क्या है कावेरी जल विवाद और क्या है इसका इतिहास?

वृजेन्द्रसिंह झाला
  • करीब 140 वर्ष पुराना है कावेरी जल विवाद
  • 1924 में कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच हुआ था समझौता
  • विवाद सुलझाने के लिए भारत सरकार ने 1972 में कमेटी बनाई 
  • केंद्र सरकार ने 2 जून 1990 को न्यायाधिकरण का गठन किया
What is Cauvery Water Dispute: कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी जल विवाद एक बार फिर गहरा गया है। यह विवाद करीब 140 वर्ष पुराना है। कावेरी अंतरराज्‍जीय बेसिन है, जिसका उदगम कर्नाटक है और यह बंगाल की खाड़ी में गिरने से पूर्व तमिलनाडु और पुडुचेरी से होकर गुजरता है। दरअसल, कावेरी जल नियमन समिति (CWRC) ने 12 सितंबर, 2023 को दिए अपने आदेश में कर्नाटक सरकार को अगले 15 दिन तक तमिलनाडु 5000 क्यूसेक पानी रोज देने का निर्देश दिया था। ताजा विवाद का कारण यही आदेश है। 
 
कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (CWMA) ने इस आदेश को बरकरार रखा था। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश में दखल देने से इंकार कर दिया था। नियमन समिति ने कहा था कि 13 सितंबर से 15 दिन तक कर्नाटक को तमिलनाडु को प्रतिदिन 5000 क्यूसेक पानी उपलब्ध कराया जाना चाहिए। वहीं, कर्नाटक ने तमिलनाडु को पानी नहीं छोड़ने के लिए तर्क दिया था कि वह पेयजल और कावेरी बेसिन क्षेत्रों में फसलों के लिए सिंचाई की अपनी जरूरत को ध्यान में रखते हुए पानी छोड़ने की स्थिति में नहीं है। क्योंकि मानसून में कम बारिश के कारण पानी की कमी हो गई है। 
 
राजनीतिक दल भी प्रदर्शनकारियों के साथ : इस साल, कर्नाटक को जून से सितंबर तक कुल 123.14 टीएमसी मुहैया कराना था, लेकिन अगस्त में तमिलनाडु ने 15 दिनों के लिए 15 हजार क्यूसेक पानी मांगा था। 11 अगस्त को सीडब्ल्यूएमए द्वारा पानी की मात्रा घटाकर 10 हजार क्यूसेक कर दी गई। तमिलनाडु सरकार ने आरोप लगाया कि कर्नाटक ने 10 हजार क्यूसेक पानी भी नहीं छोड़ा गया। इस बीच, कर्नाटक में किसानों ने तमिलनाडु के लिए पानी छोड़ने को लेकर कर्नाटक में जगह-जगह प्रदर्शन शुरू कर दिए।
 
कर्नाटक के ज्यादातर राजनीतिक दलों ने किसानों के विरोध प्रदर्शन का समर्थन किया है। वहीं, उपमुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार ने कहा कि हम विरोध प्रदर्शन को नियंत्रित करने की कोशिश नहीं करेंगे, लेकिन लोगों को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। अर्थात परोक्ष रूप से विरोध प्रदर्शन का उन्होंने भी समर्थन किया है। 
 
आमतौर पर बारिश कम होने की स्थिति में ही कावेरी नदी जल बंटवारे को लेकर लोगों का गुस्सा सामने आता है। अच्छे मानसून में कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कोई तनाव नजर नहीं आता। 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि कर्नाटक को जून और मई के बीच ‘सामान्य’ जल वर्ष में तमिलनाडु को 177.25 टीएमसी आवंटित करना होगा। आ‍इए जानते हैं आखिर क्या है कावेरी जल विवाद और कितना पुराना है यह... 
 
क्या है कावेरी विवाद का इतिहास : दरअसल, कर्नाटक और तमिलनाडु इस कावेरी नदी घाटी में पड़ने वाले प्रमुख राज्य हैं। समुद्र में मिलने से पहले ये नदी कराइकाल से होकर गुजरती है, जो पुडुचेरी का हिस्सा है। इसलिए इस नदी के जल के बंटवारे को लेकर इन राज्यों में विवाद का एक लंबा इतिहास रहा है। 
 
कहां से हुई विवाद की शुरुआत : ‍ब्रिटिश काल में यह विवाद 1881 में शुरू हुआ था, जब मैसूर राज्य (अब कर्नाटक) ने कावेरी नदी पर बांध बनाने की मांग उठाई थी। उस समय ‍मद्रास प्रेसीडेंसी (अब तमिलनाडु) ने इसका विरोध किया था। 1924 में इन दोनों के बीच एक समझौता हुआ था। तब तमिलनाडु को 556 टीएमसी और कर्नाटक के लिए 177 टीएमसी पानी पर अधिकार का समझौता हुआ था। बावजूद इसके यह विवाद और बढ़ता ही गया। 
 
इस मामले में कर्नाटक मानता है कि अंग्रेजों के शासन के दौरान वह एक रियासत था जबकि तमिलनाडु सीधे ब्रिटिश राज के अधीन था इसलिए 1924 में कावेरी जल विवाद पर हुए समझौते में उसके साथ न्याय नहीं हुआ। दूसरी ओर तमिलनाडु का मानना है कि 1924 के समझौते के तहत तय किया गया कावेरी जल का जो हिस्सा उसे मिलता था, वह अब भी जारी रखा जाना चाहिए और इस मामले में हुए सभी पुराने समझौतों का स्वागत किया जाना चाहिए।
 
