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कोरोमंडल एक्सप्रेस : Kavach होता तो ओडिशा के बालासोर में बच सकती थीं 275 जिंदगियां? आखिर जानिए क्या होती है यह प्रणाली, कैसे करती है काम

हमें फॉलो करें कोरोमंडल एक्सप्रेस : Kavach होता तो ओडिशा के बालासोर में बच सकती थीं 275 जिंदगियां? आखिर जानिए क्या होती है यह प्रणाली, कैसे करती है काम
, रविवार, 4 जून 2023 (17:58 IST)
What is Kavach in Indian Railways : ओडिशा (Odisha) के बालासोर (Balasore) में हुई ट्रेन दुर्घटना (Odisha Train Accident) में करीब 275 यात्रियों की मौत और 1000 से ज्यादा यात्रियों के घायल होने के बाद रेलवे की स्वचालित ट्रेन सुरक्षा प्रणाली कवच (Kavach) चर्चा में आ गई है। अब तक सिर्फ 65 इंजनों में 'कवच' को लगाया जा सका है। 'कवच एक ऑटोमेटिक रेल प्रोटेक्शन की टेक्नोलॉजी है। रेलवे ने कहा है कि शुक्रवार शाम जिस मार्ग पर दुर्घटना हुई वहां 'कवच' प्रणाली उपलब्ध नहीं थी। 
 
कैसे काम करती है टेक्नोलॉजी : जब लोको पायलट फाटक पार करता है तो यह प्रणाली उसे सतर्क करती है। आमतौर पर देखा गया है कि सिगनल पार करते समय ट्रेनों की भिड़ंत होती है। कवच प्रणाली उसी लाइन पर दूसरी ट्रेन के आने की स्थिति में निर्धारित दूरी के भीतर ही स्वचालित रूप से ट्रेन को रोक सकती है।
कवच क्या है? : भारतीय रेलवे ने चलती ट्रेनों की सुरक्षा बढ़ाने के लिए 'कवच' नामक अपनी स्वचालित ट्रेन सुरक्षा प्रणाली विकसित की है। कवच को तीन भारतीय विक्रेताओं के सहयोग से अनुसंधान डिजाइन एवं मानक संगठन (आरडीएसओ) ने स्वदेशी रूप से विकसित किया है।
कवच न केवल लोको पायलट को खतरे और तेज रफ्तार होने पर सिगनल से गुजरने से बचने में मदद करता है बल्कि घने कोहरे जैसे खराब मौसम के दौरान ट्रेन चलाने में भी मदद करता है। इस प्रकार, कवच ट्रेन संचालन की सुरक्षा और दक्षता को बढ़ाता है।
 
कवच की खूबियां : अगर लोको पायलट ब्रेक लगाने में विफल रहता है तो कवच प्रणाली के तहत स्वचालित रूप से ब्रेक लग जाते हैं, जिससे गति नियंत्रित हो जाती है।
 
- इस प्रणाली के तहत पटरी के पास लगे सिग्नल की रोशनी कैबिन में पहुंचती है और यह रोशनी धुंध के मौसम में बहुत उपयोगी होती है। 
 
- इस प्रणाली से ट्रेन की आवाजाही की निगराने वाले को ट्रेन के बारे में लगातार जानकारी मिलती रहती है।
 
- सिग्नल पर अपने आप सीटी बजती है। लोको से लोको के बीच सीधे संचार के जरिए ट्रेनों के टक्कर की आशंका कम हो जाती है।
 
- यदि कोई दुर्घटना हो जाती है, तो एसओएस के माध्यम से आसपास चल रही ट्रेनों को कंट्रोल किया जाता है।
कब हुआ था पहला परीक्षण : कवच का परीक्षण दक्षिण मध्य रेलवे के लिंगमपल्ली-विकाराबाद-वाडी और विकाराबाद-बीदर सेक्शन पर किया गया था।
इसमें 250 किलोमीटर की दूरी तय की गई थी। कवच प्रणाली तैयार करने में कुल 16.88 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं।

क्या बोले रेल मंत्री : रेलगाड़ियों को टकराने से बचाने वाली ‘कवच’ प्रणाली को लेकर छिड़ी बहस के बीच कांग्रेस ने रेल मंत्री से इस्तीफे की मांग की और सवाल किया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार इस बहुप्रचारित प्रणाली को देशभर में कब लागू करेगी।
 
वैष्णव ने कहा कि रेल हादसे का ‘कवच’ प्रणाली से कोई लेना-देना नहीं है। रेलवे अपने नेटवर्क में ‘कवच’ प्रणाली उपलब्ध कराने की प्रक्रिया में है ताकि रेलगाड़ियों के आपस में टकराने से होने वाले हादसों को रोका जा सके।
Edited By : Sudhir Sharma

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