friendship between Narendra Modi and Donald Trump: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल के शुरू होने के कुछ ही महीनों में भारत-अमेरिका संबंधों में अभूतपूर्व तनाव देखने को मिल रहा है। कभी 'हाउडी मोदी' और 'नमस्ते ट्रम्प' जैसे आयोजनों से परवान चढ़ी दोस्ती अब अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुकी है। हालात इतने खराब हो चुके हैं कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कथित तौर पर दो महीने से ज्यादा समय तक ट्रम्प के फोन कॉल्स का जवाब देना बंद कर दिया है। द कन्वर्सेशन में प्रकाशित इयान हॉल के विश्लेषण ने इस तनाव की गहराई को रेखांकित किया है।
मोदी से मुलाकात से पहले क्यों हुई भारतीय नागरिकों की गिरफ्तारी?
पिछले साल जब डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जीता, तो नई दिल्ली में उत्साह का माहौल था। मोदी ने अपने 'दोस्त' ट्रम्प को तुरंत बधाई दी थी। जनवरी 2025 में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ट्रम्प के शपथ ग्रहण समारोह में भारत का प्रतिनिधित्व किया और उनके लिए मोदी का पत्र लेकर गए। लेकिन, ट्रम्प के सत्ता में लौटने के कुछ ही दिनों बाद स्थिति बदलने लगी। जब मोदी ट्रम्प से मिलने वॉशिंगटन पहुंचे, तो मुलाकात से ठीक पहले भारतीय नागरिकों को हथकड़ियों और बेड़ियों में जकड़कर सैन्य विमान से निर्वासित किए जाने की तस्वीरें सामने आईं। इन तस्वीरों ने न केवल भारत में, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी हंगामा मचाया और मोदी को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा। इसके कुछ हफ्तों बाद, ट्रम्प ने भारत से आयातित सामानों पर 27% टैरिफ लगाने की घोषणा की, जिसे बाद में बढ़ाकर 50% कर दिया गया। ट्रम्प ने इसका कारण भारत की रूसी तेल खरीद और 'अनुचित' व्यापार नीतियों को बताया।
कश्मीर विवाद और ट्रम्प का दखल : तनाव का एक बड़ा कारण कश्मीर मुद्दा रहा। 22 अप्रैल 2025 को कश्मीर के पहलगाम में आतंकवादी हमले में 26 लोगों की मौत हो गई। इसके जवाब में भारत ने 7 मई को पाकिस्तान और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में आतंकवादी ठिकानों पर बमबारी शुरू की। 7-10 मई तक चले इस ऑपरेशन (ऑपरेशन सिंदूर) के बाद, 10 मई को भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम पर सहमति बनी। लेकिन इससे पहले कि दोनों देश इसकी आधिकारिक घोषणा करते, ट्रम्प ने सोशल मीडिया पर दावा कर दिया कि यह युद्धविराम उनकी मध्यस्थता का नतीजा है।
भारत ने इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया, क्योंकि नई दिल्ली का लंबे समय से रुख रहा है कि कश्मीर एक द्विपक्षीय मुद्दा है, जिसमें किसी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए। ट्रम्प का यह दावा भारत के लिए अपमानजनक था। स्थिति तब और बिगड़ गई, जब पाकिस्तान ने इस मौके का फायदा उठाते हुए ट्रम्प को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित कर दिया।
17 जून को G7 शिखर सम्मेलन से लौटते समय ट्रम्प ने मोदी को फोन किया और उनसे भी अपने लिए नोबेल पुरस्कार का नामांकन करने को कहा। इतना ही नहीं, ट्रम्प ने मोदी से वॉशिंगटन रुककर पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर से मुलाकात करने का अनुरोध किया। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यह अनुरोध मोदी के लिए 'आखिरी तिनका' साबित हुआ। उन्होंने दोनों अनुरोधों को ठुकरा दिया।
