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ग्लोबल हंगर इंडेक्स में पाकिस्तान और श्रीलंका से क्यों पिछड़ा भारत?

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विकास सिंह

, मंगलवार, 18 अक्टूबर 2022 (13:50 IST)
ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट में भारत की स्थिति पाकिस्तान और श्रीलंका से भी खराब होने को लेकर विवाद छिड़ गया है। रिपोर्ट में भारत में 121 देशों में 107वें स्थान पर है। रिपोर्ट पर विवाद इसलिए भी बढ़ गया है क्योंकि रिपोर्ट के मुताबिक भूख के मामले में अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान और श्रीलंका से भी भारत खराब स्थिति में है। आइए समझते हैं कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स पर आखिर क्यों विवाद है और आखिरी क्या कारण है कि सूचकांक में भारत की स्थिति क्यों खराब है।  

ग्लोबल हंगर इंडेक्स और भारत-ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट में भारत  की स्थिति खराब होने का बड़ा कारण रिपोर्ट का पैमाना है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में रैंकिंग चार पैमानों पर की जाती है। इसमें कुल जनसंख्या में कुपोषित जनसंख्या की आबादी, पांच साल से कम उम्र के बच्चों में ठिगनेपन की समस्या,पांच साल से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण की समस्या और 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्युदर कितनी है।

ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट के मुताबिक भारत की 16.3% आबादी कुपोषित है। वहीं 19.3% से ज्यादा बच्चे ऐसे है जिनका वजन उनकी हाइट के हिसाब से कम है वहीं 35.5% बच्चे अपनी उम्र के हिसाब से कम हाइट (ठिगनेपन के शिकार) है। वहीं बाल मृत्यु दर 4.6 फ़ीसदी से कम होकर 3.3 फ़ीसदी हो गई है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में बच्चों में ‘चाइल्ड वेस्टिंग रेट’ (ऊंचाई के हिसाब से कम वजन) 19.3 प्रतिशत है जो दुनिया के किसी भी देश से सबसे अधिक है। भारत की बड़ी आबादी के कारण यह इस क्षेत्र के औसत को बढ़ाता है।
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रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में सबसे अधिक भूख के स्तर वाले क्षेत्र दक्षिण एशिया में बच्चों में नाटापन की दर (चाइल्ड स्टंटिंग रेट) सबसे अधिक है। वहीं भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान (99),बांग्लादेश (84), नेपाल (81) और श्रीलंका (64) भारत के मुकाबले कहीं अच्छी स्थिति में हैं।

ग्लोबल हंगर इंडेक्स में रिपोर्ट में 29.1 अंकों के साथ भारत में भूख का स्तर 'गंभीर' बताया गया है। भारत 2021 में 116 देशों में 101वें नंबर पर था जबकि 2020 में वह 94वें पायदान पर था। गौरतलब है कि इंडेक्स की रिपोर्ट तैयार करने में वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तरों पर भूख पर नजर रखी जाती है और उसके आधार पर देशों की रैंकिग की जाती है। रैंकिंग में 0 को सबसे अच्छा और 100 को सबसे खराब संभव स्कोर हैं। नौ या नौ से कम स्कोर का मतलब उस देश में स्थिति बेहतर है। भूख की समस्या कम है। 10 से 19.9 तक के स्कोर वाले देशों में भूख की समस्या नियंत्रित स्थिति में मानी जाती है। 20.0 से 34.9 के बीच वाले स्कोर वाले देशों में भूख की समस्या गंभीर मानी जाती है और भारत की रैंकिग इसी श्रेणी में है। वहीं 35.0 से 49.9 के बीच स्कोर वाले देशों में भूख की समस्या खतरनाक तो 50 से ज्यादा बेहद खतरनाक मानी जाती है।

भारत ने रिपोर्ट के पैमाने पर उठाए सवाल?-ग्लोबल हंगर इंडेक्स में से चार में से तीन मानक बच्चों पर आधरित होने के कारण ही रिपोर्ट में भारत की स्थिति को खराब माना गया है। महिला और बाल विकास मंत्रालय ने रिपोर्ट को खारिज करते हुए कहा कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भूख को मापने का ग़लत तरीक़ा है। इंडेक्स को मापने के चार तरीकों में से तीन तरीके सिर्फ बच्चों के स्वास्थ्य से संबंधित हैं जोकि पूरी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते है। वहीं मंत्रालय ने कहा कि कुल आबादी में कुपोषितों की संख्या में जो डेटा लिया गया है, वह सिर्फ तीन हजार के जनमत सर्वेक्षण पर आधारित है जो आबादी के हिसाब से बहुत छोटा सैंपल है।
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सरकार ने ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट को भारत की छवि ख़राब किए जाने की एक लगातार कोशिश का हिस्सा बताया है। सरकार ने ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट को ग़लत सूचनाओं पर आधरित रिपोर्ट बताया हैं।