भारत सरकार द्वारा इस मामले को सुलझाने के लिए 1972 में बनाई गई एक कमेटी की रिपोर्ट और विशेषज्ञों की सिफारिशों के बाद अगस्त 1976 में कावेरी जल विवाद के सभी दावेदारों के बीच एक समझौता हुआ था। इस समझौते की घोषणा संसद में भी की गई, लेकिन इस समझौते का पालन नहीं हुआ। अब यह मामला दो राज्यों- कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच बड़े विवाद का कारण बन गया है।
 
जुलाई 1986 में तमिलनाडु ने अंतरराज्यीय जल विवाद अधिनियम (1956) के तहत इस मामले को सुलझाने के लिए आधिकारिक तौर पर केंद्र सरकार से एक न्यायाधिकरण गठन किए जाने का अनुरोध किया था। हालांकि केंद्र सरकार इस विवाद का हल बातचीत के जरिए चाहती थी, लेकिन तमिलनाडु के कुछ किसानों की याचिका की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस मामले में न्यायाधिकरण गठित करने का निर्देश दिया था। 
 
1990 में हुआ था न्यायाधिकरण का गठन : केंद्र सरकार ने 2 जून 1990 को न्यायाधिकरण का गठन किया, लेकिन इसका हल अब तक नहीं निकल सका है। 1991 में न्यायाधिकरण ने एक अंतरिम आदेश पारित किया जिसमें कहा गया था कि कर्नाटक कावेरी जल का एक तय हिस्सा तमिलनाडु को देगा। हर महीने कितना पानी छोड़ा जाएगा, यह भी तय किया गया लेकिन इस पर कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ। इस बीच तमिलनाडु इस अंतरिम आदेश को लागू करने के लिए जोर देने लगा। इस आदेश को लागू करने के लिए एक याचिका भी उसने उच्चतम न्यायालय में दाखिल की पर तबसे मामला और पेचीदा ही होता गया। 
1991 में ट्रिब्यूनल ने एक अंतरिम अवॉर्ड पारित किया। इसके तहत तमिलनाडु को 205 टीएमसी फुट पानी दिया गया। 2007 में अंतिम निर्णय सुनाया जिसमें तमिलनाडु को फाइनल अवॉर्ड में 419 टीएमसी फुट पानी देने का फैसला किया गया, लेकिन कर्नाटक ने इस पर लगातार आपत्ति की है।
 
पानी को लेकर चोल शासकों की दूरदर्शिता : चोल शासकों ने जो 10वीं शताब्दी में तमिलनाडु पर राज करते थे, उन्होंने यह दूरदर्शिता दिखाई कि अपने राज्य में जलाशय और चेकडैम बनवाए ताकि नदी के पानी को सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जा सके। दूसरी ओर कर्नाटक में पहला बड़ा जलाशय केआर सागर 1934 में बना, जब मैसूर के शासकों ने उसे बनवाया। ऐसे में तमिलनाडु के किसानों को शुरुआती फायदा मिला। 1894 और 1924 के समझौतों पर जब हस्ताक्षर हुए तो तमिलनाडु के 15 से 20 लाख एकड़ इलाके से भी अधिक इलाके में सिंचाई होती थी।
 

सम्बंधित जानकारी

Show comments

जरूर पढ़ें

3 दिन जो चला वह युद्‍ध से कम नहीं, Operation Sindoor की पूरी कहानी, भारतीय सेना ने कैसे तबाह किए आतंक के अड्डे

Operation Sindoor : 100 आतंकी मारे, 9 कैंप किए तबाह, ऑपरेशन सिंदूर पर भारतीय सेना ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में किए बड़े खुलासे

Operation Sindoor : भारत ने लिया पुलवामा का बदला, ऑपरेशन सिंदूर में इन आतंकियों को किया ढेर

राहुल गांधी ने PM मोदी को लिखी चिट्ठी, Operation Sindoor को लेकर संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग

PM मोदी के निर्देश- वहां से गोली चलेगी तो यहां से गोला चलेगा, निर्णायक मोड़ पर थे हवाई हमले, ऑपरेशन सिंदूर भारत ने हासिल किए तीन लक्ष्य

सभी देखें

नवीनतम

किन शर्तों पर हुआ सीजफायर, क्या अमेरिका की मध्यस्थता स्वीकारी, सचिन पायलट ने PM मोदी से पूछे सवाल

3 दिन जो चला वह युद्‍ध से कम नहीं, Operation Sindoor की पूरी कहानी, भारतीय सेना ने कैसे तबाह किए आतंक के अड्डे

Operation Sindoor : 100 आतंकी मारे, 9 कैंप किए तबाह, ऑपरेशन सिंदूर पर भारतीय सेना ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में किए बड़े खुलासे

संजय राउत ने सीजफायर पर उठाए सवाल, बोले- इस मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुलाई जाए

India-Pakistan tension : डर और सोशल मीडिया पर सूचनाओं की बाढ़ से मानसिक स्वास्थ्य हो रहा प्रभावित

अगला लेख