नई दिल्ली। मेट्रोमैन के नाम से मशहूर ई. श्रीधरन को केरल में सीएम उम्मीदवार घोषित करने के कुछ ही समय बाद वरिष्ठ भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री मुरलीधरन ने यू टर्न ले लिया। कुछ ही देर बाद पार्टी के केरल प्रमुख सुरेंद्रन ने भी इसका खंडन कर दिया। अब राजनीतिक हल्कों में सवाल उठ रहे हैं कि भाजपा अपने इस महत्वपूर्ण फैसले से पीछे क्यों हट गई? भाजपा द्वारा लिए गए इस फैसले का विधानसभा चुनावों पर क्या असर होगा?
वरिष्ठ भाजपा नेता मुरलीधरन ने ही कहा था कि केरल में भाजपा ई श्रीधरन को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश करके केरल चुनाव लड़ेगी। हम केरल के लोगों को भ्रष्टाचार मुक्त और विकासोन्मुखी शासन प्रदान करने के लिए माकपा और कांग्रेस को हराएंगे।
बहरहाल मामले पर नजर डाले तो ऐसा प्रतीत होता है कि घोषणा से पहले भाजपा की राज्य ईकाई ने इस मामले में केंद्रीय नेतृत्व को विश्वास में नहीं लिया था। यह फैसला ना तो केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में लिया गया और ना ही पीएम मोदी, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृहमंत्री अमित शाह आदि दिग्गजों को विश्वास में लिया गया। कहा जा रहा है यह चूक ही पार्टी की राज्य ईकाई को भारी पड़ गई और उसे मामले में यू टर्न लेना पड़ा।
दूसरी ओर भाजपा का 75+ वाला फार्मूला भी श्रीधरन को सीएम उम्मीदवार बनाने की राह में रोड़ा बन रहा था। श्रीधरन के नाम की घोषणा के साथ ही पार्टी के भीतर से ही इस निर्णय पर सवाल उठने लगे। चुनावी दौर में विपक्ष ने भी इस अवसर को लपक लिया। लोग यह भी जानना चाहते थे कि लालकृष्ण आडवाणी, मुरलीमनोहर जोशी, यशवंत सिन्हा समेत कई दिग्गज नेताओं को उनकी बढ़ती उम्र के कारण नेपथ्य में क्यों धकेला गया?
राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो श्रीधरन को राजनीति में आए अभी कुछ वक्त हुआ है। वे एक अच्छे प्रशासक रहे हैं लेकिन राजनीति के मैदान में उन्हें ज्यादा अनुभव नहीं है। तमाम चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में पार्टी को 2 से ज्यादा सीटें मिलती दिखाई नहीं दे रही है। ऐसे में सीएम उम्मीदवार के रूप में एकदम नए चेहरे की घोषणा करना कहां तक समझदारी है। कई लोगों का तो यह भी मानना है कि श्रीधरन इतना बड़ा नाम नहीं है कि अपने दम पर पार्टी को राज्य में चुनाव जीतवा सके।
बहरहाल राज्य में श्रीधरन की छवि अच्छी है। उनके नाम का ऐलान कर वापस रोलबैक करने केरल में भाजपा को काफी नुकसान कर सकता है। चुनाव ज्यादा दूर नहीं है। दक्षिण भारत के लोगों को तुलनात्मक रूप से ज्यादा भावुक माना जाता है। केरल में जन्में श्रीधरन के साथ हुए इस व्यवहार को वहां की जनता किस प्रकार देखती है, इस पर भी काफी हद तक भाजपा का प्रदर्शन निर्भर करेगा।
भाजपा इस बार केरल चुनावों में पहले से कई गुना ज्यादा जोर लगा रही है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि राज्य में पार्टी की चुनावी रणनीति क्या होगी? इस नुकसान की भरपाई पार्टी किस तरह करेगी?
उल्लेखनीय है कि मेट्रो मैन के नाम से मशहूर ई. श्रीधरन कुछ दिन पहले ही भाजपा में शामिल हुए थे। श्रीधरन 1995 से लेकर 2012 तक दिल्ली मेट्रो के मैनेजिंग डायरेक्टर रह चुके हैं और दिल्ली मेट्रो की सफलता का श्रेय उन्हीं को जाता है। सार्वजनिक परिवहन में उनके योगदान के लिए 2008 में उन्हें भारत सरकार ने पद्म विभूषण और 2001 में पद्मश्री से सम्मानित किया था।