टैरिफ वॉर, रूस और तेल का मामला : ट्रम्प ने भारत के इस रुख को व्यक्तिगत अपमान के रूप में लिया। इसके बाद, उन्होंने भारत पर 50% टैरिफ लागू कर दिया, जिसका कारण भारत का रूस से तेल और हथियारों की खरीद को बताया गया। ट्रम्प के शीर्ष आर्थिक सलाहकार केविन हैसेट ने कहा, 'अगर भारत रूस से तेल खरीदना बंद नहीं करता, तो टैरिफ में कोई राहत नहीं मिलेगी।'
मोदी ने इस दबाव का जवाब देते हुए साफ कर दिया कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं करेगा। उन्होंने वैकल्पिक व्यापारिक रास्तों की तलाश शुरू की, जिसमें जापान, यूरोपीय संघ और आसियान देशों के साथ समझौतों पर जोर दिया गया। भारत की अर्थव्यवस्था ने इस टैरिफ युद्ध के बावजूद लचीलापन दिखाया है। इंडिया टुडे-सीवोटर्स के 'मूड ऑफ द नेशन सर्वे' के अनुसार, 54% भारतीयों ने इस तनाव के लिए अमेरिका को जिम्मेदार ठहराया और 65% का मानना है कि भारत की अर्थव्यवस्था इन झटकों को सहन करने में सक्षम है।
ट्रम्प का बदला रुख और अनुत्तरित कॉल्स : ट्रम्प के पहले कार्यकाल में भारत-अमेरिका संबंधों में गर्मजोशी थी। 'हाउडी मोदी' और 'नमस्ते ट्रम्प' जैसे आयोजनों ने दोनों नेताओं की दोस्ती को वैश्विक मंच पर प्रदर्शित किया था। लेकिन अब ट्रम्प का रुख तल्ख हो चुका है। जर्मनी के अखबार FAZ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रम्प ने अपने नए कार्यकाल में चार बार मोदी को फोन किया, लेकिन सुरक्षा कारणों से बदले गए उनके नए नंबर से कॉल आने के कारण मोदी ने इन्हें रिसीव नहीं किया। ट्रम्प ने इसे व्यक्तिगत अपमान माना।
ट्रम्प ने भारत को 'टैरिफ किंग' तक कह डाला और दावा किया कि भारत अमेरिकी कंपनियों के साथ 'फेयर प्ले' नहीं करता। उन्होंने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर लिखा, 'भारत हमसे भारी व्यापार करता है, लेकिन हम उनके साथ बहुत कम। यह एकतरफा रिश्ता रहा है।'
विशेषज्ञों का मानना है कि यह तनाव केवल व्यापार या कश्मीर तक सीमित नहीं है। भारत की संतुलित विदेश नीति, जिसमें रूस और चीन के साथ संबंधों को बनाए रखना शामिल है, ट्रम्प की 'अमेरिका फर्स्ट' नीति से टकरा रही है। भारत ने हाल ही में चीन के साथ व्यापार और डी-एस्केलेशन पर कदम उठाए हैं, जिसे ट्रम्प प्रशासन ने अपनी चीन-विरोधी रणनीति के खिलाफ माना है।
इस बीच, भारत ने वैकल्पिक रास्ते तलाशने शुरू कर दिए हैं। जापान और चीन की हालिया यात्राओं में मोदी ने इन देशों के साथ आर्थिक और रणनीतिक संबंधों को मजबूत करने पर जोर दिया। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि भारत और अमेरिका के बीच दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदारी को पूरी तरह खत्म करना दोनों पक्षों के लिए नुकसानदायक होगा।
क्या सुधरेंगे रिश्ते? : ट्रम्प के सहयोगी और अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने हाल ही में कहा कि भारत और अमेरिका आखिरकार एक साथ आएंगे, क्योंकि दोनों देशों के बीच बहुत कुछ दांव पर है। लेकिन मौजूदा हालात में दोनों नेताओं के बीच विश्वास की कमी साफ दिख रही है। क्या यह तनाव केवल एक अस्थायी दौर है या भारत-अमेरिका संबंधों में एक बड़े बदलाव का संकेत? यह सवाल वैश्विक कूटनीति के गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है।