राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में आज सर्वोच्च न्यायालय ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इस बीच न्यायालय ने निर्मोही अखाड़े के दावे को भी खारिज कर दिया और केवल 2 पक्षों रामलला विराजमान और सुन्नी वक्फ बोर्ड की दलीलों पर ही अपना फैसला सुनाया। जानिए, आखिर क्या था अयोध्या को लेकर निर्मोही अखाड़े का दावा...
राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद के दशकों पुराने मामले में आज उच्चतम न्यायालय ने अपना फैसला सुना दिया। इस मामले में न्यायालय ने निर्मोही अखाड़े के उस दावे को भी खारिज कर दिया, जिसमें मांग करते हुए कहा गया था कि अयोध्या में विवादित भूमि उसे दी जाए, क्योंकि वह ही रामलला का एकमात्र उपासक है, हालांकि इससे जुड़े दस्तावेज मांगने पर अखाड़ा ने कहा था कि 1982 में एक डकैती पड़ी थी, जिसमें रिकॉर्ड खो गए।
न्यायालय ने सुनवाई के दौरान निर्मोही अखाड़े से कहा था कि शबैत (उपासक) का दावा कभी देवता के प्रतिकूल नहीं हो सकता। हालांकि निर्मोही अखाड़ा की ओर से अधिवक्ता सुशील जैन ने कोर्ट की टिप्पणी पर कहा था कि अखाड़ा 'शबैत' के नाते संपत्ति का कब्जेदार रहा है, इसलिए उसके अधिकार समाप्त नहीं हो जाते।
मुख्य जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 जजों की पीठ ने अखाड़ा के वकील की बात पर आपत्ति उठाते हुए कहा था, आप जब अपने खुद के देवता के मुकदमे को खारिज करने की मांग करते हैं तो आप उनके खिलाफ अधिकार मांग रहे हैं। आखिर न्यायालय ने दलीलों को नहीं माना और आज अपने फैसले में अखाड़े का दावा यह कहते हुए खारिज कर दिया कि निर्मोही अखाड़ा रामलला की मूर्ति का उपासक या अनुयायी नहीं है।
हारकर भी खुश है निर्मोही अखाड़ा : सर्वोच्च न्यायालय ने भले ही अयोध्या मामले में अपने फैसले में विवादित जमीन पर निर्मोही अखाड़े के दावे को खारिज कर दिया हो, लेकिन इसके बाद भी अखाड़ा इस फैसले पर खुश है। निर्मोही अखाड़े ने कहा है कि अयोध्या में विवादित जमीन पर मालिकाना हक का अपना दावा खारिज होने का उसे कोई अफसोस नहीं है।
अखाड़े के वरिष्ठ पंच महंत धर्मदास ने कहा कि विवादित स्थल पर अखाड़े का दावा खारिज होने का कोई अफसोस नहीं है, क्योंकि वह भी रामलला का ही पक्ष ले रहा था। उन्होंने कहा कि न्यायालय ने रामलला के पक्ष को मजबूत माना है। इससे निर्मोही अखाड़े का मकसद पूरा हुआ है।