निर्भया मामले के दोषियों को फांसी देने की तारीख का फिलहाल ऐलान नहीं हुआ है, लेकिन उससे पहले Black warrant या डेथ वारंट शब्द काफी चर्चा में है। किसी भी अपराधी को जिसे अदालत ने मृत्युदंड दिया है, उसके फांसी से पहले अदालत डेथ वारंट जारी करती है। दरअसल, दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) का फॉर्म नंबर 42 दोषी को फांसी की सजा का अनिवार्य आदेश है।
दोषी को 'तब तक फांसी के फंदे पर लटकाकर रखा जाए, जब तक कि उसकी मौत न हो जाए'। यह वाक्य क्रिमिनल प्रोसीजर के फॉर्म नंबर 42 पर छपे तीन वाक्यों के दूसरे भाग का हिस्सा है, जिसे ब्लैक वारंट के नाम से जाना जाता है। फॉर्म 42 को 'वारंट ऑफ एक्जीक्यूशन ऑफ ए सेंटेंस ऑफ डेथ' कहा जाता है।
ब्लैक वारंट या डेथ वारंट जेल प्रभारी को संबोधित करते हुए भेजा जाता है, जहां मृत्युदंड की सजा पाए दोषी को कैद करके रखा जाता है। इस वारंट में दोषी के नाम के साथ ही मौत की सजा की पुष्टि भी होती है।
इतना ही नहीं, इस वारंट में दोषी को फांसी देने के समय और स्थान का भी जिक्र होता है। साथ ही ब्लैक वारंट में उस जज के हस्ताक्षर भी होते हैं, जिसने दोषी को मौत की सजा सुनाई होती है।
उल्लेखनीय है कि निर्भया कांड में पवन, विनय, अक्षय और मुकेश को अदालत ने मृत्युदंड का हुक्म दिया है। हालांकि फिलहाल उनके डेथ वारंट पर सुनवाई टल गई है, लेकिन अगली सुनवाई में अदालत तिहाड़ जेल को डेथ वारंट भेज सकती हैं, जहां ये सभी कैद हैं।