मेरठ। हर व्यक्ति का सीना गर्व से फूला हुआ था, जब विजय जवान ज्योति मेरठ में स्थापित की गई। उस समय 1971 में शहीद हुए सैनिकों की विधवाएं भी वहां मौजूद थीं। उनकी कहानी प्रेरणादायक तो थी ही, आंखों को छलकाने वाली भी थी।
इस अवसर पर शहीदों की पत्नियों को जब सम्मानित किया गया तो उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े। एक शहीद फौजी रामपाल की पत्नी सतपालो ने बताया कि 1971 में शहीद हुए उनके फौजी पति की शहादत सूचना एक महीने बाद चिट्ठी से पता चली थी। सीमा से सिर्फ पति का बिस्तर वापस आया था। शहादत के समय वह मात्र 21 साल की थीं। दो महीने बाद उनके यहां बेटा हुआ था।
सतपालो ने बताया कि उस समय सिर्फ 60 रुपए मिलते थे। मुश्किलों के दौर से निकलते हुए उन्होंने समय बिताया और बेटे को छोटा-सा बिजनेस करा दिया।
हालांकि उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि समय पर उन्हें सरकार से भी मदद मिली। मुख्य अतिथि सांसद राजेंद्र अग्रवाल ने कहा कि 1971 की भारत के धैर्य और संकल्पों की जीत है।
उन्होंने वीर नारियों को सम्मानित करते हुए उनके चरण स्पर्श भी किए। वहीं, 1971 के युद्ध विभीषिका के गवाह सेना अधिकारियों ने अपने दिनों को याद करते हुए सेना के गौरव और सम्मान का बखूबी बखान किया। इन लोगों का कहना था कि भारत की फौज दुश्मनों के दांत खट्टे करती आई है और करती रहेगी।