कुपोषण के मामले में भारत का 'सच से सामना'?-भारत दुनिया का सबसे बड़ा खाद्य उत्पादक देश है फिर भी भारत की बड़ी आबादी कुपोषण का शिकार है। यूएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत की 16.3% आबादी को भरपेट खाना नहीं मिल पाता है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट ने भारत में बच्चों के कुपोषण के मुद्दे और उनको दूर करने के सरकार के अफसल प्रयासों पर एक बार फिर सवाल उठा दिया है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट बताती है कि भारत जनसंख्या की खाद्य सुरक्षा और पोषण की ज़रूरतों को पूरा करने में सफल नहीं है।
 

ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट ऐसे समय आई है जब भारत में कुपोषण के खिलाफ सरकार बड़े पैमाने पर अभियान चलाकर 2022 तक भारत को कुपोषण से मुक्त करने का लक्ष्य रखा है। दरअसल भारत में नेशनल फैमली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट (NFHS-5) में भी भारत में बच्चों के कुपोषण के मामले पर चिंता जताई गई थी।
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रिपोर्ट बताती है कि भारत के 13 राज्यों में उम्र के हिसाब से बच्चों की लंबाई कम होने के मामलों की संख्या बढ़ी है। वहीं लंबाई के हिसाब से कम वजन के बच्चों की संख्या 12 राज्यों में बढ़ी है। भारत के पूर्वातर राज्य मेघालय में अविकसित बच्चों की संख्या सबसे अधिक (46.5%) है वहीं बिहार (42.9%) के साथ दूसरे स्थान पर है। वहीं महाराष्ट्र में 25.6% चाइल्ड वेस्टिंग यानि बच्चों के कम वजन के सबसे अधिक मामले है, इसके बाद गुजरात (25.1%) का स्थान है।
 

वहीं मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में कुपोषण एक गंभीर समस्या लगातार बनी हुई है। कुपोषण को राज्य सरकार की ओर से विधानसभा में दी गई जानकारी के मुताबिक अगर प्रदेश में शून्य से लेकर 5 वर्ष की उम्र के 65 लाख दो हजार से ज्यादा बच्चे हैं। इनमें से 10 लाख 32 हजार 166 बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। इनमें से छह लाख 30 हजार 90 बच्‍चे अति कुपोषित की श्रेणी में हैं। वहीं 2 लाख 64 हजाींर 609 ठिगनेपन और 13 लाख सात हजार 469 दुबलेपन के शिकार हैं। छह लाख 30 हजार 90 बच्चों का वजन उम्र के हिसाब से कम है।
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राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में हर पांच बच्चे में से एक बच्चा एनीमिक का शिकार है। आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में एनीमिक बच्चों की संख्या 72.7 फीसदी है। मई में जारी किये गए सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम-2022 के अनुसार शिशु मृत्यु दर में के मामले में भी मध्य प्रदेश में देश में पहले नंबर पर है। इसके अनुसार मध्यप्रदेश में जन्म लेने वाले हर एक हजार बच्चों में से 43 बच्चे आज भी जन्म के एक साल के अंदर ही दम तोड़ देते हैं। यह राष्ट्रीय औसत 28 से ज्यादा है। मध्यप्रदेश में 2016 से 2018 के बीच करीब 57 हजार बच्चों की कुपोषण से मौत हुई थी।

जमीन पर सरकार क्यों नहीं सफल?-बच्चों के कुपोषण दूर करने में सरकार के प्रयास असफल होने का बड़ा काऱण योजना का जमीनी स्तर पर लागू होने में भष्टाचार होना है। मध्यप्रदेश जैसे राज्य जो बच्चों के कुपोषण के मामले में सबसे अधिक है वहां पिछले दिनों पोषण आहार वितरण में कैग की रिपोर्ट के बाद योजना में बड़े पैमाने पर घोटाला सामने आया।

सरकार कुपोषण दूर करने का दावा करती है लेकिन कुपोषण को लेकर हालात कितनी खराब है इसको सतना जिले के मझगवां की सोमवती के मामले से समझा जा सकता है। सतना के मझगवां ब्लॉक के ग्राम सुहागी के आदिवासी बस्ती सुरंगी टोला में रहने वाली सात साल की बच्ची सोमवती इस कदर कुपोषण का शिकार है कि वो ठीक से चल तक नही पा रही हैं। आदिवासी परिवार से आने वाली सोमवती इस कदर कुपोषण का शिकार है कि वह ठीक से खड़ी भी नहीं हो सकती है। इस पूरे मामले में खुद मुख्यमंत्री के दफ्तर को दखल देना पड़ा था।

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