प्रतिष्ठा व गर्भगृह में प्रवेश 22 जनवरी को ही किया जाएगा। इसके बाद विश्व हिन्दू परिषद ने कार्यक्रम की तैयारियां शुरू कर दीं।
 
ट्रस्ट के द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी निमंत्रण भेजा गया, जिसे उन्होंने स्वीकृति दे दी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 22 जनवरी, 2024 को रामलला के श्री विग्रह की प्राण-प्रतिष्‍ठा समारोह में शामिल होने अयोध्‍या आएंगे। दोपहर 12.30 बजे प्राण प्रतिष्‍ठा की जाएगी।
 
क्या कहते हैं चंपत राय : ट्रस्ट के महासचिव चम्पत राय के मुताबिक 22 जनवरी 2024 की शुभ मुहर्त तिथि श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने काशी के विद्वानों से गहन विचार-विमर्श के बाद तय की है, जो कि उत्तम है। अपराह्न 12 से 1 बजे राम मंदिर के लोकार्पण का संकल्प और मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा की मुख्य विधि संकल्प आयोजन के मुख्य यजमान भारत के प्रधानमंत्री मोदी के हाथों होगी।
 
इस दौरान देश के कोने-कोने से आए हुए वेदों की सभी शाखाओ के विद्वान् अपनी-अपनी शाखा के साथ मंत्रों का पाठ करेंगे। रामलला की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा के उपरांत पूर्ण आहुति व भंडारा शुरू होगा। इस पूरे आयोजन में देश के 150 प्रकांड विद्वानों के आने की संभावना है। इस अवसर पर देश भर से 4000 संत-महात्मा और समाज के 2500 प्रतिष्ठित व्यक्ति मौजूद रहेंगे। 
 
क्यों महत्वपूर्ण है मृगशिरा ‍नक्षत्र : विद्वानों के मुताबिक संपूर्ण राष्ट्र के लिए यह दिन बड़ा ही महत्वपूर्ण है क्योंकि मृगशिरा नक्षत्र कृषि कार्य, व्यापार, विदेश यात्रा के लिए बहुत ही उत्तम माना जाता है। हमारा भारत देश विशेष रूप से कृषि प्रधान देश है और अयोध्या में रामलला की प्राण- प्रतिष्ठा के साथ हमारे राष्ट्र का भी कल्याण होगा। 
 
काशी हिन्दू विवि के धर्म शास्त्र मीमांसा विभाग के विभागध्यक्ष प्रो. माधव जनार्दन रटाटे के अनुसार जब राम लला की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा होगी, वह वक्त ऋषियों का होगा। इस भव्य मौके के अवसर पर देश भर से 4000 संत-महात्मा और समाज के 2500 प्रतिष्ठित महानुभाव उपस्थित रहेंगे।
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कौन कराएगा पूजा और प्राण-प्रतिष्ठा : राम लला की प्राण-प्रतिष्ठा शिव नगरी काशी के प्रतिष्ठित आचार्य पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित पुत्र सुनील दीक्षित सहित अपने शिष्यों के साथ रामानंद संप्रदाय के अनुरूप पूजा कराई जाएगी। पंडित गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ और उनकी शिष्य मंडली भी पूजा और प्राण प्रतिष्ठा संपन्न कराएंगे। शास्त्री मूल रूप से तमिलनाडु के रहने वाले हैं, किन्तु 4 पीढ़ियों से इनका परिवार वाराणसी में रह रहा है। द्रविड़ के बारे में कहा जाता है कि ये ज्योतिष के प्रकांड विद्वान् हैं।
 
कार्यक्रम की रूप रेखा
  • 17 जनवरी से ही विधि-विधान की होगी शुरुआत। 
  • 17 जनवरी को जल यात्रा के साथ धार्मिक कार्यक्रम की शुरुआत हो जाएगा। 
  • अनुष्ठान का शुभारंभ गणेश पूजन के साथ किया जाएगा। 
  • श्री विग्रह का अलग-अलग अधिवास होगा।
  • 22 जनवरी 2024 को शैयाधिवास के बाद रामलला गर्भगृह में महापीठ पर प्रतिष्ठित हो जाएंगे। 
भूमि पूजन के समय हुआ था विवाद : दअरसल, 5 अगस्‍त, 2020 को जब पीएम मोदी राम मंदिर का शिलान्‍यास करने अयोध्‍या आए थे, तब इसको लेकर विवाद की स्थिति बन गई थी। वाराणसी के संतों और ज्योतिषियों ने सवाल खड़े कर दिए थे। उनका कहना था कि 5 अगस्त बुधवार को दोपहर 12 बजकर 5 मिनट पर राम मंदिर शिलान्यास का महूर्त अशुभ है। ज्योतिषपीठ और शारदा पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने तो सूर्य के दक्षिणायन में होने की सूरत में इस पूरे मुहूर्त को परम अशुभ घोषित कर दिया था।
 

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