कश्मीर में चिनार के संरक्षण के लिए अनूठी पहल, QR कोड से मिलेगी पेड़ से जुड़ी पूरी जानकारी, आधार कार्ड भी जारी

सुरेश एस डुग्गर
बुधवार, 22 जनवरी 2025 (15:03 IST)
Unique initiative for conservation of Chinar in Jammu Kashmir: अपने प्रतिष्ठित चिनार के पेड़ों के संरक्षण की दिशा में एक कदम के रूप में जम्मू कश्मीर ने एक अनूठी पहल शुरू की है जो पारंपरिक संरक्षण प्रयासों के साथ आधुनिक तकनीक को जोड़ती है। जम्मू कश्मीर वन अनुसंधान संस्थान और जम्मू कश्मीर वन विभाग ने पिछले चार वर्षों में पूरे केंद्र शासित प्रदेश में 28,000 से अधिक चिनार के पेड़ों को सफलतापूर्वक जियोटैग किया है, जिससे एक डेटाबेस तैयार हुआ है, जो इन सांस्कृतिक और पारिस्थितिक खजाने के संरक्षण को सुनिश्चित करता है। इसी के आधार पर इन चिनार के पेड़ों को आधार कार्ड भी जारी किए गए हैं।
 
पेड़ से जुड़ी हर जानकारी : प्राप्त विवरणों के अनुसार, यह पहल, जो 2021 में शुरू हुई और 2025 तक जारी रहने की उम्मीद है, इसमें चिनार की निगरानी और संरक्षण के लिए जीआईएस और क्‍यूआर कोड का उपयोग शामिल है। प्रत्येक पेड़ को ऊंचाई, परिधि, स्वास्थ्य, छतरी के आकार और इसकी भौगोलिक स्थिति जैसी महत्वपूर्ण जानकारी के साथ जियोटैग किया गया है। यह डेटा चिनार ट्री रिकॉर्ड फॉर्म का उपयोग करके संकलित किया जा रहा है, जिसे दस्तावेज़ीकरण प्रक्रिया को मानकीकृत करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। ALSO READ: जम्मू कश्मीर में सूखे ने तोड़ा 50 साल का रिकॉर्ड, पिछले 12 माह में 29 फीसदी कम हुई बारिश
 
जेकेएफआरआई में परियोजना समन्वयक डॉ. सैयद तारिक ने बताया कि संस्थान और वन विभाग के प्रयासों से कई महत्वपूर्ण खोज हुई हैं। उन्होंने बताया कि गंदरबल में एक चिनार को एशिया में सबसे बड़ा माना गया है, जिसकी परिधि 22.25 मीटर है और यह 27 मीटर ऊंचा है। जबकि बारामुला में एक और चिनार ने दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा स्थान प्राप्त किया है। वे बताते हैं कि वन विभाग द्वारा दो बड़े चिनार का प्रत्यारोपण पूरा कर लिया गया है। ALSO READ: जब कश्मीर में पड़ती है हाड़ गलाने वाली ठंड, तब काम आती हैं ये 'खास' सब्जियां
 
अकबर ने लगाए थे 1200 से ज्यादा चिनार : डॉ. तारिक के अनुसार, चिनार कश्मीर के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परिदृश्य का एक अभिन्न अंग हैं, जिनमें से कई पेड़ मुगल काल के हैं। वे कहते थे कि ऐसा माना जाता है कि सम्राट अकबर ने नसीम बाग में 1200 से अधिक चिनार लगाए थे, जिनमें से कई आज भी खड़े हैं। जानकारी के लिए बिजबिहाड़ा शहर, जिसे 'चिनारों का शहर' के रूप में जाना जाता है, बिजबिहाड़ा के पादशाही बाग में सबसे पुराने चिनार में से एक का घर है। जियोटैगिंग के अलावा, संरक्षण प्रयासों में स्कूलों, सरकारी संस्थानों और सुरक्षा बलों को पौधे वितरित करना भी शामिल है। ALSO READ: Weather Update : कश्मीर में मौसम की पहली बर्फबारी से वादियां हुईं गुलजार, उत्तर भारत में चमकी ठंड, दक्षिण में बारिश
 
वन विभाग के एक अन्‍य अधिकारी ने बताया कि उच्च गुणवत्ता वाले पौधों के निरंतर उत्पादन के लिए एक वनस्पति गुणन उद्यान (वीएमजी) स्थापित किया गया है और डल झील में प्रतिष्ठित चार चिनार सहित परिपक्व चिनार का प्रत्यारोपण चल रहा है। वे कहते थे कि जियोटैग किए गए चिनार पर क्यूआर कोड के एकीकरण से जनता के लिए इन पेड़ों के स्वास्थ्य और स्थिति पर वास्तविक समय के डेटा तक पहुंचना आसान हो गया है।
 
अधिकारियों का कहना था कि पेड़ को बिना किसी बाधा के बढ़ने देने के लिए डिज़ाइन की गई विशेष प्लेटों पर लगे क्यूआर कोड को नागरिक स्कैन करके प्रत्येक पेड़ की स्थिति के बारे में अधिक जान सकते हैं। इसके अलावा, डॉ. तारिक ने परियोजना के एक अन्‍य आवश्यक पहलू के रूप में जन जागरूकता पर प्रकाश डाला। उन्‍होंने बताया कि वन विभाग शैक्षिक कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से शामिल हो रहा है, वृत्तचित्र जारी कर रहा है, और संरक्षण प्रयासों में सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए 'चिनार दिवस' ​​(15 मार्च) और 'चिनार फॉल फेस्टिवल' (15 अक्टूबर) जैसी पहल मना रहा है।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala 
 

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