नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि कोई व्यक्ति अपनी परित्यक्त पत्नी को गुजारा भत्ता देने की जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकता है। प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना तथा न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमण्यन की पीठ ने एक व्यक्ति को उसकी पत्नी को 2.60 करोड़ रुपए की पूरी बकाया राशि अदा करने का अंतिम मौका देते हुए यह कहा। साथ ही, मासिक गुजारा भत्ता के तौर पर 1.75 लाख रुपए देने का भी आदेश दिया।
पीठ ने तमिलनाडु निवासी व्यक्ति की एक पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। यह व्यक्ति एक दूरसंचार कंपनी में राष्ट्रीय सुरक्षा की एक परियोजना पर काम करता है। उसने कहा कि उसके पास पैसे नहीं है और रकम का भुगतान करने के लिए दो साल की मोहलत मांगी।
इस पर, शीर्ष न्यायालय ने कहा कि उसने न्यायलय के आदेश का अनुपालन करने में बार-बार नाकाम रहकर अपनी विश्वसनीयता खो दी है। न्यायालय ने हैरानगी जताते हुए कहा कि इस तरह का व्यक्ति कैसे राष्ट्रीय सुरक्षा की परियोजना से जुड़ा हुआ है।
पीठ ने कहा, पति अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता मुहैया करने की जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकता है और यह उसका कर्तव्य है कि वह गुजारा भत्ता दे। पीछ ने अपने आदेश में कहा, हम पूरी लंबित राशि के साथ-साथ मासिक गुजारा भत्ता नियमित रूप से अदा करने के लिए अंतिम मौका दे रहे हैं...आज से चार हफ्तों के अंदर यह दिया जाए, इसमें नाकाम रहने पर प्रतिवादी को दंडित किया जा सकता और जेल भेज दिया जाएगा।
न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई चार हफ्ते बाद के लिए निर्धारित कर दी। न्यायालय ने कहा, रकम का भुगतान नहीं किए जाने पर अगली तारीख पर गिरफ्तारी आदेश जारी किया जा सकता है और प्रतिवादी को जेल भेजा सकता है।
न्यायालय ने इस बात का जिक्र किया कि निचली अदालत ने व्यक्ति को 2009 से गुजारा भत्ता की लंबित बकाया राशि करीब 2.60 करोड़ रुपए और 1.75 लाख रुपए मासिक गुजारा भत्ता देने को कहा था। उसने लंबित रकम में 50,000 रुपए ही दिया है।
वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से पेश हुए पति ने न्यायालय से कहा कि उसने अपना सारा पैसा दूरसंचार क्षेत्र में राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी एक परियोजना के अनुसंधान एवं विकास में लगा दिया है। पीठ ने व्यक्ति को पैसा उधार लेने या बैंक से ॠण लेने तथा अपनी पत्नी को एक हफ्ते के अंदर गुजारा भत्ता की लंबित राशि एवं मासिक राशि अदा करने को कहा अन्यथा उसे सीधे जेल भेज दिया जाएगा। हालांकि व्यक्ति के वकील के अनुरोध पर पीठ ने उसे चार हफ्ते की मोहलत दे दी।
पति ने अपनी दलील में दावा किया कि उसकी पत्नी एक बहुत ही प्रभावशाली महिला है और उसके मीडिया में अच्छे संबंध हैं, जिसका इस्तेमाल वह उसकी छवि धूमिल करने के लिए कर रही है। इस पर पीठ ने कहा, हम मीडिया से प्रभावित नहीं हैं, हम हर मामले के तथ्य पर गौर करते हैं। गौरतलब है कि पत्नी ने 2009 में चेन्नई की एक मजिस्ट्रेट अदालत में अपने पति के खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला दर्ज कराया था।(भाषा)