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डब्‍लूएचओ ने भारत के नक्‍शे से जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को ही हटा दिया, सरकार ने लगा दी फटकार

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, गुरुवार, 14 जनवरी 2021 (16:50 IST)
कोरोना वायरस की त्रासदी के दौर में डब्‍लूएचओ अक्‍सर विवादों में रहा है। इस बार भारत के नक्‍शे को लेकर डब्‍लूएचओ एक बार फि‍र से घि‍र गया है। भारत सरकार ने डब्‍लूएचओ को इसे लेकर फटकार लगाई है। इतना ही नहीं, इससे डब्‍लूएचओ की चीन की करीबी भी उजागर हो रही है।

दरअसल, डब्‍लूएचओ ने अपनी वेबसाइट पर भारत के नक्‍शे को गलत बताया है। इस मामले में सूत्रों के मुताबिक नई दिल्ली ने डब्ल्यूएचओ के डायरेक्टर-जनरल टेड्रोस अधनोम घेब्रेसस से दो टूक कहा है कि वे वेबसाइट पर लगे भारत के नक्‍शे को नए नक्‍शे से तुरंत बदलें।

भारत ने इसे लेकर डब्ल्यूएचओ को एक महीने में तीसरी बार पत्र भेजा है। इससे पहले, 3 और 30 दिसंबर को डब्ल्यूएचओ के डायरेक्टर-जनरल के ऑफिस को पत्र भेजा जा चुका है। इस पत्र में कहा गया था कि कोरोना वायरस डैशबोर्ड समेत वीडियोज और नक्‍शों में भारत की वास्तविक सीमाओं को नहीं दर्शाते हैं।

पिछले सप्ताह, संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि इंद्र मणी पांडे ने टेड्रोस के सामने यह आपत्ति दर्ज करवाई है। इसमें वे लिखते हैं,

'मैं डब्ल्यूएचओ के विभिन्न वेब पोर्टलों के नक्शे में भारत की सीमाओं को गलत दिखाने पर अपनी गहरी नाराजगी व्यक्त करने के लिए यह पत्र लिख रहा हूं। इस संबंध में, मैं डब्ल्यूएचओ को भेजे गए हमारे पिछले मैसेजों पर आपका ध्यान आकर्षित करता हूं जो इसी तरह की गतलियों की ओर इशारा करते हैं। मैं एक बार फिर से डब्ल्यूएचओ के विभिन्न वेब पोर्टलों से भारत की सीमाओं को गलत तरीके से दिखाने वाले नक्शे को तुरंत हटाने के लिए आपके तत्काल हस्तक्षेप का अनुरोध करता हूं'

डब्‍लूएचओ ने भारत के इस नक्‍शे में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को देश से अलग दिखाया था।

5,168 स्क्वायर किलोमीटर में फैली शक्सगाम वैली, जिसे 1963 में अवैध रूप से पाकिस्तान द्वारा चीन को सौंप दिया गया था, उसे चीन का हिस्सा दिखा गया। वहीं, साल 1954 से चीन के कब्जे वाले अक्साई चिन क्षेत्र को हल्के नीले रंग की पट्टियों में दिखाया गया है। यह रंग उसी तरह का है, जिसका इस्तेमाल चीनी क्षेत्र को बताने के लिए किया जाता है।

दरअसल, भारत के गलत नक्शों को प्रकाशित करना भारतीय कानून के तहत अपराध है, जिसमें छह महीने की जेल की सजा और जुर्माना लगाया जा सकता है। साल 2016 में, सरकार ने इस सजा को सात साल तक की बढ़ाने और जजों को 100 करोड़ रुपये जुर्माना लगाने का प्रस्ताव दिया था।

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