नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि भारत में आम आदमी भ्रष्टाचार से त्रस्त है तथा सभी स्तरों पर जवाबदेही तय करने की जरूरत है। न्यायालय ने यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई करते हुए कि जिसमें उन लोगों को चुनाव लड़ने से रोकने का अनुरोध किया गया है जिनके खिलाफ आपराधिक मामलों में आरोप तय किए जा चुके हैं।
शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर भारत को वास्तव में वह बनना है जिसके लिए वह प्रयास कर रहा है तो उसे अपने मूल मूल्यों की ओर लौटना होगा। न्यायमूर्ति केएम जोसेफ और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्न ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, भारत में आम आदमी भ्रष्टाचार से त्रस्त है। किसी भी सरकारी दफ्तर में चले जाइए, आप खराब अनुभव के बिना बाहर नहीं आ सकते।
प्रख्यात न्यायविद नानी पालकीवाला ने अपनी किताब वी द पीपल में इस बारे में बात की है। अगर आपको वास्तव में वैसा देश बनना है जिसके लिए हम प्रयास कर रहे हैं, तो हमें अपने मूल मूल्यों और चरित्र की ओर लौटना पड़ेगा। अगर हम अपने मूल्यों पर लौटते हैं तो हमारा देश वैसा बन जाएगा जिसके लिए हम प्रयास कर रहे हैं।
जनहित याचिका दायर करने वाले वकील अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि जघन्य अपराध में जिस व्यक्ति के खिलाफ आरोप तय किए गए हों, वह किसी सरकारी कार्यालय में चपरासी तक या पुलिस कांस्टेबल तक नहीं बन सकता लेकिन वही व्यक्ति मंत्री बन सकता है, चाहे उस पर वसूली, अपहरण और हत्या जैसे अपराधों के मामले दर्ज क्यों न हों।
न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा कि लोकतंत्र के नाम पर जो हो रहा है वह उस पर कुछ नहीं कहना चाहेंगे। उन्होंने कहा, मैं कोई टिप्पणी नहीं करूंगा। इस मुद्दे पर संवैधानिक पीठ का फैसला है और अदालत ने कहा है कि वह कानून में कुछ भी जोड़ नहीं सकती और इस पर विचार करना सरकार का काम है। न्यायमूर्ति नागरत्न ने कहा कि सभी स्तरों पर जवाबदेही तय करने की आवश्यकता है।
भारत निर्वाचन आयोग की ओर से पेश अधिवक्ता अमित शर्मा ने कहा कि निर्वाचन आयोग ने राजनीति के अपराधीकरण पर पहले ही चिंता व्यक्त की है और मौजूदा कानून के तहत अगर कोई व्यक्ति किसी अपराध में दोषी पाया जाता है और उसे दो साल से अधिक की जेल होती है तो उसे चुनाव लड़ने से रोका जाता है। उस व्यक्ति को सजा की अवधि के दौरान और रिहा होने के छह साल बाद तक अयोग्य घोषित किया जा सकता है।
उन्होंने कहा, इस याचिका में एक व्यक्ति को आरोप तय होने के चरण पर चुनाव लड़ने से रोकने का अनुरोध किया गया है। हमारा रुख यह है कि इस पर फैसला लेने का अधिकार संसद के पास है। वहीं केंद्र की ओर से पेश वकील ने कहा कि उन्हें जनहित याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए वक्त चाहिए। उपाध्याय ने कहा कि उन्होंने भ्रष्टाचार से निपटने के लिए संपत्ति को आधार संख्या से जोड़ने का अनुरोध करते हुए एक अन्य जनहित याचिका दायर की है।
उन्होंने कहा, मेरे अनुसार देश में 80 फीसदी लोगों के पास 500 रुपए या 2000 रुपए के नोट नहीं है और 20 प्रतिशत लोग डेबिट कार्ड या क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करते हैं। पूरी तरह नोटबंदी की जरूरत है न कि नोट बदली की।
पीठ ने मामले पर अंतिम सुनवाई के लिए 10 अप्रैल की तारीख तय की और केंद्र तथा निर्वाचन आयोग को 3 सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।
Edited By : Chetan Gour (भाषा)