नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सुदर्शन टीवी के कार्यक्रम 'बिंदास बोल' की 2 कड़ियों के प्रसारण पर मंगलवार को रोक लगा दी। इन कड़ियों का प्रसारण आज और कल होना था। न्यायालय ने कहा कि पहली नजर में ये मुस्लिम समुदाय को बदनाम करने वाले प्रतीत होते हैं।
शीर्ष अदालत ने इस कार्यक्रम की 2 कड़ियों के प्रसारण पर रोक लगाते हुए कहा, इस समय, पहली नजर में ऐसा लगता है कि यह कार्यक्रम मुस्लिम समुदाय को बदनाम करने वाला है। यह कार्यक्रम प्रशासनिक सेवाओं (UPSC) में मुस्लिम समुदाय के सदस्यों की कथित घुसपैठ के बारे में है।
न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की तीन सदस्यीय पीठ ने इस कार्यक्रम के प्रसारण को लेकर व्यक्त की गई शिकायतों पर सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया और मामले को 17 सितंबर के लिए सूचीबद्ध कर दिया।
पीठ ने याचिका पर सुनवाई के दौरान सुझाव दिया कि इलेक्ट्रानिक मीडिया के स्व नियमन में मदद के लिए एक समिति गठित की जा सकती है। पीठ ने कहा, हमारी राय है कि हम पांच प्रबुद्ध नागरिकों की एक समिति गठित कर सकते हैं जो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए कतिपय मानक तैयार करेगी। हम राजनीतिक विभाजनकारी प्रकृति नहीं चाहते और हमें ऐसे सदस्य चाहिए, जिनकी प्रतिष्ठा हो।
याचिकाकर्ता के वकील ने इस कार्यक्रम के प्रसारण पर अंतरिम रोक लगाने सहित कई राहत मांगी थी। इस कार्यक्रम के प्रोमो में दावा किया गया था कि चैनल सरकारी नौकरियों में मुस्लिम समुदाय की घुसपैठ की साजिश का पर्दाफाश करेगा।
पीठ ने इस मामले में आगे सुनवाई की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि कल्याणकारी सिद्धांतों की रक्षा करना न्यायालय का कर्तव्य है। पीठ ने केबल टीवी नियमों का हवाला दिया और कहा कि मानहानिकारक, मिथ्या और अर्द्धसत्य दिखाना और व्यंग्यात्मक चीजें नहीं दिखाई जानी चाहिए। पीठ ने कहा कि याचिका लंबित रहने के दौरान चैनल को इस विषय पर किसी दूसरे नाम से भी कार्यक्रम प्रसारित करने से रोका जा रहा है।
सुदर्शन टीवी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने दलील दी कि चैनल इसे राष्ट्रीय सुरक्षा में खोज परक खबर मानता है और इसकी 10 कड़ियां हैं। दीवान ने कहा, अगर चैनल इस कार्यक्रम में कुछ गलत करेगा तो इसके नतीजों के लिए पूरी व्यवस्था है लेकिन मैं महसूस करता हूं कि इसमें प्रसारण नियमों से भटकाव नहीं है।
इस मामले में शीर्ष अदालत के पहले के आदेश का जिक्र करते हुए दीवान ने दलील दी कि यह सही कहा गया था कि कार्यक्रम पर प्रसारण से पूर्व कोई प्रतिबंध नहीं हो सकता है। पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा, हम परसों बैठेंगे और इस दौरान आप आज की कड़ी का प्रसारण मत कीजिए।
दीवान ने इसका विरोध किया ओर कहा, यह विदेशी फंडिंग का मामला है और मैं यह कहना चाहूंगा कि अगर प्रसारण रोका गया तो मैं प्रेस की स्वतंत्रता का सवाल उठाऊंगा। पीठ ने टिप्पणी की कि इंटरनेट को नियमित करना मुश्किल है लेकिन अब इलेक्ट्रानिक मीडिया का नियमन करने की आवश्यकता है। अधिकांश टीवी सिर्फ टीआरपी की दौड़ में लगे हुए हैं।
पीठ ने कार्यक्रम पर सवाल उठाते हुए कहा कि मीडिया में भी थोड़ा-बहुत आत्म नियंत्रण होना चाहिए। पीठ ने कहा, इस कार्यक्रम को देखिए, यह कितना उन्माद पैदा करने वाला कार्यक्रम है कि एक समुदाय प्रशासनिक सेवाओं में जगह बना रहा है। पीठ ने टिप्पणी की, आप देखिए, इस कार्यक्रम का विषय कितना आक्षेप लगाने वाला है कि मुस्लिम ने सेवाओं में घुसपैठ कर ली है और यह बिना किसी तथ्यात्मक आधार के यूपीएससी की परीक्षाओं को संदेह के घेरे में लाता है।
सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि पत्रकारों की स्वतंत्रता सर्वोच्च है और प्रेस को नियंत्रित करना किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए घातक होगा। वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए मामले की सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा, हम मीडिया पर किसी तरह की सेंसरशिप का सुझाव नहीं दे रहे हैं, लेकिन मीडिया में स्व नियमन की कोई न कोई व्यवस्था होनी चाहिए।
पीठ ने कहा, हम मीडिया रिपोर्टिंग के बारे में कुछ मानक कैसे निर्धारित करें। पीठ ने कहा कि मीडिया में स्व नियमन की कुछ व्यवस्था होनी चाहिए और इस सवाल पर हम सॉलिसीटर जनरल को सुनेंगे। शीर्ष अदालत ने कहा कि पेश याचिका में कुछ विषयों की रिपोर्टिंग कैसे की जाए, इस बारे में दिशा निर्देश बनाने और स्व नियमन के दिशानिर्देश बनाने का अनुरोध किया गया है।
पीठ ने कहा कि हम यह नहीं कह रहे कि राज्य ऐसे दिशा निर्देश थोपेंगे क्योंकि यह तो संविधान के अनुच्छेद 19 में प्रदत्त बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी के लिए अभिशाप हो जाएगा। शीर्ष अदालत ने कहा कि टीवी चैनल के राजस्व का मॉडल और उसके स्वामित्व का स्वरूप वेबसाइट पर सार्वजनिक दायरे में होना चाहिए।
पीठ ने कहा, मीडिया का अधिकार नागरिकों की ओर से है ओर यह मीडिया का एक्सक्लूसिव अधिकार नहीं है।पीठ ने कहा, प्रिंट मीडिया की तुलना में इलेक्ट्रानिक मीडिया ज्यादा ताकतवर हो गया है और प्रसारण से पहले प्रतिबंध के पक्षधर नहीं रहे हैं।
मेहता ने पीठ से कहा कि किसी न किसी तरह का स्व नियमन होना चाहिए लेकिन पत्रकारों की स्वतंत्रता बनाए रखनी होगी। इस संबंध में उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कुछ विदेशी फैसलों का भी जिक्र किया। सुनवाई के दौरान पीठ ने कुछ मीडिया हाउस द्वारा आपराधिक मामले की जांच किए जाने का भी जिक्र किया और कहा कि जब पत्रकार काम करते हैं तो उन्हें निष्पक्ष टिप्पणी के साथ काम करने की आवश्यकता है। आपराधिक मामलों की जांच देखिए, मीडिया अक्सर जांच के एक ही हिस्से को केन्द्रित करता है।
पीठ ने दीवान से कहा, हम आपके मुवक्किल (सुदर्शन टीवी) से थोड़ा संयम बरतने की अपेक्षा करते हैं। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप चौधरी ने कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने मामला सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के पास भेजा था लेकिन मंत्रालय ने कोई तर्कसंगत आदेश पारित नहीं किया।
उन्होंने कहा कि मंत्रालय ने दूसरे पक्ष को सुना ही नहीं और कार्यक्रम के प्रसारण की अनुमति दे दी। मंत्रालय ने चैनल के इस बयान पर भरोसा किया कि वह प्रसारण के नियमों का पालन करेगा। शीर्ष अदालत ने 28 अगस्त को सुदर्शन टीवी के कार्यक्रम ‘बिन्दास बोल’ पर प्रसारण से पहले ही प्रतिबंध लगाने से इंकार कर दिया था।
चैनल के इस कार्यक्रम के प्रोमो में दावा किया गया था कि वह सरकारी सेवा में मुसलमानों की घुसपैठ की साजिश को बेनकाब करने जा रहा है। उच्च न्यायालय ने 11 सितंबर को इस कार्यक्रम की कड़ियों के प्रसारण पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था।(भाषा)